निशब्द….अफसोस….बेहद त्रासदपूर्ण।अभी 3 मई की तो बात है। विजेश भाई ने फोन कर कहा,आप तो हमारे बब्बर शेर हो,मध्य प्रदेश के गौरव हो। बंगाल में आपने भाजपा को तीन से 76 सीटों पर पहुंचा कर जो इतिहास रचा है, वह काबिले तारीफ है।मेरा ध्यान उनकी बातों से अधिक उनकी दर्द भरी कमजोर आवाज़ पर गया।चिंतित भाव से जब पूछा कि आपकी आवाज दबी,दबी सी क्यों है तो लगभग टालने वाले अंदाज़ में बोले,कुछ खास नहीं। आप आओगे तो मिलकर अच्छा हो जाऊंगा।मैंने भी तय किया कि इंदौर लौटते समय उनसे भोपाल में मिलकर जाऊंगा। हे ईश्वर, ये तेरा कैसा विधान है?
समझ ही नहीं पा रहा हूं कि इतना कर्मठ,यारबाज,कुशल संगठक किसी बीमारी की चपेट में कैसे आ गया? वे तो कभी कोई लड़ाई नहीं हारे, तब कमबख्त कैंसर कैसे हावी हो गया। मप्र भाजपा के बीते दो दशक में ऐसा कोई काम नहीं, जिसमे वे शरीक न हों। चुनाव और मीडिया प्रबंधन में वे बेजोड़ थे।
वे एकसाथ परदे के आगे और पीछे दमदार भूमिका निभाते थे।मीडिया,भाजपा,प्रशासन, समाज के बीच वे कभी रस्सी पर चलकर तो कभी राजमार्ग पर सरपट दौड़कर तालमेल बिठा लेते थे।इतना सब करते हुए भी अहंकार से परे अहरनिश कर्म प्रधान कृतित्व के वे धनी रहे।
उनकी एक खूबी यह भी थी कि वे बुजुर्ग,प्रौढ़ और युवा पीढ़ी के साथ भी अद्भुत सामंजस्य बिठा लेते थे। विजेश भाई अनेक मौकों पर सैनिक से लेकर सेनापति तक का दायित्व सहजता से निभा ले जाते। वे याद नहीं आयेंगे,बल्कि भुलाए ही न जा सकेंगे।
यह अफसोस हमेशा रहेगा कि उनसे मिलने का वादा पूरा न हो सका।