सत्ता परिवर्तन की अटकलों के बीच 17 साल बाद मिली विजयवर्गीय को राहत, पेंशन घोटाला ख़ारिज

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नितिनमोहन शर्मा

प्रदेश की सत्ता का चेहरा बदलने की चल रही सुगबुगाहट के बीच कैलाश विजयवर्गीय अब क्लीन चिट करार दे दिए गए। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय की बड़ी तरक्की की राह का रोड़ा बना पेंशन घोटाला ख़ारिज हो गया है। सरकार ने इसे ये कहते हुए खत्म कर दिया कि ऐसा कुछ हुआ ही नही, न साबित किया जा सका। इस फैसले से विजयवर्गीय को 17 साल बाद राहत मिली। जब जब उनके हिस्से में बड़ी जवाबदारी की बात आई, विरोधियों में तब तब इस पेंशन घोटाले को आगे कर उनकी राह रोक दी। इस काम मे विजयवर्गीय को अपने ही दल की गुटीय राजनीति का लंबा शिकार होना पड़ा। वे पहले दिन से कह रहे थे कि पेंशन वितरण में घोटाले जैसा कुछ नही। फिर भी ये मामला 17 बरस तक खींचा गया। अब विजयवर्गीय के लिए बड़ी कुर्सी के रास्ते खुल गए है। सूत्र बताते है कि 17 साल का इंतजार… जल्द पुरुस्कार में तब्दील होगा।

विजयवर्गीय के महापौर कार्यकाल के दौरान कांग्रेस ने इसे घोटाला करार देते हुए मामला कोर्ट तक ले जाया गया था। पार्टी के दिग्गज नेता स्व सुरेश सेठ के हाथों में इस कथित घोटाले की कमान थी और उनकी अगुवाई में ही कांग्रेस तब के ताकतवर नेता विजयवर्गीय से दो दो हाथ कर रही थी। तब प्रदेश की सत्ता पर कांग्रेस काबिज थी और मुखिया दिग्विजयसिंह थे। बाद में प्रदेश की सत्ता में भाजपा की एंट्री हो गई। बस तब से लेकर अब तक कांग्रेस तो कुछ कर नही पाई लेकिन भाजपा के ही बड़े नेता इस घोटाले को लेकर मालवा निमाड़ के इस क्षत्रप की राह रोकते रहे। जब जब विजयवर्गीय सत्ता या संगठन में किसी बड़े पद के नजदीक पहुंचते दिखते, विरोधी दबे पांव पेंशन घोटाला आगे कर देते। पार्टी के इस गुटीय झगड़े में विजयवर्गीय के साथ साथ इंदौर का भी नुकसान हो रहा था और यहां का नेता प्रदेश की राजनीति में ऊंचे मुकाम पर नही जा पा रहा था।

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अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हटाकर प्रदेश में किसी अन्य नेता को सीएम बनाने की बात चल रही है। संगठन में भी फेरबदल के आसार प्रबल है। ऐसे में विजयवर्गीय को इस घोटाले से मुक्ति कई नये समीकरण ओर सम्भावनाओ को जन्म दे रही है। घोटाले की समाप्ति का ये फैसला स्वयम शिवराज सरकार का है। वो चाहती तो विजयवर्गीय को इससे कई पहले ही क्लीन चिट मिल जाती। लेकिन येन केन प्रकारेण पेंशन घोटाला जिंदा रखा गया।

शह मात के खेल में विजयवर्गीय ने बहुत कुछ खोया

पार्टी के अंदर चल रहे इस शह मात का खेल बाहर तो नही आया लेकिन इसके कारण कैलाश विजयवर्गीय ने बहुत कुछ खोया। वे प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के उदय होने के पहले ही एक बड़े नेता के रूप में उभरकर सामने आ गए थे। मालवा निमाड़ का वे क्षत्रप के रूप में स्थापित भी हो गए थे। दबंग कार्यशैली ओर विचारधारा आधारित राजनीति के चलते विजयवर्गीय आरएसएस की पहली पसन्द रहे। तब के संघ के सबसे ताकतवर नेताओ में एक सुरेश सोनी का वरदहस्त भी विजयवर्गीय को रहा करता था। आज भी संघ में विजयवर्गीय की रैंकिंग उपर ही है। लेकिन इस कथित घोटाले ने विजयवर्गीय से बहुत कुछ छुड़वाया।

अन्यथा ये संभावनाशील लीडर अपने साथ आहिल्यानगरी का नाम भी समय से पहले रोशन करता। प्रदेश में सत्ता की कुर्सी से चिपके नेताओ ने इसी घोटाले के जरिये विजयवर्गीय की राह बार बार रोकी। दिल्ली दरबार तक भी इस घोटाले के गुण दोष गाहे बगाहे भेजे जाते रहे ताकि शीर्ष नेतृत्व भी विजयवर्गीय को लेकर अनमना बना रहे। सत्ता में बने रहने के तमाम हथकण्डे आजमाने के बाद भी अब जबकि ऐसे नेताओं के हाथों से सत्ता फिसलती दिख रही है। वे अब सब तरफ से घिरा गए है। लिहाजा पेंशन घोटाले को रोके रखने वाले असली नेता भी सामने आ गए। दिल्ली दरबार को सब भनक लगते ही विजयवर्गीय क्लीन चिट साबित हो गए।