श्रीमद्‍भगवद्‍गीता के ग्यारवें अध्याय में श्रीकृष्ण ने दी है समर्पण की महत्वपूर्ण शिक्षा

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भगवद् गीता का ग्यारवा अध्याय जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों और धार्मिक तत्वों को समझाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह अध्याय कुछ महत्वपूर्ण संदेश और शिक्षाएं प्रदान करता है:

1. आत्मा का अमरत्व: गीता के इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण आत्मा का अमरत्व और शारीरिक मौत के बाद भी आत्मा के असीम जीवन की बात करते हैं। यह अध्याय बताता है कि आत्मा अनादि है और अंतिम रूप में नष्ट नहीं हो सकती।

2. भक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका: ग्यारवा अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण भक्ति के महत्व को बताते हैं। वे कहते हैं कि भक्ति के माध्यम से व्यक्ति भगवान के पास आ सकता है और अंतत: मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

3. आत्मा का स्वरूप: इस अध्याय में आत्मा का वास्तविक स्वरूप और उसका परमात्मा से कैसे जुड़ा हुआ है, यह बताया गया है। आत्मा का स्वरूप अविनाशी है और यह शरीर से अलग होता है।

4. ध्यान का महत्व: गीता में ध्यान का महत्व बहुत बार बताया गया है, और इस अध्याय में भी ध्यान की महत्वपूर्ण शिक्षा दी गई है। ध्यान के माध्यम से आत्मा को परमात्मा के साथ एकात्म बनाया जा सकता है।

5. समर्पण का अर्थ: गीता के इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण समर्पण की महत्वपूर्ण शिक्षा देते हैं। वे कहते हैं कि सब कुछ भगवान को समर्पित कर देने पर ही सच्चा मोक्ष प्राप्त होता है।

6. निष्काम कर्म का मार्ग: इस अध्याय में निष्काम कर्म का महत्वपूर्ण संदेश है। व्यक्ति को कर्म करते समय फल की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि कर्म केवल भगवान के लिए किया जाना चाहिए।

यह ग्यारवा अध्याय भगवद् गीता का एक महत्वपूर्ण अध्याय है जो आत्मा के अमरत्व, भक्ति, ध्यान, समर्पण, और निष्काम कर्म के महत्व को बताता है। यह आध्यात्मिक ज्ञान और जीवन के मूल्यों को समझने में मदद करता है।