मामला महाकाल मंदिर सेवक सत्यनारायण सोनी की गैर इरादतन हत्या का, प्रायश्चित करने में कैसी हिचक ?

ravigoswami
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महाकाल मंदिर गर्भगृह में होली खेलने के दौरान भड़की आग और व्यवस्था के चेहरे पर लगी कालिख अब इतिहास में दर्ज हो गई है। सरकार ने भी राहत की सांस ली है कि उस आग में झुलसे सभी घायल स्वस्थ होकर घर लौट चुके हैं।इस खुशी में उस सोनी परिवार का दर्द भी दब गया है जिनके दिलों में यह फांस हमेशा खटकती रहेगी कि परिवार के भरोसे की छत आग की उन लपटों में झुलसने के बाद तबाह हो गई।इस कमजोर आय परिवार को आर्थिक संबल इसलिए जरूरी है कि चूड़ी की दुकान और दो पहिया वाहनों को दुरुस्त करने से होने वाली आय ही गुजरबसर का सहारा है।

कायदे से होना तो यह चाहिए था कि महाकाल सेवक सत्यनारायण सोनी की अकाल मौत के इस सूतक काल (सवा महीने) में ही राज्य सरकार कुछ ऐसी आर्थिक सहायता कर देती जिससे इस परिवार को राहत मिल जाती।ऐसा नहीं कि सरकार ने सहायता नहीं की। आग में झुलसे 14 प्रभावितों को शासन ने तत्काल अधिकतम एक एक लाख की सहायता की थी, वह अंतरिम राहत सोनी परिवार को भी मिली थी।
माना जा रहा था कि सभी घायल स्वस्थ हो ही जाएंगे लेकिन सरकार और मंदिर प्रशासन समिति को भी कहां पता था कि एयर लिफ्ट कर मुंबई स्थित नेशनल बर्न यूनिट में उपचार के लिए दाखिल करने के बाद भी सोनी को बचाया नहीं जा सकेगा।
गर्मी, बारिश हो या कड़कड़ाती ठंड में हर सुबह 3.30 बजे होने वाली भस्म आरती से पहले पहुंचना और महाकाल को भस्म चढ़ाने के दौरान श्रद्धालु महिलाओं से पल्ला लेने का अनुरोध करने वाले स्व सोनी की कमी सदैव खलती रहेगी।महाकाल मंदिर की बेहतरी के लिए दशकों से जिन भी व्यवस्था का पालन हो रहा है उनमें स्व सोनी जैसे सैकड़ों ऐसे नियमित सेवक हैं जो न तो मानदेय के अभिलाषी हैं और न ही दान-दक्षिणा पाने की नीयत रखते हैं। ये सारे सेवक शासकीय विभागों से सेवानिवृत्त हैं या महाकाल की सेवा को ही अपने शेष जीवन का पुण्य प्रसाद मान कर निस्वार्थ जुटे रहते हैं।

मंदिर प्रशासन, पुलिस चौकी वाले कर्मचारियों, घटना वाले दिन होली का आनंद लेने वाले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों, हाइकोर्ट वाले वरिष्ठजनों की मौजूदगी के चलते एडिशनल पुलिस सहित अन्य विभागों का स्टॉफ तैनात था, मतलब व्यवस्था तो चाक चौबंद थी ही।मन भर के होली खेलने के दौरान आरती कर रहे पुजारी पर दूसरे पुजारी द्वारा तसला भरा गुलाल फेंकने के बाद भड़की आग के दोषियों को देख कर भी दृष्टिहीन हो गए अधिकारियों की आत्मा पता नहीं धिक्कार रही है या नहीं। वीडियो फुटेज को बार बार देखने के बाद भी दोषियों पर कार्रवाई करने में हिचकिचाहट और तीन दिन में मजिस्ट्रियल जांच की खानापूर्ति व्यवस्था का ईमान डगमगाने की पुष्टि कर रही है।

ऐसी घटना की पुनरावृति न हो इसके लिए उज्जैन से भोपाल तक मंथन किया जा रहा है लेकिन स्व सोनी की गैर इरादतन हत्या के आरोपियों को नजरअंदाज करते रहना दिल्ली में हुए तंदुर कांड की शिकार जेसिका लाल की भी याद ताजा करता है। जेसिका लाल के हत्यारों के प्रति बरती नरमदिली के बाद पूरे देश में सवाल गूंजा था हू किल्ड जेसिका लाल? उज्जैन के धर्म प्रेमियों में तो तौला भर की जुबान हिलाने और व्यवस्था से ऐसा सवाल पूछने की हिम्मत भी नहीं है कि सोनी की मौत का गुनहगार कौन?

इसी महाकाल मंदिर में 90 के दशक में सोमवती अमावस्या पर हुई भगदड़ में मृत 34 श्रद्धालुओं की असमय मौत पर तत्कालीन सरकार ने तुरंत आर्थिक सहायता जारी कर प्रायश्चित किया था।यही नहीं अभी कोविड काल में मंदिर प्रशासक समिति के एक कर्मचारी की मौत, कार्य के दौरान हृदयाघात के कारण मृत एक अन्य कर्मचारी के परिवार को 5-5 लाख की अंतरिम सहायता की तत्परता दिखाई थी। माना कि स्व सोनी मंदिर प्रशासक समिति के कर्मचारी नहीं थे लेकिन उन जैसे सैंकड़ो सेवक हैं जिनके निस्वार्थ सेवाभाव से मंदिर में प्रतिदिन भस्मारती सहित दर्शन को आने वाले हजारों श्रद्धालुओं को बेवजह परेशानियों से नहीं जूझना पड़ता है।

महाकाल लोक निर्माण में धांधली करने वालों को संरक्षण देने वाली तत्कालीन सरकार के मुखिया को भी महाकाल ने नहीं बख्शा है।अग्निकांड की इस घटना के दोषियों को पहले ही पुलिस के हवाले करने के साथ ही पुजारी पद से भी हटा दिया जाता तो देश-दुनिया में फैले महाकाल भक्तों में व्यवस्था के प्रति विश्वास और मजबूत हो जाता।मंदिर की व्यवस्था बेहतर बनाए रखने वाले यह कैसे भूल गए कि यह हादसा मुख्यमंत्री के गृह नगर में हुआ है।कोई मुख्यमंत्री नहीं कहेगा कि महाकाल मंदिर में हुई इस घटना के दोषियों को बख्श दो।मुख्यमंत्री डॉ यादव खुद इस घटना से क्षुब्ध हैं।वर्तमान सीएम की छवि, पूर्ववर्ती से भी बेहतर बनाने में जुटे वल्लभ भवन के वरिष्ठ अधिकारी भी हत्प्रभ हैं कि तत्काल सख्त कार्रवाई वाला कदम उठाने की अपेक्षा प्रशासनिक अनुभव की कमी क्यों सार्वजनिक होने दी।

इन तमाम विसंगतियों के बाद भी जिला एवं पुलिस प्रशासन ने स्व सोनी की अंतिम यात्रा में शामिल होकर जो मानवीयता दिखाई उसकी आम उज्जैनवासियों ने सराहना भी की है।व्यवस्था संवेदनशील भी होती है उज्जैन के लोगों को यह भरोसा तब और बढ़ जाएगा जब स्व सोनी के परिवार को समुचित सहायता राशि के विषय में भी सोचा जाए। माना कि आचार संहिता के चलते मुख्यमंत्री स्वैच्छानुदान से या सरकार अपने स्तर पर किसी तरह की आर्थिक सहायता की उदारता दिखाने में असहाय है लेकिन महाकाल मंदिर प्रबंधन समिति तो मदद करने में सक्षम है। यह समिति कुछ ना करे तो इस घटना का कारण बने पुजारी ही पाट पर बैठने वाले बाकी पुजारियों को दान राशि से ही कुछ दान करने या अपने यजमानों को पुण्य कार्य के लिए प्रेरित करें।पंडे-पुजारियों का दिल नहीं पसीजता हो तो शहर के दानवीरों, सामाजिक संगठनों को शहर की नाक ऊंची रखने के लिए इस परिवार को आर्थिक संबल प्रदान करने की उदारता दिखाना चाहिए।

♦️मुख्यमंत्री दिखाए यह उदारता
-मुख्यमंत्री यादव चाहें तो इस हादसे में असमय मौत का शिकार हुए स्व सोनी को स्वैच्छानुदान से राशि जारी कर सकते हैं।
-परिवार के किसी सदस्य को नौकरी के लिए नियम शिथिल कर सकते हैं।
-मंदिर विकास कार्यों के अंतर्गत निर्मित की जाने वाली दुकानों में से एक दुकान सोनी परिवार को आवंटित करने के आदेश भी जारी कर सकते हैं।

♦️”मंदिर समिति की बैठक में तय करेंगे”
महाकाल मंदिर गर्भगृह में आग भड़कने की घटना में झुलसे सभी घायल बेहतर उपचार के बाद स्वस्थ हैं। अरबिंदो अस्पताल से उन सभी की छुट्टी हो गई है। इस घटना में दिवंगत महाकाल के सेवक स्व सत्यनारायण सोनी के परिजनों को आर्थिक सहायता नहीं दी है।मंदिर समिति की बैठक में इस पर निर्णय लिया जाएगा। -कलेक्टर नीरज सिंह

♦️”घायलों को आर्थिक मदद दी थी”
आग में झुलसने से घायल हुए सभी प्रभावित अब स्वस्थ हैं।घटना के तत्काल बाद सत्यनारायण सोनी सहित सभी घायलों को एक-एक लाख रु की सहायता दी गई थी।स्व सोनी के परिजनों को आर्थिक मदद का निर्णय अकेला मैं नहीं ले सकता। जिला प्रशासन अधिकृत है।मंदिर समिति की बैठक की तारीख अभी तय नहीं है।संभवत: उसी में निर्णय लिया जाएगा।
-मृणाल मीणा, प्रशासक महाकाल मंदिर समिति

♦️मंदिर समिति का प्रावधान
मंदिर समिति पूर्ण रूप से शासन अधीन नहीं होने से मंदिर व्यवस्था संबंधी अपने नियम बनाती रही है।समिति ने बीते वर्षों में जो नियम जोड़े उसी के तहत समिति की सेवा में रहते अस्वाभाविक मौत का शिकार हुए कर्मचारियों के परिजनों को 5-5 लाख की सहायता की है।समिति चाहे तो स्व सत्यनारायण सोनी के मामले में भी अधिकतम 5 लाख की मदद कर सकती है।