आज भारत के हर कोने में मकर सक्रांति का त्यौहार बनाया जाता है और तमिलनाडु में पोंगल पर्व यानि मकर संक्रांति के अवसर पर प्रसिद्ध जल्लीकट्टू खेला जाना शुरू हो जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति जल्लीकट्टू खेल में सांडों पर काबू पा लेता है उसपर भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और कृपा करते हैं। इस खेल जल्लीकट्टू के लिए खेल में लिए जाने वाले सांडों को विशेष रूप से ट्रेनिंग दी जाती है और यह खेल थोड़ा मुश्किल भी माना जाता है क्योकि इस खेल में सांड पर काबू करना इतना आसान नहीं होता है यह केवल दिखने में आसान होता है और बहुत से लोग इसकी तुलना बुलफाइटिंग से करने लेकिन वास्तविकता में यह दोनों खेल एक दूसरे से बहुत अलग है।
जानिए कैसे खेलते हैं जल्लीकट्टू
जल्लीकट्टू खेल में विशेष तरीके से प्रशिक्षित सांडों को एक बंद स्थान से छोड़ा जाता है बाहर खेलने वालों की फौज मुस्तैद खड़ी रहती जिनको इन सांडो को काबू में करना होता है, बेरिकेटिंग से बाहर बड़ी संख्या में दर्शक इसका आनंद उठाने के लिए जमे रहते हैं। जैसे ही सांड को छोड़ा जाता है, वह भागते हुए बाहर निकलता है, लोग उसे पकड़ने के लिए टूट पड़ते हैं. असली काम सांड के कूबड़ को पकड़कर उसे रोकना और फिर सींग में कपड़े से बंधे सिक्के को निकालना होता है। लेकिन बिगड़ैल और गुस्सैल सांड को काबू में करना आसान नहीं होता जिससे अधिकांश व्यक्तियों को असफलता हाथ लगती है और कई लोग इस कोशिश में चोटिल भी हो जाते हैं। कइयों ने तो इस खेल में अपनी जान भी गवा दी है, लेकिन परंपरा और रोमांच से जुड़े इस खेल के प्रति खिलाड़ियों और दर्शकों का जुनून गजब का होता है,जो विजयी होते हैं उनको ईनाम मिलता है। तमिलनाडु के लोगो की मान्यता है जो भी इस खेल में विजयी होता है उस पर भगवन शिव अत्यधिक प्रसन्न हो जाते है।