अशोक मनवाणी
प्रति वर्ष हिंदी दिवस पर देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली हिंदी भाषा के सम्मान में अनेक कार्यक्रम होते हैं। गत कुछ वर्ष से ऐसे कार्यक्रम अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग के कारण चर्चा में आते हैं। यह बहुत विरोधाभासी और हास्यास्पद भी लगता है। हिंदी तो हमारे जीवन का अमिट हिस्सा है। भारत का कोई भी प्रांत हो, वहां का रहने वाला व्यक्ति हिंदी के कुछ शब्दों से जरूर परिचित होता है। उसे जीवन काल में किसी यात्रा में कभी न कभी हिंदी की आवश्यकता पड़ ही जाती है। दक्षिण भारत में हिंदी के जानकारों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। सोशल मीडिया से भी हिंदी को ताकत मिली है। हिंदी सिनेमा का योगदान भी कम नहीं है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हिंदी बहुल प्रांतों में हिंदी के प्रयोग में वृद्धि नहीं हो रही। पहले जो प्रदेश हिंदी की पताका लहराते थे, वे अब पिछड़ते नजर आ रहे हैं। हालांकि देश के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश में जरूर सरकार और समाज दोनों ने हिंदी को भरपूर सम्मान दिया है।
सर्वमान्य शब्दों की ताकत
अनेक भारतीय भाषाओं का उद्गम संस्कृत से हुआ। यदि हिंदी को समृद्ध बनाने वाले कई शब्द विभिन्न भारतीय भाषाओं से लिए जाएँ तो कोई अनुचित नहीं। गुजराती का “कोई वांदा नहीं” मतलब कोई चिंता की बात नहीं , मध्य प्रदेश , राजस्थान और महाराष्ट्र के अनेक इलाकों में बोला जाता है। मराठी का माहिती शब्द अर्थात सूचना मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रयुक्त होता है। यही नहीं उत्तरप्रदेश की जबान या वहां बोली जाने वाली हिंदी में शामिल कई शब्द मध्य प्रदेश के सागर , ग्वालियर , रीवा और अन्य जिलों की क्षेत्रीय बोलियों में आकर सर्वमान्य हो गए हैं। अमरूद या जामफल को सागर क्षेत्र में बिही कहा जाता है। यह उत्तर प्रदेश का प्रभाव है। एक समय था जब आजादी के आंदोलन में हिंदवी का खूब इस्तेमाल हुआ। ब्रज ,अवधी बोलियों ने हिंदी की ताकत और सौंदर्य को बढ़ाया।
अनेक उर्दू भाषी या मुस्लिम शायरों ने इन बोलियों में कालजयी साहित्य रचा। ऐसी हिंदी से भला किसे अनुराग नहीं होगा। हिंदी सिनेमा पर अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि हिंदी की टांग तोड़ने का काम किया है। यह आंशिक सत्य है। यह बात तथ्य भी उतनी ही अहम है कि हिंदी सिनेमा ने मिश्रित हिंदी का सुन्दर प्रयोग भी किया है। आज हजारों हिंदी गीत सिर्फ और सिर्फ मिली -जुली हिंदी की बदौलत जबान पर बरबस आ जाते हैं। उन्हें गाने – गुनगुनाने से किसी को गुरेज़ नहीं। वास्तव में कुछ शब्द सर्वमान्य हो जाते हैं। उनकी उपस्थिति अनेक भाषाओं में मिलेगी। यह सर्वमान्य शब्दों की ताकत भी है।
भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन, एक उपलब्धि
भोपाल में वर्ष 2015 हिंदी सम्मेलन का विश्व स्तरीय आयोजन हुआ । हिंदी के संबंध में बहुत विस्तार से चर्चा हुई थी। सार्थक संवाद में शामिल प्रतिनिधि इस विषय पर भी बातचीत करते नजर आए थे कि यदि हिंदी में सीमित संख्या में और आवश्यकता के मुताबिक अन्य भाषाओं के शब्दों का समावेश हो तो यह हिंदी की ख्याति बढ़ाने में सहयोगी होगा। इससे हिंदी और मजबूत और लोकप्रिय होगी। आप टेबिल और पेन शब्द को मेज या कलम कहते हैं, तो कुछ अजीब लगता है। मेज और कलम ही कहा जाए, इसकी वकालत क्यों होना चाहिए ? क्या हिंदी की पवित्रता को अन्य भाषाओं से कोई खतरा है ? उत्तर है – बिलकुल, कोई खतरा नहीं है। दूसरे शब्द हिंदी की प्रतिष्ठा में वृद्धि ही करेंगे।
मेरा भी यही मानना है कि क्या बाइक का उपयोग अधिक अच्छा नहीं फटफटी से। क्या वाशरूम बेहतर नहीं बाथरूम से। हमारे यहां जब लघुशंका के लिए जाना हो, तो कहते हैं -बाथरूम जाना है। यह प्रयोग भी गलत ही होता रहा है बरसों से । यदि समय के साथ सभ्यताएं बदलती हैं तब भाषा के परिवर्तन स्वीकार्य क्यों न हों। बचें नीरस शब्दों से हमारे सरकारी कार्यालयों में जिस हिंदी का उपयोग हो रहा है , वह बहुत प्रशंसनीय नहीं है। यहां हिंदी की गरिमा खंडित कर दी गई है। हेतु जैसे नीरस शब्द का बहुत ज्यादा इस्तेमाल अजीब भी लगता है। मध्यप्रदेश सरकार का जनसम्पर्क विभाग जरूर हेतु जैसे प्रवाह विहीन शब्दों के उपयोग से बचता है। इसी तरह समाचार पत्रों में समाचारों के शीर्षक में द्वारा शब्दों के उपयोग से सभी बचते हैं।
यह शब्द अर्थ का अनर्थ कर देता है। अब अखबारों में बोलचाल की हिंदी लिखी जा रही है। यही पाठक भी चाहते हैं। लेकिन हिंदी में बहुत ज्यादा अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। दरअसल भारत सरकार ने राजभाषा नीति में अठारह बिंदुओं को शामिल किया है । हिंदी को उसका वास्तविक सम्मान उस दिन हासिल हो जाएगा जब हम उदार मन से अनेक भाषाओँ के सम्प्रेषणीय शब्द हिंदी में समाहित कर लेंगे। इसकी हमारे देश के सभी राज्यों में आवश्यकता है । वर्ष 1968 में संसद ने राजभाषा संकल्प पारित किया था जिसके अनुपालन में केंद्रीय गृह मंत्रालय का राजभाषा विभाग हर साल एक वार्षिक कार्यक्रम जारी करता है । यह खेदजनक है कि संसदीय राजभाषा समिति की रिपोर्ट के पांचों खंडों पर जारी किए गए आदेशों का मंत्रालयों, विभाग और कार्यालयों ने पूर्ण अनुपालन नहीं किया। यह पालन अभी भी अपेक्षित और प्रतीक्षित है । सहज , बोधगम्य और लोकप्रिय हिंदी, दफ्तरों में सम्मान हासिल करेगी तब एक बड़ी आबादी तक इसकी गूँज जाएगी। इसलिए अन्य भाषाओं के पुष्प रूपी शब्द हिंदी के गुलदस्ते की सजावट के लिए बेहद मुफीद हैं।
कार्यालयों में बनें पुस्तकालय
हिंदी जन – जन की भाषा है और राष्ट्र की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है इसलिए सिर्फ यह न हो कि हिंदी को कठिन , संस्कृत निष्ठ बनाकर सम्मानीय मान लिया जाए बल्कि होना यह चाहिए कि भारतीय भाषाओं को सम्मान देते हुए राजभाषा और राष्ट्रभाषा हिंदी को पर्याप्त बढ़ावा मिले। हिंदी को सही अर्थो में सम्मान देने के लिए सम्पूर्ण समाज में आवश्यक वातावरण निर्मित किया जाए। यह भी होना चाहिए कि शासकीय और निजी कार्यालयों में बढ़ावा देने के लिए हिंदी में अच्छा साहित्य भी उपलब्ध कराया जाए । जाने – माने साहित्यकारों की कृतियाँ कांच की अलमारी से झांकते हुए कहें कि हमें पढ़ लीजिए। कार्यालयों में भी पत्र पत्रिकाओं के जरिये सरल हिंदी का प्रचार-प्रसार हो। अधिकारियों, कर्मचारियों में हिंदी को सम्मानित करने की दिशा में कोई उत्साह ही नहीं। उनमें अन्य शासकीय कार्यो की तरह समझ में आने वाली हिंदी का उपयोग बढ़ाने की स्वत:स्फूर्त भावना होना चाहिए । सरल हिंदी का उपयोग और हिंदी दिवस आयोजन भी किसी विवशता से वशीभूत होकर नहीं होना चाहिए। अच्छी हिंदी का प्रयोग करने वाले शासकीय सेवकों को प्रशंसा पत्र मिलना चाहिए।
हिंदी हितैषी शिवराज जी के प्रयास
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिस तरह हिंदी के पक्ष में खड़े हैं, उनके प्रयास उन्हें स्वतंत्र भारत के प्रमुख हिंदी हितैषी राज नेताओं में शुमार करते हैं। इस तरह के कार्य और प्रयास आजादी के बहुत पहले स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो में हिंदी सम्बोधन से और आजादी के बाद अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं ने किये हैं। राजेंद्र माथुर ने मध्य भारत में अच्छी हिंदी को स्थापित किया। हिंदी की लोकप्रियता बढ़ाने में योगदान दिया। मध्यप्रदेश के अन्य कई लेखक और पत्रकार भी हिंदी के प्रोत्साहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने अटलबिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय की शुरुआत की। देश में यह अनूठी पहल रही। दरअसल शिवराज सिंह चौहान जी ने भोपाल में हिंदी विश्वविद्यालय स्थापित करवाकर ऐतिहासिक महत्व का कार्य किया।
व्यापारी वर्ग भी आगे आए
शिक्षक और लेखक वर्ग के साथ ही उद्योगपति और व्यापारी हिंदी सेवी सम्मान के पात्र हैं। अभी तक तो यह होता आया है कि हिंदी दिवस पर कुछ लेखक या हिंदी प्राध्यापक पुरस्कृत हो जाते हैं । समाज के अनेक ऐसे वर्ग हैं, जो हिंदी की प्रतिष्ठा बढ़ाने का कार्य निरंतर कर रहे हैं उन्हें भी हिंदी दिवस पर सम्मानित किया जाना चाहिए । उदाहरण के लिए ऐसे व्यवसायी जो संस्थानों के हिंदी नाम जैसे संस्कृति , काव्या , परिधान, कलानिकेतन. आदि उपयोग में लाकर उन्हें लोकप्रिय बनाने का कार्य करते हैं । दरअसल अनेक उद्यमी और व्यवसायी भी सरल हिंदी के राजदूत और प्रचारक की तरह हैं।
नौजवान बढ़ाएं हिंदी का इस्तेमाल
वैश्वीकरण और बाजार की ताकतों से भी राष्ट्रभाषा हिंदी की अवमानना देखने के दृश्य सामने आते हैं । युवा वर्ग पाश्चात्य जीवन शैली का अनुसरण करते हुए हिंदी की उपेक्षा का अनुचित कार्य कर बैठते हैं । उन्हें मॉल संस्कृति, फैशन और बातचीत के आधुनिक लहजे का इस्तेमाल करते हुए यह स्मरण नहीं रहता कि सबसे पहले वे हिंदुस्तानी हैं और हिंदी उनकी राष्ट्रभाषा है । यदि युवा वर्ग हिंदी के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण का परिचय दे तो भारत में हिंदी की प्रतिष्ठा पूर्ण स्थिति बन सकती है ।
सरल हिंदी की पताका लहराते हुए सिर्फ हिंदी दिवस पर सक्रिय दिखने वाले मित्रों से यही कहना चाहता हूं कि हिंदी को रोजाना के व्यवहार और जीवन शैली में शामिल करें । कितना अच्छा हो यदि बात-बात में सॉरी, एस्क्यूजमी और थैक्यू कहने की बजाए धन्यवाद, शुक्रिया, आभारी हूं, क्षमा करेंगे आदि शब्दों का प्रयोग किया जाए । बोलचाल की हिंदी में समाहित अन्य भारतीय भाषाओं के शब्द हिंदी को सशक्त बनाते हैं । यह कोशिशें हिंदी के लिए आशीर्वाद से कम नहीं।