भोपाल एम्स ने चिकित्सा जगत में एक नई मिसाल कायम की है। अब बच्चों की जटिल हार्ट सर्जरी को आसान, सुरक्षित और कम समय में किया जा सकेगा, वो भी 3D प्रिंटिंग तकनीक की मदद से। यह भारत ही नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर इलाज के लिहाज से एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
डिजिटल डिटेल्स से तैयार होता है दिल का हूबहू मॉडल
एम्स भोपाल में अब एक ऐसी तकनीक विकसित की गई है, जिसमें मरीज की CT स्कैन, MRI और ब्लड रिपोर्ट्स को 3D प्रिंटर में फीड किया जाता है। इसके बाद मशीन मरीज के दिल का बिल्कुल हूबहू सिलिकॉन मॉडल तैयार कर देती है। इस मॉडल में नसों का आकार, उनकी जटिल बनावट, और दिल की संरचना बिल्कुल असली जैसी होती है।

डॉक्टर इस आर्टिफिशियल हार्ट पर सर्जरी से पहले प्रैक्टिस कर सकते हैं, जिससे जटिल ऑपरेशन भी आसानी से हो जाते हैं। इससे न केवल ऑपरेशन का समय घटता है, बल्कि जोखिम भी काफी कम हो जाता है। ये तकनीक विशेष रूप से उन बच्चों के लिए वरदान साबित हो रही है, जिनके दिल में जन्मजात समस्याएं होती हैं।
AI से लैस 3D प्रिंटर, बना सकता है कोई भी अंग
एम्स दिल्ली के न्यूरो इंजीनियरिंग लैब के साइंटिस्ट डॉ. रमनदीप सिंह के अनुसार, यह 3D प्रिंटर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से लैस है और सिर्फ दिल ही नहीं, फेफड़े, दिमाग, किडनी जैसे अन्य अंगों का भी सिलिकॉन मॉडल बना सकता है। डॉक्टर अंग की कठोरता और रंग भी खुद तय कर सकते हैं, जिससे सर्जरी से पहले हर पहलू की बारीकी से जांच की जा सके।
16 बच्चों को मिला नया जीवन
अब तक भोपाल एम्स में 16 बच्चों की जटिल हार्ट सर्जरी इसी तकनीक की मदद से की जा चुकी हैं। सर्जरी से पहले 3D मॉडल की सहायता से प्लानिंग की गई और हर केस में सफलता मिली। यह साबित करता है कि यह तकनीक आने वाले समय में हार्ट सर्जरी की दुनिया को पूरी तरह बदल सकती है।
राष्ट्रीय सिम्पोज़ियम में हुई तकनीक की प्रस्तुति
इस अत्याधुनिक तकनीक को “नेशनल सिम्पोज़ियम ऑन 3D प्रिंटिंग एंड मॉडलिंग” में प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में एम्स भोपाल के कार्डियोथोरेसिक विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. आदित्य सिरोही ने इस तकनीक की जानकारी दी। वहीं, उद्घाटन एम्स भोपाल के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने किया। देश और विदेश से सर्जन और 3D प्रिंटिंग विशेषज्ञ भी इस आयोजन में शामिल हुए।