आज है फाल्गुन कृष्ण एकादशी/द्वादशी तिथि, इन बातों का रखें ध्यान

Mohit
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विजय अड़ीचवाल

आज रविवार, फाल्गुन कृष्ण एकादशी/द्वादशी तिथि है।
आज पूर्वाषाढ़ा/उत्तराषाढा नक्षत्र, “आनन्द” नाम संवत् 2078 है
(उक्त जानकारी उज्जैन के पञ्चाङ्गों के अनुसार है)

– आज विजया एकादशी व्रत (पेड़ा) है।
– कल सोमवार को सोम प्रदोष व्रत है।
– नर्मदा नदी से वाणलिङ्ग प्राप्त होता है। वाणलिङ्ग की पूजा इन्द्र आदि देवों ने भी की थी।
– नर्मदा नदी से वाणलिङ्ग निकालकर पहले परीक्षा होती है, फिर संस्कार।
– पहले एक बार वाणलिङ्ग के बराबर चावल लेकर तौलें। फिर दूसरी बार उसी चावल से तोलने पर लिङ्ग हल्का ठहरे तो गृहस्थों के लिए वह लिङ्ग पूजनीय है।
– तीन, पॉंच या सात बार तौलने पर भी तौल बराबर निकले तो उस लिङ्ग को नर्मदा नदी के जल में प्रवाहित कर दें।
– तौल में कमी – बेशी ही वाणलिङ्ग की पहचान है।
– यदि तौल में भारी निकले तो वह लिङ्ग उदासीनों के लिए पूजनीय है। (सूत संहिता)
– वाणलिङ्ग की पूजा में आव्हान और विसर्जन नहीं होता है।
– वाणलिङ्ग के बहुत प्रकार हैं।
– वाणलिङ्ग कर्कश, चिपटा, एकपार्श्व स्थित, शिरोदेश स्फुटित, छिद्र, कर्णिका, त्रिकोण,वक्रशीर्ष तथा तीक्ष्णाग्र वर्जित है।
– वाणलिङ्ग अति स्थूल, अति कृश, स्वल्प, भूषण युक्त मोक्षार्थियों के लिए है। गृहस्थों के लिए वर्जित है।
– मेघाभ और कपिल वर्ण का लिङ्ग शुभ है, परन्तु गृहस्थ लघु या स्थूल कपिल वर्ण वाले लिङ्ग की पूजा न करें।
– वाणलिङ्ग भौंरे की तरह काला, पकी जामुन या मुर्गी के अण्डे के अनुरूप भी होता है। श्वेत, नीला और शहद के रंग का लिङ्ग पूजनीय है।
– इन्हें वाणलिङ्ग इसलिए कहते हैं कि बाणासुर ने तपस्या करने के बाद शिवजी से वर पाया था कि पार्थिव लिङ्ग सर्वदा वाणलिङ्ग रूप में प्रकट रहें।
– एक वाणलिङ्ग की पूजा से अनेक और लिङ्गों की पूजा का फल मिलता है।