विकास प्राधिकरण द्वारा टेंडर के माध्यम से अपने प्लाटों तथा अन्य संपत्तियों की बिक्री की जाती है और आम नागरिक इसमें यह सोच कर ऐसा लगता है कि उसके साथ न्याय होगा तथा लॉटरी द्वारा खुलने वाले टेंडर की प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी होगी लेकिन ऐसा नहीं है टेंडर की इस प्रक्रिया में भी बड़े पैमाने पर सेटिंग के खेल किए जाते हैं और इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि इंदौर विकास प्राधिकरण के कर्मचारी बाबूलाल गोठवाल की संपत्ति को राजसात करने के लिए जब कोर्ट द्वारा आदेश दिए गए तो कोर्ट के निर्णय में आयडीए की टेंडर प्रक्रिया पर ही सवाल उठा दिए गए ।
इस निर्णय में तत्कालीन विशेष न्यायाधीश अवनींद्र कुमार सिंह द्वारा जो बात कही गई है उसमें इस बात का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि इंदौर जैसे शहर में जहां आम व्यक्ति को एक भी प्राइवेट बिल्डर अथवा सहकारी संस्थाओं का प्लाट या भवन नहीं मिलता वहीं पर बाबूलाल गोठवाल जिनकी पत्नी कमला ,पुत्री ज्योति, अनीता , पिता भूरेलाल माता फूलाबाई एवं ससुर श्रवण लाल को इंदौर विकास प्राधिकरण की विभिन्न स्कीमों में तथा प्राधिकरण द्वारा पोषित सहकारी संस्थाओं के माध्यम से कुल 8 प्लाट मिल गए और वह भी टेंडर के माध्यम से बोली लगाकर ।
विशेष न्यायाधीश द्वारा इस बात पर बहुत आश्चर्य व्यक्त किया गया कि आम आदमी ने बेचारा एक प्लाट के लिए तरसता रहता है वहीं बाबूलाल गोठवाल ने अपने सभी परिजनों को प्लाट आवंटित करा दिए जबकि विकास प्राधिकरण की टेंडर प्रक्रिया में यह स्पष्ट उल्लेख होता है कि आवेदन करने वाले के परिवार में किसी अन्य सदस्य के पास कोई संपत्ति नहीं है इस नियम का इस मामले में पूरी तरह से उल्लंघन किया गया ।
विचारणीय बात यह है कि विशेष न्यायाधीश द्वारा की गई इस टिप्पणी के बाद भी इंदौर विकास प्राधिकरण ने इस बात को लेकर अपना कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है कि भविष्य में टेंडर प्रक्रिया के माध्यम से जो प्लाट आवंटित किए जाएंगे हैं उनमें किसी तरह की सेटिंग नहीं होगी और बाबूलाल गोठवाल जैसे कर्मचारी जो टेंडर प्रक्रिया के लू पोल का लाभ उठाकर अपने परिजनों को 8 प्लाट दिला देते हैं ऐसे लोग भविष्य में दुरुपयोग नहीं करेंगे इस बारे में भी विकास प्राधिकरण ने कोई सख्ती नहीं दिखाई है ।