भारत ने पाकिस्तान के साथ जारी तनाव के चलते सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को निरस्त कर दिया है। इसके बाद यह सवाल उठने लगा कि भारत सिंधु नदी के जल का क्या उपयोग करेगा, क्योंकि अभी तक इस पानी को पूरी तरह रोकने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा मौजूद नहीं था। हालांकि अब सरकार ने इस जल के उपयोग के लिए ठोस रणनीति तैयार कर ली है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने इंटर-बेसिन वॉटर ट्रांसफर (अंतर-बेसिन जल अंतरण) योजना को मंजूरी दे दी है। इसके तहत 113 किलोमीटर लंबी एक नहर का निर्माण किया जाएगा, जिसके माध्यम से सिंधु नदी का पानी तीन राज्यों—पंजाब, हरियाणा और राजस्थान—तक पहुंचाया जाएगा। इस योजना पर केंद्र ने तेज़ी से काम शुरू कर दिया है। इससे पाकिस्तान की ओर बहने वाले पानी की मात्रा में कमी आएगी। इसके साथ ही केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में वर्षों से अटकी बहुउद्देशीय परियोजना (जल विद्युत, सिंचाई और पेयजल) को भी दोबारा शुरू करने जा रही है।

पानी के मोर्चे पर सख्ती, पाकिस्तान को लगेगा झटका
शनिवार, 14 जून को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की कि सिंधु नदी का पानी आगामी तीन वर्षों के भीतर नहरों के माध्यम से राजस्थान तक पहुंचाया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस कदम से देश के एक बड़े हिस्से को सिंचाई का लाभ मिलेगा, जबकि पाकिस्तान को जल संकट का सामना करना पड़ेगा। रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों ने बताया कि चिनाब, रावी, ब्यास और सतलज नदियों को आपस में जोड़ने की योजना पर काम हो रहा है, जिससे जम्मू, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के 13 स्थानों पर मौजूदा नहर नेटवर्क से इस जल को जोड़ा जा सके और अंततः इंदिरा गांधी नहर तक इसे पहुँचाया जा सके।
70 साल पुराना, क्या है सिंधु जल समझौता ?
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में सम्पन्न हुई थी। इस ऐतिहासिक समझौते पर भारत की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान की ओर से राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अय्यूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। इस संधि के तहत भारत से होकर पाकिस्तान की ओर बहने वाली छह नदियों—सिंधु, झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास और सतलुज—का जल विभाजन दो समूहों में किया गया था।
भारत इन पश्चिमी नदियों के जल का उपयोग केवल बिजली उत्पादन जैसे गैर-खपत कार्यों के लिए कर सकता है, जिनमें उपयोग के बाद पानी दोबारा नदी में छोड़ दिया जाता है। यानी, यह पानी उपभोग में नहीं लिया जाता, बल्कि नदी की धारा में वापस पहुंचा दिया जाता है।