भाद्रपद माह की चतुर्थी तिथि से लेकर चतुर्दशी तिथि तक गणेश महोत्सव (Ganesh Mahotsav) चलता है जिसे गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष गणेश चतुर्थी पर्व की शुरुआत 10 सितंबर यानि आज (शुक्रवार) के दिन से हो रही है और 19 सितंबर को अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के दिन उन्हें विदाई दी जाएगी।
गणों के अधिपति श्री गणेशजी प्रथम पूज्य हैं सर्वप्रथम उन्हीं की पूजा की जाती है, उनके बाद अन्य देवताओं की पूजा की जाती है। किसी भी कर्मकांड में श्रीगणेश की पूजा-आराधना सबसे पहले की जाती है क्योंकि गणेशजी विघ्नहर्ता हैं और आने वाले सभी विघ्नों को दूर कर देते हैं।आइए जानते हैं गणेश चतुर्थी की पूजा विधि विस्तार से….
गणेश चतुर्थी व्रत पूजन विधि:
-इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
-इसके बाद तांबे या फिर मिट्टी की गणेश जी की प्रतिमा लें।
-फिर एक कलश में जल भरें और उसके मुख को नए वस्त्र से बांध दें। फिर इस पर गणेश जी की स्थापना करें।
-गणेश भगवान को सिंदूर, दूर्वा, घी और 21 मोदक चढ़ाएं और उनकी विधि विधान पूजा करें।
-गणेश जी की आरती उतारें और प्रसाद सभी में बांट दें।
-10 दिन तक चलने वाले इस त्योहार में गणेश जी की मूर्ति को एक, तीन, सात और नौ दिनों के लिए घर पर रख सकते हैं।
-ध्यान रहे कि गणेश जी की पूजा में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
-गणेश पूजन में गणेश जी की एक परिक्रमा करने का विधान है।
गणेश चतुर्थी 2021 शुभ मुहूर्त
गणेश पूजन के लिए मध्याह्न मुहूर्त -दोपहर 11 बजकर 02 मिनट से लेकर 01 बजकर 32 मिनट तक
अवधि: 2 घंटे 29 मिनट
श्रीगणेश को जरूर चढ़ाएं ये चीजें
बौद्धिक ज्ञान के देवता कहे जाने वाले गणपति के आशीर्वाद से व्यक्ति का बौद्धिक विकास होता है। इसीलिए भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिए सच्चे मन और पूर्ण श्रद्धा से आराधना करते हैं। भक्त गणपति की पूजा करते समय छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखते हैं, ताकि उनसे कोई गलती ना हो जाएं। लेकिन अक्सर जानकारी न होने के अभाव में वे भगवान गणेशजी को ये कुछ चीजें चढ़ाना भूल जाते हैं। पहला मोदक का भोग और दूसरा दूर्वा (एक प्रकार की घास) और तीसरा घी। ये तीनों ही गणपति को बेहद प्रिय हैं। इसीलिए जो भी व्यक्ति पूरी आस्था से गणपति की पूजा में ये चीजें चढ़ाता है तो उस व्यक्ति को गणेशजी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
चन्द्र दर्शन दोष निवारण मन्त्र:
सिंहःप्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।