सूरज की स्टडी करने के लिए चीन दुनिया का सबसे बड़ा टेलिस्कोप का छल्ला बना रहा है. ऐसी और इतनी बड़ी वैज्ञानिक आकृति पूरी दुनिया में कहीं नहीं है. इस छल्ले के चारों तरफ बड़े-बड़े टेलिस्कोप लगे हैं, जिनकी मदद से चीन सौर विस्फोट, सौर लहर और सौर तूफानों की स्टडी करेगा. ताकि धरती पर आने वाली आपदा से बचा जा सके.
दक्षिण-पश्चिम चीन के सिचुआन प्रांत में एक पहाड़ी मैदान में इस टेलिस्कोप को बनाया जा रहा है. इसका नाम रखा गया है दाओचेंग सोलर रेडियो टेलिस्कोप (Daocheng Solar Radio Telescope – DSRT). पूरा होने के बाद पूरे छल्ले में कुल मिलाकर 313 टेलिस्कोप एंटीना होंगे. हर एक एंटीना का व्यास 19.7 फीट है. जबकि पूरे छल्ले का व्यास 3.13 किलोमीटर है.यह टेलिस्कोपिक छल्ला सूरज की तस्वीरें रेडियो तरंगों के जरिए बनाएगा. कोरोनल मास इजेक्शन (Coronal Mass Ejection – CMEs) एक तरह का सौर विस्फोट है, जो सूरज के धब्बों से निकलता है. इससे निकलने वाली सौर लहरें अगर धरती की ओर मुड़ जाती हैं तो इससे काफी दिक्कतें आ सकती हैं. पृथ्वी पर मौजूद बिजली के ग्रिड्स ठप हो सकते हैं. सैटेलाइट्स बेकार हो सकते हैं. मोबाइल संचार प्रणाली बंद हो सकती है. यहां तक कि अंतरिक्ष में रह रहे एस्ट्रोनॉट्स की जान को खतरा हो सकता है.
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चीन के वैज्ञानिकों ने उम्मीद जताई है कि यह टेलिस्कोप इस साल के अंत तक बन जाएगा. यह छल्ला चीन के मेरिडियन प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो धरती से अंतरिक्ष के वातावरण की स्टडी के लिए बनाया गया है. इस प्रोजेक्ट में चाइनीज स्पेक्ट्रल रेडियोहेलियोग्राफी भी शामिल हैं, जिसके जरिए चीन के वैज्ञानिक मंगोलिया से सूरज की गतिविधियों पर नजर रखेंगे.रेडियोहेलियोग्राफी में 100 डिश-एंटीना होंगे. ये थ्री-आर्म स्पाइरल अरेंजमेंट में लगे होंगे. ताकि सूरज की ज्यादा बड़े फ्रिक्वेंस बैंड के साथ स्टडी कर सकें. जो DSRT न कर पाए. इस प्रोजेक्ट को लेकर पूरे चीन में वहां की सरकार ने 31 स्टेशनों पर 300 यंत्र लगाए हैं. इस प्रोजेक्ट में नेशनल स्पेस साइंस सेंटर समेत 10 संस्थान और यूनिवर्सिटी शामिल हैं.
दुनिया में सबसे भयावह सौर तूफान 1859, 1921 और 1989 में आए थे. इनकी वजह से कई देशों में बिजली सप्लाई बाधित हुई थी. ग्रिड्स फेल हो गए थे. कई राज्य घंटों तक अंधेरे में थे. 1859 में इलेक्ट्रिकल ग्रिड्स नहीं थे, इसलिए उनपर असर नहीं हुआ लेकिन कम्पास का नीडल लगातार कई घंटों तक घूमता रहा था. जिसकी वजह से समुद्री यातायात बाधित हो गई थी. उत्तरी ध्रुव पर दिखने वाली नॉर्दन लाइट्स यानी अरोरा बोरियेलिस (Aurora Borealis) को इक्वेटर लाइन पर मौजूद कोलंबिया के आसमान में बनते देखा गया था. नॉर्दन लाइट्स हमेशा ध्रुवों पर ही बनता है.
1989 में आए सौर तूफान की वजह से उत्तर-पूर्व कनाडा के क्यूबेक में स्थित हाइड्रो पावर ग्रिड फेल हो गया था. आधे देश में 9 घंटे तक अंधेरा कायम था. कहीं बिजली नहीं थी. पिछले दो दशकों से सौर तूफान नहीं आया है. सूरज की गतिविधि काफी कमजोर है. इसका मतलब ये नहीं है कि सौर तूफान आ नहीं सकता. ऐसा लगता है कि सूरज की शांति किसी बड़े सौर तूफान से पहले का सन्नाटा है.