इमरती की तरह टूट रहा सब्र का बांध

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भाजपा नेतृत्व ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से किया गया एक और वादा पूरा कर दिया। पहले उन्हें राज्यसभा भेजा गया था, पंद्रह माह बाद केंद्र में मंत्री बना दिया गया। इसे कांग्रेस की सरकार गिरा कर भाजपा को सत्ता में लाने का ईनाम माना जा रहा है। इससे पहले राज्य मंत्रिमंडल में उनके समर्थकों को पर्याप्त जगह दी गई थी। सिंधिया के केंद्रीय मंत्री बनने पर समर्थकों में उल्लास और जश्न का माहौल होना चाहिए था, पर उनकी आंखों से आंसू निकल रहे हैं।

पूर्व मंत्री इमरती देवी सिंधिया को बधाई देने दिल्ली पहुंची, लेकिन फूट-फूट कर रो पड़ीं। सिंधिया ने उन्हें सीने से लगाकर सांत्वना दी और खुद भी भावुक हो गए। यह स्थिति सिर्फ इमरती देवी की नहीं है, एंदल सिंह कंसाना, गिर्राज दंडोतिया सहित वे पूर्व विधायक भी इसी स्थिति में हैं जो उप चुनाव में विधानसभा का चुनाव हार गए थे। ये मंत्री पद और विधायकी दांव पर लगाकर सिंधिया के साथ आए थे। भरोसा दिलाया गया था कि हारने के बावजूद उन्हें सरकार में एडजस्ट किया जाएगा। सिंधिया के लगातार प्रयास के बावजूद यह संभव नहीं हो सका। सिंधिया मंत्री बनने के बाद नेतृत्व पर पहले जैसा दबाव बनाने की स्थिति में नहीं रहे। संभवत: इसीलिए समर्थकों के सब्र का बांध टूट रहा है। उनकी आंखों में आंसू हैं। वे अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं।

कहां चूक कर गए कैलाश-राकेश –

भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह केंद्रीय मंत्री बनने से वंचित रह गए। दावेदार के तौर पर इनके नाम प्रमुखता से लिए जा रहे थे। कैलाश को पश्चिम बंगाल चुनाव में अच्छे परफारमेंस के लिए ईनाम की उम्मीद थी। मालवा अंचल के थावरचंद गहलोत को मंत्रिमंडल से हटाने पर उनके मंत्री बनने की संभावना और बढ़ गई थी। लेकिन शपथ लेने वाले मंत्रियों की सूची जारी हुई, तो नाम नदारद था। राकेश सिंह भी नेतृत्व की पसंद के नेता हैं। मंत्री पद की दौड़ में वे भी शामिल थे।

उन्हें भी मनमसोस कर रह जाना पड़ा। सवाल यह है कि आखिर दोनों दिग्गज कहां चूक कर गए। कैलाश को लेकर कहा जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में अपेक्षाकृत सफलता न मिलने और विधायक बेटे के बल्ला कांड के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे अब तक नाराज हैं। राकेश के माथे पर उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते विधानसभा चुनाव के बाद मप्र में भाजपा के सत्ता से बाहर होने का दाग है। दूसरा, फग्गन को हटाकर राकेश के लिए जगह बनना थी लेकिन फग्गन को हटाने की बजाय उनका डिमोशन कर मंत्रिमंडल में बनाए रखा गया। वजह और कुछ भी हो सकती है लेकिन फिलहाल चर्चा में तो यही कारण हैं।

ब्रेक के बाद प्रमोशन, चुनौती कम नहीं-

इसे कहते हैं किस्मत का करिश्मा। नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में वीरेंद्र कुमार राज्य मंत्री थे, दूसरे कार्यकाल में उन्हें ब्रेक कर दिया गया। वजह बताई गई, उनका परफारमेंस ठीक नहीं था। अब मंत्रिमंडल के फेरबदल में उन्हें प्रमोशन देकर केबिनेट मंत्री बना दिया गया। वीरेंद्र को यह अवसर तब दिया गया जब बुंदेलखंड से प्रहलाद पटेल पहले से मंत्रिमंडल में शामिल हैं। चंबल-ग्वालियर अंचल के बाद बुंदेलखंड ऐसा दूसरा क्षेत्र हो गया, जहां से केंद्र में दो-दो मंत्री हैं।

चंबल-ग्वालियर से नरेंद्र सिंह तोमर पहले से मंत्री थे, अब ज्योतिरादित्य सिंधिया भी केबिनेट मंत्री बन गए। मंत्री बनने के बाद भी वीरेंद्र की राह निष्कंटक नहीं है। थावरचंद गहलोत के स्थान पर उन्हें सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग की जवाबदारी सौंपी गई है। अब उन्हें परफारमेंस करना होगा, प्रदेश ही नहीं देश भर में। वे अनुसूचित जाति वर्ग से हैं। उनके कंधों पर ही इस वर्ग को भाजपा के साथ जोड़ने की जवाबदारी है। वैसे भी वीरेंद्र के मंत्री बनने से लगा ही नहीं कि प्रदेश में कोई खुशी का माहौल है। सिंधिया को खूब बधाईयां मिलीं लेकिन वीरेंद्र को बधाई देने में नेताओं ने कंजूसी बरती। इसलिए वीरेंद्र के सामने परफारमेंस के जरिए खुद को साबित करने की बड़ी चुनौती है। बुंदेलखंड को तो उनकी ओर उम्मीद की नजर से देख ही रहा है।

 मार्गदर्शक मंडल में एक और नेता-

भाजपा का नेतृत्व जब से नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने संभाला, तब से ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेजने का सिलसिला जारी है। केंद्र एवं राज्यों के साथ मप्र भी इससे अछूता नहीं है। पहले कैलाश जोशी और विक्रम वर्मा जैसे वरिष्ठ नेता इसके दायरे में आए। इसके बाद बाबूलाल गौर तथा सरताज सिंह को तत्कालीन मंत्रिमंडल से हटाकर घर बैठाया गया। लोकसभा अध्यक्ष रहीं सुमित्रा महाजन टिकट की वाट जोहती रह गर्इं। उन्हें मार्गदर्शक मंडल में बैठने के लिए मजबूर कर दिया गया। अब बारी आई प्रदेश में पार्टी के अनुसूचित जाति वर्ग के दिग्गज नेता थावरचंद गहलोत की।

हालांकि गहलोत को मार्गदर्शक मंडल में भेजने का काम सम्मानजनक तरीके से किया गया। पहले उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बनाने का आदेश जारी हुआ, इसके बाद राज्यसभा और केंद्रीय मंत्रमंडल से इस्तीफा लिया गया। कैलाश जोशी, सरताज सिंह, बाबूलाल गौर तथा सुमित्रा महाजन को यह सम्मान नहीं मिला। इन्हें लालकृष्ण आडवाणी की तर्ज पर घर बैठाया गया। उधर आडवाणी जी राष्ट्रपति बनने का इंतजार करते रहे और इधर कैलाश जोशी, सुमित्रा महाजन आदि राज्यपाल बनने का, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने इनके नाम पर विचार नहीं किया गया। देखते हैं अगली बारी किसकी है?

फिर दिल्ली कूच कर गए कमलनाथ-

कमलनाथ एक माह बाद तीन-चार दिन पहले ही भोपाल आए थे और शनिवार को फिर दिल्ली कूच कर गए। कांग्रेस के हाल ये हैं कि कमलनाथ दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती हुए तो बताया गया कि वे रुटीन चेकअप के लिए गए हैं, बीमार नहीं हैं। फिर बीमारी की खबर आई। इसके बाद पता चला कि डाक्टरों ने उन्हें दो हफ्ते रेस्ट करने की सलाह दी है। इस तरह लगभग एक माह बाद वे भोपाल आए। इससे पहले वे नेमावर हत्याकांड के पीड़ितों से मिलने गए थे। भोपाल में वे विधायकों एवं प्रमुख नेताओं से मिले। बताया गया कि कमलनाथ अब स्वस्थ होकर आ गए हैं।

नए राज्यपाल मंगू भाई पटेल से सौजन्य मुलाकात के बाद उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर राज्य सरकार को घेरते हुए कहा कि अब वे प्रदेश भर का दौरा करेंगे। मजेदार बात यह है कि इस घोषणा के अगले ही दिन कमलनाथ फिर दिल्ली कूच कर गए। बीमारी से पहले उन्होंने जिलों के प्रभारी बनाए थे, इनमें से कोई प्रभार के जिलों में नहीं गया। सवाल यह है कि क्या कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस इसी तरह चलाएंगे? भाजपा और सरकार का मुकाबला वे दिल्ली में ही बैठकर करेंगे? कांग्रेस के कई नेता कमलनाथ के इस रवैए से निराश हैं। इसलिए उन्हें अब दिल्ली की सैर और बयानबाजी छोड़कर सड़क की राजनीति करना चाहिए।

दिनेश निगम ‘त्यागी’