55 साल पहले गूंजा था नर्मदा मैया इंदौर चलो का नारा, नारायण प्रसाद शुक्ला ने रखी थी नींव

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कीर्ति राणा

आज जिस नर्मदा के जल से इंदौर की प्यास बुझ रही है इस नदी का पानी लाने के लिए “नर्मदा मैया इंदौर चलो” का नारा 55 साल पहले छावनी की आमसभा में गूंजा था। उस आम चुनाव में प्रकाशचंद सेठी लोकसभा के और महापौर रह चुके नारायण प्रसाद कांति लाल शुक्ला क्षेत्र क्रमांक 4 से विधानसभा के प्रत्याशी थे। देश में आधुनिक शहर के रूप में इंदौर की अब जो पहचान बनी है उसकी आधार शिला लगातार दो बार महापौर रहे नारायण प्रसाद शुक्ला के वक्त ही रखी गई थी।

‘एक ही हल-नर्मदा का जल’ इस सतत 23 दिन (5 जुलाई से 23 अगस्त 1970) तक चले आंदोलन को आखिरकार सफलता मिली और नर्मदा के आगमन पर शहर के लोगों ने जीत का जश्न मनाया था।उस वक्त (‘60 के दशक में) जिन जनप्रतिनिधियों ने अपने काम से पहचान बनाई उनमें नारायण प्रसाद शुक्ला का नाम भी प्रमुख है तो इसलिए कि निगम चुनाव में नागरिक समिति के प्रत्याशी के रूप में पार्षद, स्टैंडिंग कमेटी चेयरमेन, 1961 में डिप्टी मेयर, 1962 से 64 तक दो बार महापौर, पीसी सेठी और श्यामा चरण शुक्ला के मंत्रिमंडल में सहयोगी रहे शुक्ला बाद में नर्मदा आंदोलन में भी सक्रिय रहे।

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तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र ने महापौर के रूप में शुक्ला ने जो विकास के कार्यों से छाप छोड़ी उससे प्रभावित होकर ही उन्हें कांग्रेस में शामिल किया था। आजादी के बाद की इस तीसरी पीढ़ी में पीसी सेठी, यज्ञदत्त शर्मा, एनपी शुक्ला, महेश जोशी, सीपी शेखर, सतीश कंसल आदि युवा नेता के रूप में सक्रिय रहे।जूनी इंदौर क्षेत्र के जिस रावजी बाजार में तब शुक्ला रहते थे वहां और शनि गली, व्यास फला, गाड़ी अड्डा-आदि में जल संकट का हाल यह था कि पांच- पांच दिन में नल आते थे।

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जल संकट से जूझते शहर के कई हिस्सों में तब पेयजल टंकियों का विस्तार के साथ ही, 1959 में पंडित नेहरु ने जिस नेहरु स्टेडियम का भूमिपूजन किया था उसके निर्माण में सीमेंट का संकट दूर करने के लिए केंद्र सरकार से सीमेंट की मंजूरी कराने, दंगल प्रिय इंदौर में छोटा स्टेडियम (कुश्ती एरिना) निर्माण, इंदौर (अब देवी अहिल्ला) विवि की स्थापना मंजूरी के लिए प्रदेश सरकार द्वारा फंड की शर्त रखने पर नगर निगम से 5 लाख रु की मंजूरी, एमवायएच के सामने स्थित डेंटल कॉलेज के लिए जमीन, जबरन कॉलोनी, मिल क्षेत्र सहित शहर की तंग बस्तियों में शौचालयों का निर्माण, शहर के बाकी क्षेत्रों को कंदील के उजाले से मुक्ति दिलाकर शहर के सभी क्षेत्रों में स्ट्रीट लाइट का जाल बिछाने, बिस्को (अब नेहरु) पार्क सहित अन्य उद्यानों का विस्तार-विकास, शहर को विशाल सभागार के रूप में रवींद्र नाट्यगृह की सौगात देने जैसे काम उन्हीं के महापौर काल की देन है।

निगम आय में वृद्धि के लिए चुंगी नाके बढ़ाए नगर निगम की आय सीमित थी। इसमें स्थायी रूप से वृद्धि की पहल भी नारायण प्रसाद शुक्ला के वक्त में हुई।तब बंबई के लिए आने-जाने वाले ट्रक एबी रोड से गुजरते थे। शुक्ला ने देव गुराड़िया, भंवरकुआ सहित शहर को जोड़ने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों में चुंगी नाकों की संख्या में वृद्धि की और ट्रकों सहित अन्य भारवाहक वाहनों से आक्ट्राय वसूली निर्धारित की गई।

मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा मोहित हो गए होमीदाजी द्वारा संयुक्त विपक्ष के रूप में गठित नागरिक समिति से चुनाव लड़े, महापौर बने शुक्ला द्वारा कराए कार्यों से प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्र इतने प्रभावित हुए कि उन्हें न सिर्फ कांग्रेस में शामिल किया बल्कि क्षेत्र क्रमांक 4 से विधानसभा प्रत्याशी भी बना दिया। तब इस क्षेत्र से नागरिक समिति के प्रत्याशी वायडी शर्मा से मात्र 77 मतों से हारे थे।देश की राजनीति का यह ऐसा चुनाव था जब पूरे देश में तो कांग्रेस-वामपंथी दल में समझौता था लेकिन यहां दोनों दल आमने-सामने थे।

इसी आम चुनाव में छावनी की सभा में ‘नर्मदा मैया इंदौर आओ’ का नारा गूंजा था और सेठी पहला लोकसभा चुनाव जीते थे। जिन शर्मा से हारे थे, उन्हे ‘72 में हराया इंदिरा गांधी ने श्यामाचरण शुक्ल को हटाकर पीसी सेठी को सीएम बनाया था।डीपी मिश्रा ने 1972 में शुक्ला को इसी चार नंबर से टिकट सामने नागरिक समिति से वायडी शर्मा थे, जिन्हें 32 हजार वोट से हराया।दो नए चेहरे महेश जोशी ने एक नंबर से आरिफ बेग को हराया, तीन नंबर से सीपी शेखर ने कल्याण जैन को हराया था।

दो नंबर से होमी दाजी जीते थे।शुक्ला तब विधानसभा में डिप्टी स्पीकर बनाए गए थे। आपात्तकाल के दौरान वे प्रदेश मंत्रिमंडल में स्थानीय शासन मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के साथ ही मुख्यमंत्री ने अपने पास वाले सूचना प्रसारण, गृह विभाग का दायित्व भी सौंप रखा था। नेशनल हेराल्ड का काम देखते थे आज जिस ‘नेशनल हेराल्ड’ की गूंज के साथ गांधी परिवार आरोपों से घिरा हुआ है उस ‘नेशनल हेराल्ड’ और ‘नवजीवन’ का तब मप्र में सारा कामकाज एनपी शुक्ला संभालते थे।एक तरह से ये अखबार पं नेहरु के इमेज मेकर के रूप में पहचाने जाते थे। उनके पुत्र वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप शुक्ला बताते हैं 1983 में भाजपा परिषद ने जूनीइंदौर पुल का नामकरण स्व शुक्ला की स्मृति में करने का प्रस्ताव पारित तो किया था पर हुआ कुछ नहीं।

छात्र आंदोलन की सक्रियता से टिकट मिला नगर निगम के 1983 में हुए चुनाव में दोनों प्रमुख दलों से सर्वाधिक छात्र नेता चुनाव जीते थे। छात्र नेताओं की जीत का दबदबा ‘83 से पहले भी रहा है।बात 1955 की है तब डेली कॉलेज के प्रिंसिपल घोष के तबादले के विरोध में छात्रों ने विरोध-प्रदर्शन किया था। सियागंज के समीप बंदूक घर के सामने हुए गोलीकांड में डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की मौत पर सुरेश सेठ, एनपी शुक्ला, सतीश कंसल, रमेश सक्सेना आदि ने विरोध-आंदोलन किया, वारंट जारी होने के बाद फरार हो गए।

तब होमीदाजी वकालत करते थे, उन्होंने विरोधी दलों की नागरिक समिति गठित कर इन छात्र नेताओं में से अधिकांश को पार्षद चुनाव लड़वाया, अधिकांश को जीत मिली थी, फिर ये नेता राजनीति में आगे बढ़ते गए। पथराव हुआ न आगजनी, नर्मदा इंदौर लाने के लिए 23 दिन चला शांति पूर्ण आंदोलन 5 जुलाई 1970 से 23 अगस्त 1970 तक चलने वाले आंदोलन की तैयारी 1966 की गर्मी से ही शुरू हो गई थी शहर ने जब ऐतिहासिक जल संकट झेला तो उसके बाद नर्मदा को लाने के लिए शहर एक साथ उठ खड़ा हुआ।

14 जून 1970 को राजवाड़ा के गणेश हॉल में विद्यार्थियों और युवा नेताओं की बैठक में नर्मदा के लिए आंदोलन करने का औपचारिक निर्णय लिया गया। 30 जून को विश्वविद्यालय के छात्र संघ पदाधिकारियों की बैठक हुई जिसमें नर्मदा आंदोलन को पूरा सहयोग देने का निश्चय किया गया। आंदोलन 5 जुलाई से शुरू होने वाला था। 2 जुलाई को महू में भी आंदोलन समिति गठित कर ली गई। इस तरह से महू के युवाओं ने भी अपना नैतिक समर्थन दे दिया।