हर प्रदेश के राजनीती में जाति और धर्म पर अक्सर बातें होती है और उसी हिसाब से वह की राजनीती का स्तर तय किया है। विहार विधानसभा में पार्टी को जीतने या हारने में जातीय राजनीति ने बहुत अहम भूमिका निभाई है। सभी पार्टीयो ने इस जातिए राजनीति का ध्यान रखते हुए टिकिट का बटवारा किया था। एक ओर बीजेपी ने किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया, वहीं आरजेडी ने यादवों पर भरोसा जताया।
हिंदुस्तान टाइम्स में छपी खबर के अनुसार , बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजे आने के बाद पता चला है कि ऊंची जाति में सबसे ज्यादा राजपूत विधानसभा पहुंचे हैं। वहीं यादवों की हिस्सेदारी 2015 के मुकाबले कम हुई है।
यादव की हिस्सेदारी काम हुई
इस बार आरजेडी ने अपनी पार्टी के 44 सीटों पर यादवों को उम्मीदवार बनाया था इस में से सिर्फ 26 से अपनी जीत दर्ज कर पाए। वही दूसरी पार्टियों के बात करे तो सभी पार्टी ने मिलकर सिर्फ 16 यादव प्रत्याशियों को चुनावी जंग में उतारा था। इस बार के चुनाव में ओबीसी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी यादवों की ही थी लेकिन यह संख्या 2015 विधानसभा के मुकाबले काफी कम थी।
50 प्रतिशत से ज्यादा नए चेहरे
बिहार विधानसभा चुनाव की यह खास बात रही कि वह की जनता ने इस बार नए चेहरे पर भरोसा दिखाया है। इस बार 52 फीसदी ऐसे विधायक ऐसे है जो पहली बार विधानसभा में जायेंगे। इस नए विधायकों में ऊंची जाति के विधायकों का नंबर 23.9 फीसदी से 29.2 फीसदी हो गया है। वही ओबीसी की हिस्सेदारी घट कर 48.6 से 40.7 पर है।
बीजेपी-कांग्रेस ने ऊंची जाति पर जताया भरोसा
एक तरफ बीजेपी और कांग्रेस ने अपनी पार्टी की टिकिट ऊंची जाति के लोगों को टिकट दिया। वहीं दूसरी तरफ बिहार की दो मुख्य पार्टी आरजेडी और जेडीयू ने यादव और कुर्मी प्रत्याशियों को चुनाव में टिकिट देकर उतारा। मिली हुई जानकारी के अनुसार बीजेपी के 47.3 फीसदी उम्मीदवार ऊंची जाति के थे। जिसमें अधितर राजपूत और बनिया थे। बीजेपी ने किसी भी मुस्लिम को अपना प्रत्याशी नहीं बनाया। वहीं कांग्रेस ने 40 फीसदी टिकट ऊंची जाति के लोगों को दी। और 17 फीसदी टिकट मुस्लिम उम्मीदवार को दी गईं।