खेती मे मिट्टी की दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार है ?

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दैनिक भास्कर अखबार मे माह अक्टूबर 2024 मे एक खबर छपी थी जो पश्चिमी मध्य प्रदेश के सबसे बड़ा जिला – धार मे कृषि से से संबन्धित थी । इस खबर के जानकारी अनुसार जिले मे किए गए मिट्टी परीक्षण के 31 हजार नमूनो मे से 29 हजार नमूनों मे मिट्टी मर चुकी है और इनमे कार्बन अपने न्यूनतम स्तर (0.1%) पर पहुँच गया है। 0.1 प्रतिशत कार्बन मे फसल उत्पादन सिर्फ केमिकल के माध्यम से ही किया जा सकता है, जिसका नतीजा है की किसानों को फसल उत्पादन करने के लिए ज्यादा से ज्यादा बीज, खाद, दवा डालना पड़ रहा है। इसका असर यह भी है की उपभोक्ता सही भोजन न करके सिर्फ केमिकल खा रहे है, और बीमार हो रहे है।
यह नहीं है की सरकार को यह सब पता नहीं है, या सरकार को स्थिति सुधारने की मंशा नहीं है। सरकार अपनी तरफ से भरसक प्रयत्न कर रही है, और खेती की दशा सुधारने के लिए अच्छी और बिलकुल सही नीतियाँ बना रही है। केंद्र सरकार द्वारा खेती और गाँव की दशा सुधारने के लिए बहुत सारी योजनाएँ प्रारम्भ किया गया है।

अभी हाल (03-10-2024) मे केन्द्रीय कैबिनेट ने कृषि से संबन्धित कुछ क्रांतिकारी पहल किए है/ योजना बनाई है, जिसके लिए एक लाख करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया गया है। इन योजनाओं के माध्यम से सरकार ना सिर्फ कृषि की दशा सुधारना चाहती है, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और उपभोगताओं को स्वच्छ भोजन उपलब्ध कराने पर भी ध्यान दे रही है। संभवतः यह पहली बार है की सरकार ने आम उपभोक्ताओं को भी ध्यान मे रखकर कृषि क्षेत्र के लिए कोई योजना बनाई हो। सरकार यूरिया और डीएपी की खपत कम करने के लिए नैनो यूरिया,नैनो डीएपी, प्रोम खाद आदि उत्पाद को भी प्रोत्साहित करने का प्रयास किया है, लेकिन इसका असर तभी होगा जब क्षेत्र के किसान इन उत्पादों के उपयोग के लिए जागृत होंगे।

धार जिले की बात करें तो इसको एक पिछड़े जिले के रूप मे देखा जाता है। गत दो-तीन दशको से इस जिले मे जल संचयन, जल संधारण, मृदा सुधार से संबन्धित बहुत कार्य हुए है। वर्तमान मे ही जिले मे कम से कम 25 एनजीओ कार्यरत होंगे जो कृषि और ग्रामीण आजीविका से संबन्धित प्रोजेक्ट कर रहे होंगे। इसके अलावा सरकार के एफ़पीओ प्रोत्साहन योजनाओं के अंतर्गत जिले मे 30 से अधिक एफ़पीओ (कृषक उत्पादक संघठन) बने हुए है। वर्तमान मे केंद्र सरकार के 10 हजार एफ़पीओ योजना के अंतर्गत धार जिले मे 25 एफ़पीओ पंजीकृत है, जिसके साथ हजारो किसान जुड़े है। इसके अतिरिक्त कई संघठन जिले मे जैविक खेती, प्राकृतिक खेती, परंपरागत खेती का प्रशिक्षण दे रहे है, और किसानों से इससे संबन्धित खेती भी करवा रहे है।

सभी जानते है की खेती मे यूरिया, डीएपी जैसे खाद और केमिकल कीटनाशको के कारण मिट्टी का और इंसान का स्वास्थ्य, दोनों खराब हो रहा है। मीडिया कई बार इस समस्या को हाइलाइट कर चुका है, जिसका संज्ञान लेकर सरकार ने कई नीतियाँ और योजनाओं की घोषणा किया है। लेकिन मुश्किल यह है की योजनाओं को अमल करने वाले जिम्मेदार अधिकारी इस बात को समझ नहीं रहे है। इस वर्ष भी यूरिया और डीएपी के लिए कई जिलों मे संघर्ष हुए है, जो ये साबित करता है की किसानों को केमिकल खाद और दवा का उपयोग कम करने की सूचना और समाधान नहीं पहुँच पाया है। हैरानी तो इस बात की यह है की जिम्मेदार अधिकारी, केमिकल का उपयोग कम करने के बजाए, उसे बढ़ाने के लिए जबरदस्ती किया जा रहा है।

ज्ञात हो की अप्रैल 2024 मे केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह आदेश जारी किया की केंद्र सरकार के दस हजार एफ़पीओ योजना मे बन रहे सभी एफ़पीओ को जुलाई 2024 तक खाद, बीज और दवा बेचने का लाइसेन्स लेना अनिवार्य है। जो एफ़पीओ लाइसेन्स नहीं लेंगे, उनको और उनके सीबीबीओ को आगे सरकार से कोई मदद नहीं मिलेगी। एक तरफ सरकार केमिकल खाद और दवा का उपयोग कम करने की कोशिश कर रही है, और दूसरी तरफ सरकार के जिम्मेदार अधिकारी, तुगलकी फरमान जारी कर रहे है जिससे केमिकल खाद और दवा का उपयोग बढ़े। सभी जिला कलेक्टर को निर्देश दिये गए, और सभी जिलों ने अपने यहाँ कार्यरत एफ़पीओ और सीबीबीओ की मीटिंग बुलाकर उनको तुरंत बीज, खाद, दवा आदि के लाइसेन्स लेने के निर्देश दिये।

मध्य प्रदेश की बात करें तो सरकार के 10 हजार एफ़पीओ योजना मे 629 एफ़पीओ बने है, और इनमे से जिन एफ़पीओ ने अपना व्यावसायिक गतिविधियां प्रारम्भ कर लिया है, उनमे से 90% एफ़पीओ केमिकल खाद, दवा बेचने का काम कर रहे है, क्योंकि उनको जबरदस्ती इसके लाइसेन्स दिये गए। अब इन सरकारी एफ़पीओ के कारण मिट्टी की दशा सुधरेगी या बिगड़ेगी, ये शायद जिम्मेदार अधिकारियों के समझ के बाहर है।

देश मे इस एफ़पीओ योजना अमल करने के लिए मुख्य रूप से दो सस्थाएं जिम्मेदार है – नाबार्ड और एसएफ़एसी (स्माल फार्मर्स अग्रिबिज़नस कॉन्सोर्शियम)। इनके द्वारा दिये जा रहे अनुदान से ही देश के एफ़पीओ और सीबीबीओ पल रहे है, इस लिए एफ़पीओ/ सीबीबीओ को इंका फरमान मानना आवश्यक है। ये संस्थाएं चाहे तो एफ़पीओ को सही दिशा मे ले जा सकते है, लेकिन इसमे बैठे अधिकारी जिनको एफ़पीओ या कृषि का कोई ज्ञान नहीं है की समझ और मंशा यही है की एफ़पीओ केमिकल खाद, दवा बेंचे। इसके लिए एफ़पीओ को केमिकल खाद, दवा के कंपनीयों के डीलरशिप दिलाये जा रहे है। इन एफ़पीओ की प्रगति भी इस बात से मांपी जा रही है की उन्होने कितना खाद, दवा बेंचा।

सरकार और जन प्रतिनिधियों को यह समझना चाहिए की उनके कृषि क्षेत्र को लेकर बनाए जा रहे योजनाओं को ध्वस्त करने वाले नाबार्ड, एसएफ़एसी और कृषि मंत्रालय मे बैठे हुए जिम्मेदार अधिकारी है। इन अधिकारियों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की उनके निर्णयों का असर देश के किसान और खेती पर क्या पड़ रहा है, और कैसे स्वच्छ भोजन ना मिल पाने के कारण आम जनता पीड़ित हो रही है। ये एफ़पीओ जो गाँव की उन्नति के साधन बन सकते थे, अब जहर की दुकान बनते जा रहे है, और अंत मे सारा दोष किसान पर मंढ़ा जाएगा की किसान खेती मे बहुत ज्यादा खाद डाल रहे है, और मिट्टी की हत्या कर रहे है।

क्या मिट्टी की दशा सुधारी जा सकती है? निश्चित रूप से किया जा सकता है, और इसके लिए कोई अलग से विशेष प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है। यही एफ़पीओ जिनको जहर का दुकान बनाया जा रहा है, को सही प्रशिक्षण देकर उन्हे टिकाऊ खेती करने और करवाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। लेकिन नाबार्ड, एसएफ़एसी और कृषि मंत्रालय मे बैठे जिम्मेदार अधिकारी अपने अज्ञानता और अहंकार से ऐसा होने नहीं देंगे।