संसार में जो अकार्य में लगा है, वह नेत्रहीन है, जो दुखियों के दुःख नहीं सुनता वह बधिर : मुनिराज ऋषभरत्नविजयजी

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By Ritik RajputPublished On: August 19, 2023

Indore : मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने जीवन के सुंदर निर्माण के लिये चार बातों से सावधानी बरतने को कहा। संसार में जो अकार्य में लगा है वह नेत्रहीन है, जो दुखियों के दुःख नहीं सुनता वह बधिर और जो अवसर आने पर प्रिय नहीं बोलता वह मूक है। तीनों में नेत्र, कर्ण एवं स्वर की शारीरिक विकृति नहीं है फिर भी वे इन्हीं श्रेणी में माने जाते हैं।

1. अकार्य क्या है – जिस कार्य में परमात्मा की आज्ञा न हो उसमें संलग्न होना। लोक-परलोक विरुद्ध कार्य का त्याग करने वाला लोक-प्रिय होता है। चोरी, झूठ एवं पाप करना अकार्य की श्रेणी में ही आते हैं जिनसे भविष्य में दुःखों की बाढ़ आ जाती है। ज्ञानी-भगवंत कहते हैं इस संसार में मानव अकार्य से बच नहीं सकता है परंतु परमात्मा की शरण, संसार का त्याग एवं संयम जीवन अकार्य से बचा सकते है। आँख होते हुए भी अकार्य में लगा व्यक्ति अंधा कहलाता है। अकार्य में रत न होने के चार स्टेप्स हैं। (1) जड़ पदार्थों की आसक्ति से दूर रहना, (2) व्यक्ति के प्रति राग न होना, (3) विचार की आसक्ति न रखना एवं (4) अहंकार की आसक्ति से विरक्ति।

संसार में जो अकार्य में लगा है, वह नेत्रहीन है, जो दुखियों के दुःख नहीं सुनता वह बधिर : मुनिराज ऋषभरत्नविजयजी

संसार में जो अकार्य में लगा है, वह नेत्रहीन है, जो दुखियों के दुःख नहीं सुनता वह बधिर : मुनिराज ऋषभरत्नविजयजी

2. बधिर कौन – दुखियों, परेशान के दुःख सुनकर उनको दूर करने का प्रयास न करने वाला बहरा ही कहलाता है। जीवों का क्रंदन सुनकर जो नंदक न बन सके वह बधिर समान है। दुखियों के दुःख सुनकर उनको दूर करने का प्रयास करने का कार्य करना चाहिये । परमात्मा महावीर स्वामी ने एक दुःखी का दुःख दूर करने के लिये अपना एक मात्र देवदुष्य वस्त्र भी दे दिया था। पुण्य से अधिक कभी नहीं मिलता फिर भी दुःख दूर करने का कार्य करना ज़रूरी है।

3. मूक कौन – उचित अवसर आने पर जो प्रिय वचन नहीं बोल सकता वह मूक है। यदि हमारी वाणी से किसी के दुःखों का अंत हो सकता है तो मूक नहीं बनना चाहिये। दुखी को सांत्वना व सहानुभूति देना एवं मधुर वचन बोलना जले पर मरहम लगाने जैसा है । एक चिकित्सक सहानुभूति एवं प्रेम से बोलकर रोगी का बहुत सा दर्द कम कर देता है। चुप रहने से अधिक अच्छा है दुखी को आश्वासन से आश्वस्त करना।

संसार में जो अकार्य में लगा है, वह नेत्रहीन है, जो दुखियों के दुःख नहीं सुनता वह बधिर : मुनिराज ऋषभरत्नविजयजी

 

मुनिवर ने अकार्य, बहरेपन मूकता को त्यागने और पदार्थों, व्यक्तियों, विचारों एवं अहंकार के प्रति आसक्तिसे दूरी बनाए रखने पर बल दिया जिससे परमात्मा एवं मोक्ष का मार्ग सरल बनें। युवा राजेश जैन ने बताया की इस अवसर पर श्री अक्षयजी सुराणा, पार्श्व मुक्ति युवा मंच के सदस्य, श्री देवेन्द्रजी जैन धारवाले आदि व कई पुरुष व महिलायें उपस्थित थीं। श्री दिलीप भाई शाह ने श्री संघ में श्री सिद्धि तप के तपस्वियों की तीन दिवसीय कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी भी दी। आज पहला दिन था जिसमें सभी तपस्वी महिलायें शगुन की मेहंदी लगा रही है।
युवा राजेश जैन