अमानुषता, पाशविक, निर्लज्जता, बेशर्मी, बेहयाई इन शब्दों से भी अतिरेक शब्द हो तो वो भी इस्तेमाल करने में मुझे कोई दिक्कत नही है। रोज जो खबरे आ रही है, अस्पताल से लाश गायब करने, अस्पताल में पैसों के लिए विवाद, दवा के लिए भटकते परिजन, शमशानों में जलती चिताओं ओर उनको कंधा देने वालो की कमी, ये खबर लगातार आ रही है, ओर दूसरी ओर बेशर्मी की हद भी पार हो रही है।
बजाए इंसानियत दिखाने के कुछ लोग सोशल मीडिया ओर हर जगह पर हिंदुत्व, देश की प्रगति के सात सालों के इतिहास, हिंदू खतरे में होने, महापुरुषों की जीवनगाथा को अपनी विचारधारा के रंग में लपेट कर पेश किया जा रहा। ऐसे ही कई मेसेज चलाए जा रहे है। कमजरफों अभी हिन्दू ही नही मानवता खतरे में है। तुम भक्त बनों, गुलाम बनों, जो बनना है, बनते रहना, लेकिन पहले एक इंसान तो बन जाओ। हिंदू खतरे में है तो उसकी मदद इस्लामिक देश सऊदी अरब और दुबई कर रहा है। बड़े धर्मभीरु हो न तुम ओर तुम्हारे आका तो क्यो ले रहे हो ये मदद?
यदि झूठन खाने और गुलामी की आदत है तो करो लेकिन ये मत भूलो की तुम्हारे जैसे नकारा लोगो के कारण जो जिम्मेदार जनता के सवालों के जवाब देने को अपनी तौहीन समझने लगे थे, जिनके कारण आज देश का हर बड़ा शहर त्राही माम् कर रहा है। ऑक्सिजन, दवा तक नही मिल पा रही है। वो आज मौतों को भी राजनीति बनवा रहे है और तुम उनकी कठपुतली बन काम कर रहे हो।
राजनीतिक दल या विचारधारा सही विकास और सुलभ जीवन के लिए कुछ लोगो द्वारा तय की जाती है। जिसमे कुरीतियां भी आती है। लेकिन उन्हें सवाल उठाकर दूर किया जाता है। अंधे बनकर केवल नेता के कहे ओर उसकी सोच को सही मानना सच नही है। अंधों इस सच को देखो।
जो मर रहे है वो किसी परिवार का सहारा है। कभी ये सोचना तुम्हारी मौत के बाद तुम्हारी माँ, बाप, भाई, बीवी, बच्चा का क्या हाल होगा। वे किस तरह से ओर किसके साथ जीवन बिताएंगे। जो ये नेतागिरी, भक्ति, गुलामी का पर्दा आंखों और मन पर डालकर बैठे हो ना, न झन्न से टूट पड़े तो कहना।
हर मरने वाला महज एक आंकड़ा नही है, वो किसी की उम्मीद था, किसीके सपने था, जैसे तुम हो अपने परिवार के। दर्द देखना है तो 1 मिनिट सांस रोककर देख लो, सब समझ आ जाएगा।
देश के, प्रदेश के, शहर के, अपने क्षेत्र, अपने मोहल्ले के जिम्मेदार लोगों से सवाल करो, पूछो इन चिताओं को रोकने के लिए उन्होंने क्या किया। कहां थे वो पूरे साल। कहा थे वो जब बीमारी पैर पसार रही थी। ओर नही पूछ सकते तो जो लोगो की आंखों में आंसू है उनमें डूब मरना।
बाकलम – नितेश पाल