पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन (ताई) के पत्र के बाद मंगलवार को इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव उनसे भेंट करने उनके निवास पर पहुंचे। ताई ने स्पष्ट किया कि पत्र पूरी सहजता और सकारात्मक भावना के साथ लिखा गया था, उसमें किसी प्रकार की कठोरता नहीं थी। इस मुलाकात के दौरान ‘भारत वन’ परियोजना सहित शहर के विभिन्न विकास कार्यों पर विस्तार से चर्चा हुई। महापौर ने भरोसा दिलाया कि वे ताई के मार्गदर्शन में ही कार्य कर रहे हैं और मेट्रो परियोजना सहित अन्य योजनाओं में उनके सुझावों को प्राथमिकता दी जा रही है।
मेट्रो को लेकर ताई पहले भी जता चुकी हैं चिंता
ताई इससे पहले भी मेट्रो परियोजना को लेकर कई बार अपनी राय व्यक्त कर चुकी हैं। बीते माह उन्होंने महापौर को एक पत्र लिखकर सुझाव दिया था कि अंडरग्राउंड मेट्रो रूट एमजी रोड के बजाय सुभाष मार्ग से निकाला जाए। उन्होंने इसके पीछे यह तर्क दिया कि एमजी रोड पर जनसंख्या घनत्व अधिक है और वहां पुरातात्विक महत्व की कई इमारतें स्थित हैं, जिन्हें क्षति पहुंचने की आशंका है। इसके साथ ही उन्होंने मेट्रो मार्ग को पत्रकार कॉलोनी, पलासिया, 56 दुकान, रेसकोर्स रोड, राजकुमार ब्रिज होते हुए वीआईपी रोड और एरोड्रम तक विस्तारित करने का भी प्रस्ताव दिया था।

पत्र के बाद बढ़ा संवाद, हुई अहम मुलाकात
सोमवार को सुमित्रा महाजन ने महापौर को पत्र भेजकर शहर के विकास से जुड़े विषयों पर चर्चा का अनुरोध किया था। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि यदि महापौर के पास समय न हो, तो वह स्वयं उनसे मिलने को तैयार हैं। विशेष रूप से उन्होंने ‘भारत वन’ परियोजना पर विचार-विमर्श कर निर्णय लेने की आवश्यकता जताई। ताई ने लिखा कि वृक्षारोपण और वन निर्माण निश्चित रूप से सराहनीय प्रयास हैं, लेकिन इस दिशा में कोई भी निर्णय पर्यावरण विशेषज्ञों और अनुभवी नागरिकों की सलाह से ही लिया जाना चाहिए।
पत्र ने जगाई प्रशासनिक हलचल
तीन वर्ष पूर्व सुमित्रा महाजन ने तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र भेजकर राजवाड़ा क्षेत्र में प्रस्तावित भूमिगत मेट्रो स्टेशन पर आपत्ति जताई थी। उनके सुझाव के बाद स्टेशन को सदरबाजार स्थित पुराने एसपी कार्यालय की ओर शिफ्ट कर दिया गया था। अब जब एक बार फिर भूमिगत मेट्रो रूट को लेकर राजनीतिक चर्चाएं तेज हैं, ताई का हालिया पत्र फिर से केंद्र में आ गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटनाक्रम इस ओर इशारा करता है कि आज भी नगर की महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं में वरिष्ठ नेताओं और विशेषज्ञों की राय को पर्याप्त महत्व नहीं दिया जा रहा है।