मध्यप्रदेश के मंडला जिले में स्थित कान्हा नेशनल पार्क आज देशभर में अपनी एक अनोखी पहल के लिए सुर्खियों में है। यहां स्थापित देश का पहला टाइगर रिवाइल्डिंग सेंटर यानी टाइगर ट्रेनिंग स्कूल, अब तक 14 बाघों को जंगल में जीने के काबिल बना चुका है। इन बाघों को न केवल प्राकृतिक वातावरण में रहना सिखाया गया, बल्कि खुद से शिकार करना और जंगल के नियमों के मुताबिक जीना भी सिखाया गया है।
घायल और अनाथ शावकों को मिलता हैं यहां जीवनदान
यह सेंटर खासतौर पर घायल और अनाथ बाघ शावकों के लिए बनाया गया है। जब किसी शावक की मां की मृत्यु हो जाती है या वह घायल अवस्था में पाया जाता है, तो उसे यहां लाकर प्रशिक्षित किया जाता है। ट्रेनिंग के दौरान उन्हें धीरे-धीरे जिंदा शिकार करना सिखाया जाता है, ताकि वे जंगल में अपने दम पर जिंदा रह सकें।

2005 में हुई थी इसकी शुरुआत
इस सेंटर की शुरुआत वर्ष 2005 में हुई थी, जब तीन बाघ शावकों की मां की मृत्यु हो गई थी। इन शावकों को शुरुआत में दूध पिलाकर ज़िंदा रखा गया और फिर एक बाड़े में रखकर ट्रेनिंग दी गई। पहले उन्हें जिंदा मुर्गा, फिर बकरा और अंत में चीतल का शिकार करना सिखाया गया। लगभग तीन वर्षों में ये शावक पूरी तरह से जंगल में रहने योग्य बन गए। इनमें से दो मादा शावकों को पन्ना टाइगर रिजर्व और एक नर शावक को भोपाल के वन विहार में छोड़ा गया।
विशेषज्ञों की निगरानी में चलता है पूरा प्रशिक्षण
इस रिवाइल्डिंग सेंटर का संचालन वन्यप्राणी विशेषज्ञ डॉ. संदीप अग्रवाल की देखरेख में किया जा रहा है। यहां शावकों को इस तरह से तैयार किया जाता है कि वे इंसानों पर निर्भर न रह जाएं और जंगल में अपनी स्वाभाविक भूमिका निभा सकें।
वर्तमान में 3 बाघ शावक कर रहे हैं ट्रेनिंग
फिलहाल इस सेंटर में तीन बाघ शावक प्रशिक्षण ले रहे हैं। जैसे ही ये जंगल में खुद से जीने और शिकार करने लायक बन जाएंगे, इन्हें भी स्वतंत्र रूप से जंगल में छोड़ दिया जाएगा।
देशभर के लिए बना मिसाल
कान्हा का यह रिवाइल्डिंग सेंटर अब एक मॉडल बन गया है। इसकी सफलता के बाद अन्य राज्यों में भी इसी तर्ज पर सेंटर शुरू किए गए हैं।