चंद्रयान-3, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अद्वितीय मिशन के तहत, अपने विक्रम लैंडर पर लगे “इंस्ट्रूमेंट ऑफ लूनर सीस्मिक एक्टिविटी” (ILSA) पेलोड के माध्यम से चंद्रमा की सतह पर हुए भूकंप की प्राकृतिक घटना को रिकॉर्ड करने में सफल रहा है। यह मिशन चंद्रमा की गहराईयों में नए ज्ञान की खोज के लिए निर्मित है और इसने भूकंप के स्त्रोत की जांच की शुरुआत की है।
ILSA पेलोड का अद्वितीय तकनीकी दृष्टिकोण
ILSA पेलोड, जो कम्पैक्ट “माइक्रो इलेक्ट्रो मैकेनिकल सिस्टम” (MEMS) तकनीक पर आधारित है, चंद्रमा की सतह पर पहली बार ऐसा इंस्ट्रूमेंट है जो भेजा गया है। इसके सहायकता से चंद्रमा पर होने वाले किसी भी कंपन को मापन करने की क्षमता हो रही है, चाहे वो प्राकृतिक हो या अन्य आर्टिफिशियल घटना।
ILSA पेलोड का काम तंत्र
ILSA में छह उच्च संवेग वाले “एक्सेलोमीटर्स” का एक विशेष क्लस्टर होता है, जिन्हें भारत में सिलिकॉन माइक्रोमशीनिंग प्रोसेस के माध्यम से तैयार किया गया है। इन उपकरणों का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर होने वाले किसी भी कंपन को मापना है, जिसमें रोवर या लैंडर के इम्पैक्ट की स्थिति भी शामिल है।
सूचना का आगाज़ और तैयारी
ILSA पेलोड का डिज़ाइन और तैयारी बेंगलुरु के “लैबोरेटरी फॉर इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स सिस्टम” (LEOS) में किया गया था, और इसके तैयारी में प्राइवेट इंडस्ट्रीज का भी सहयोग हुआ। ILSA पेलोड को चंद्रमा की सतह पर स्थापित करने की प्रक्रिया का निर्देश बेंगलुरु के “यूआर राव सैटेलाइट सेंटर” (URSC) में तैयार किया गया था।
भविष्य का दिशानिरूपण
इस घटना के बाद, इसरो ने भूकंप के स्त्रोत की जांच जारी करने का काम शुरू किया है ताकि इसके पीछे के कारणों को समझ सके। चंद्रयान-3 का मिशन चंद्रमा के अदृश्य रहस्यों को प्रकट करने के लिए और अंतरिक्ष अनुसंधान में भारत की महान उपलब्धियों में से एक है।