किसानों की बड़ी जीत, मिलेगा मुआवजा, हाईकोर्ट ने हाउसिंग बोर्ड की पालाखेड़ी योजना पर लगाई रोक

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पालाखेड़ी में हाउसिंग बोर्ड की 12 साल पुरानी आवासीय योजना पर रोक लगाई, भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को खारिज करते हुए बोर्ड को योजना को फिर से लाने की छूट दी। कोर्ट ने 75 किसानों को मुआवजा और जुर्माना देने का आदेश दिया, जबकि हाउसिंग बोर्ड की लापरवाही को लेकर 18 लाख 75 हजार रुपए जुर्माना भी लगाया।

Srashti Bisen
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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार को पालाखेड़ी में हाउसिंग बोर्ड की प्रस्तावित आवासीय योजना पर अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने 12 साल पुराने मामले में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को खारिज कर दिया और हाउसिंग बोर्ड को योजना को फिर से लाने की छूट दी है। इस मामले में करीब 75 किसानों ने याचिका दायर की थी, जिन्हें अब हाउसिंग बोर्ड से मुआवजा और जुर्माना मिलने का आदेश दिया गया है।

इस फैसले से लगभग 102 किसानों को राहत मिली है, जिनकी 375 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की जानी थी। इस जमीन की अनुमानित कीमत करीब 2000 करोड़ रुपए है।

किसानों ने दायर की थी याचिका

किसानों ने मुआवजे की राशि के भुगतान में देरी होने के कारण हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। नियमानुसार, कलेक्टर को 2 साल के भीतर मुआवजा राशि जारी करनी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके खिलाफ किसानों ने अदालत का रुख किया। लगभग 12 साल लंबी चली सुनवाई में उनके द्वारा पेश किए गए तर्कों और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों को कोर्ट ने मान्य किया, जिससे किसानों को न्याय मिला। हालांकि, कोर्ट ने हाउसिंग बोर्ड को योजना को फिर से लाने की अनुमति दी है, बशर्ते वह कानूनी प्रक्रिया का पालन करें।

कोर्ट का आदेश और जुर्माना

हाईकोर्ट ने हाउसिंग बोर्ड की लापरवाही को लेकर सख्त रुख अपनाया। कोर्ट ने कहा कि 13 साल तक योजना को लागू नहीं किया गया, न ही मुआवजे का 10% हिस्सा जमा किया गया, और न ही भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी की गई। इसके कारण किसानों को नुकसान हुआ। कोर्ट ने हाउसिंग बोर्ड को सभी याचिकाकर्ताओं को 25,000 रुपए का जुर्माना देने का आदेश दिया है। इस प्रकार, हाउसिंग बोर्ड को कुल 18 लाख 75 हजार रुपए का जुर्माना अदा करना होगा।

कोर्ट ने क्यों दी योजना पर रोक?

  • कोर्ट ने माना कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में कई कानूनी खामियां थीं।
  • किसानों की आपत्तियों पर कोई निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई।
  • अधिग्रहण के बाद हाउसिंग बोर्ड ने 13 सालों तक इस योजना में कोई सक्रियता नहीं दिखाई।
  • किसानों की जमीन का न तो अवॉर्ड पारित हुआ और न ही कब्जा लिया गया।
  • अधिग्रहण के लिए जरूरी मुआवजे की राशि भी बोर्ड ने जमा नहीं की।

कलेक्टर की सुनवाई जरूरी

इस मामले में एक और अहम बिंदु सामने आया है। कोर्ट ने कहा कि भूमि अधिग्रहण से जुड़ी आपत्तियों की सुनवाई कलेक्टर को ही करनी चाहिए थी, लेकिन अपर कलेक्टर ने यह सुनवाई की थी, जिसे कोर्ट ने गलत माना। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भूमि अधिग्रहण के मामलों में कलेक्टर को ही सुनवाई का अधिकार है। यह एक स्थापित कानून है कि जिन कार्यों को विशेष तरीके से किया जाना चाहिए, उन्हें उसी तरीके से किया जाए।

दिलचस्प यह है कि जब हाउसिंग बोर्ड ने पालाखेड़ी में यह योजना बनाई थी, तब नगरीय प्रशासन और आवास विभाग के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय थे। वहीं, आज भी इस विभाग का जिम्मा विजयवर्गीय के पास है, जब इस योजना पर रोक लगाई गई है।