कोरोना महामारी के चलते हर कोई परेशान है, हर कोई एक ऐसे डॉक्टर की तलाश में है जो तुरंत उनका फ़ोन उठा ले और उन्हें अच्छी सलाह भी दे। ऐसे में एक ऐसे डॉक्टर है जिन्होंने इस बात को समझा और दो अप्रैल की शाम सोशल मीडिया पर संदेश डाला कि कोई भी मरीज जिसे कोरोना या कोई और बीमारी है और वो लॉकडाउन या पैसे की तंगी के कारण डॉक्टर के पास नहीं पहुंच पा रहा है, तो बगैर हिचकिचाहट उन्हें फोन (94250-54455) लगा सकता है। वे चौबीस घंटे मुफ्त सेवा के लिए मौजूद हैं।
इस संदेश के बाद कल शाम तक उनके पास एक हजार फोन आ चुके हैं। वहीं सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि एक फोन तो उन्हें कुवैत से भी आया। वे बताते हैं कि इंदौर और देश के दूसरे शहरों से फोन आने का सिलसिला अभी तक जारी है। उन्हें अंदाज नहीं था कि इतने फोन आएंगे। दिन में तो खैर सैकड़ों फोन आते ही हैं, रात में भी लोग फोन लगाते हैं, क्योंकि उन्होंने चौबीस घंटे सेवा देने की बात संदेश में लिखी थी। रात एक से तीन बजे के बीच भी उन्होंने कई फोन सुने हैं, जबकि वो गहरी नींद का समय होता है।
उन्होंने साथ ही ये भी बताया है कि फोन पर ज्यादातर लोग उनसे यही पूछते थे कि उन्हें फला-फलां दिक्कत हो रही है, वे क्या करें? क्या ये कोरोना के लक्षण हैं? क्या कोरोना टेस्ट कराएं? यदि कोरोना नहीं है, तो फिर कौन-सी दवा खाएं, जिससे अच्छे हो जाएं। ऐसे लोगों को उन्होंने दवा दी और लक्षण समझने के बाद यह बताने की कोशिश की कि वे घबराएं नहीं उन्हें कोरोना नहीं है। कई ऐसे लोगों से भी बात हुई, जिन्हें कोरोना के 1 लक्षण थे। उन्हें टेस्ट कराने के लिए कहा। टेस्ट कराने के बाद पॉजिटिव आए तो उन्होंने फिर फोन लगाया और रोने लगे। उन्हें समझाया कि कोरोना से डरने की जरूरत नहीं है। इसका इलाज है। उन्हें फोन पर दवा बताई। जरूरत पड़ी तो वीडियो कॉलिंग के जरिये भी बात की और समझाया कि बिल्कुल भी तनाव न लें।
उनसे बात करने वाले तमाम मरीज, जिन्हें कोरोना की बजाय कोई और तकलीफ थी, घर में ही दवा खाकर ठीक हो गए। कोरोना मरीजों को भी उन्होंने तेरह दिन में घर पर ही दवा खाकर होम आइसोलेशन की सलाह दी। लोगों का मु जिन्हें ज्यादा दिक्कत थी, उनका सीटी स्कैन करवाया और जब लगा कि ऑक्सीजन की जरूरत पड़ सकती है, तो उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की सलाह दी। कई मरीजों के फोन तो ऑक्सीजन और रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए भी आए, तो हाथ जोड़कर माफी मांग ली, कि ये उनके बस में नहीं है। वे दवाइयों के लिए सिर्फ सलाह दे सकते हैं। हां, जरूरतमंदों को उन्होंने यह भी कहा कि यदि इलाज कराने के लिए पैसे नहीं हैं, तो वे अपनी ताकत मुताबिक मदद कर सकते हैं, लेकिन इसकी जरूरत नहीं पड़ी। उल्टे लोगों ने उनसे कहा कि हम आपके इलाज से बिल्कुल ठीक हो गए हैं।
आप अपना खाता नंबर दे दो, हम उसमें पैसे डाल देंगे, मगर उन्होंने कहा कि पैसे कमाने के लिए मैंने यह सब नहीं किया। मैं तो सिर्फ यह चाहता हूं कि में एक हजार किसी के काम आ सकू। महामारी के इस माहौल में उन्होंने बताया कि मुफ्त इलाज ज्यादातर मरीजों से बातचीत में देखा कि लोग बहुत जल्दी तनाव में आ जाते हैं और ये तनाव उनकी बीमारी को बढ़ा देता है। ऐसे लोगों को प्रेम से दी गई समझाइश कारगर साबित हुई। उनका कहना था कि हम तो बुरी तरह डर गए थे। आपसे बात की तो जान में जान आई। ये कमाल बातचीत का था, जबकि उन्हें दवा तो बताई ही नहीं थी।
कोरोना के कई मरीजों को, जिनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी, मगर लक्षण नहीं थे, उन्हें घर पर ही रहकर दवाइयां खाने की सलाह दी और लगातार बात की। ऐसे कई लोग अच्छे हो गए। बाद में उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई। उन्होंने सरकार को सलाह दी है कि डॉक्टरों की एक टीम ऐसी बनाई जाए, जो जरूरतमंदों से बात करे, उन्हें ढांढस बंधाए और संभव हो तो फोन पर ही इलाज बताए। आज जो दौर है, उसमें लोगों को दवा से ज्यादा समझाइश की जरूरत है। वक्त पर सही सलाह नहीं मिलने से केस बिगड़ते हैं। उन्होंने देखा कि इंदौर ही नहीं, बाकी जगह भी इस बात की कमी है कि लोगों को फोन पर डॉक्टर नहीं मिलते। कुछ डॉक्टर सेवा दे भी रहे हैं, तो पहले तगड़ी फीस अपने खाते में डलवाते हैं, फिर बात करते हैं। इसलिए जरूरी है कि सरकार काबिल डॉक्टरों को बैठाकर ये सेवा नगर प्रतिनिधि मुफ्त करे।