संक्रमित होने पर भी ‘ शिवराज ‘ का घेराव….

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दिनेश निगम ‘त्यागी

उम्मीद की जाती है कि कुछ मसलों को राजनीति के चश्में से नहीं देखा जाना चाहिए पर कोई नेता इस पर अमल नहीं करता। बीमारी भी ऐसा ही विषय है। अचानक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गए। इस पर भी राजनीति हो रही है। उन पर तंज कसा जा रहा है। व्यंग बाणों से निशाने साधे जा रहे हैं। हालांकि अधिकांश ने उनके जल्द स्वस्थ होने की कामना की है। मंत्रिमंडल के सदस्य एवं वे नेता जो शिवराज के संपर्क में आए, भयभीत हैं। शिवराज ने कहा है कि जो उनसे मिले हों, जांच करा लें। कोरोना वैसे भी तेजी से फैल रहा है, शिवराज के चपेट में आने से डर और बढ़ गया है। कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह ने भी शिवराज के जल्द स्वस्थ होने की कामना की, लेकिन राजनीति करने से भी नहीं चूके। कमलनाथ ने शिवराज को उनके पुराने बयानों की याद दिलाकर चुटकी ली। शिवराज ने कहा था, ‘कोरोना कुछ नहीं, कांग्रेस का डरोना है।’ यह भी कहा था कि ‘कोरोना साधारण सर्दी-जुकाम से ज्यादा कुछ नहीं।’ उनके द्वारा की गई टिप्पणियों की याद दिला कर उन पर कोरोना के प्रति गंभीर न होने के आरोप लगाएं जा जा रहे हैं। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने के कारण दिग्विजय सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी, दिग्विजय ने तंज कसा, आप मुख्यमंत्री हैं आपके खिलाफ तो एफआईआर हो नहीं सकती। शिवराज ने बड़े बजुर्गों की बात मानकर सोच समझ कर बोला होता, तो शायद ये ताने नहीं सुनना पड़ते। अब अस्पताल से उनसे मिलने वालों की तस्वीरें जारी होने पर सवाल उठ रहे हैं।

‘प्रोटेम’ में ही ‘प्रोजेक्ट’ हो गए रामेश्वर….

– आमतौर पर प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति दो-चार दिन के लिए हुआ करती थी। काम होता था निर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाना और स्पीकर, डिप्टी स्पीकर का चुनाव कराना। प्रोटेम स्पीकर का दायित्व किसी वरिष्ठ विधायक को सौंपा जाता था। बदली हुई परिस्थितियों में अपेक्षाकृत जूनियर विधायक रामेश्वर शर्मा प्रोटेम स्पीकर बन गए। दायित्व संभालते ही रामेश्वर ने काम की ऐसी दक्षता का परिचय दिया कि देखने वाले भौचक्के हैं। सर्वदलीय बैठक के बाद विधानसभा का सत्र निरस्त हो गया लेकिन विरोध का एक भी स्वर नहीं फूटा। इसके कारण अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो पाया। रामेश्वर को काम का और अवसर मिल गया। स्थिति यह है कि प्रोटेम स्पीकर के तौर पर वे पूर्णकालिक अध्यक्ष से भी ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं। नया विधायक विश्राम ग्रह बनाने का 15 साल पुराना मसला हल हो गया। यह पुराने विश्राम ग्रह के स्थान पर बनेगा। हरे-भरे वृक्ष नहीं कटेेंगे। अलग से सरकारी जमीन की भी जरूरत नहीं पड़ी। विधानसभा के स्टॉफ के आवास बनाने के टेंडर हो गए। विधायक विश्राम गृह परिसर के मंदिर का विवाद हल कर दिया। अर्थात रामेश्वर ने बिना मंत्री और पूर्णकालिक स्पीकर बने अपनी दक्षता साबित कर दी। वे ‘प्रोटेम’ में ही ‘प्रोजेक्ट’ हो गए।

चालीस साल की कमाई गंवा रहे नाथ….

– प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने 40 साल के राजनीतिक जीवन में जो कमाया था, उसके गंवाने का समय आ गया दिखता है। विधानसभा चुनाव में जीत के बाद सरकार बनने तक वे सफल राजनेता के तौर पर उभरे थे, अब पार्टी के सबसे असफल नेता साबित होते दिख रहे हैं। पहले वे ज्योतिरादित्य, उनके समर्थकों को नहीं संभाल पाए और सरकार गवां बैठे। अब कांग्रेस की बची-खुची पूंजी भी दांव पर है। एक-एक कर विधायक उनका साथ छोड़ रहे हैं। सिंधिया के पार्टी छोड़ने की प्रमुख वजह थी, कमलनाथ का मुख्यमंत्री एवं प्रदेश अध्यक्ष में से एक भी पद को न छोड़ना। यह वजह अब भी बरकरार है। कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष हैं ही, नेता प्रतिपक्ष भी वे ही बन गए। पदों से चिपके रहने पर कांग्रेस के दूसरे वरिष्ठ नेता भी उंगली उठाने लगे हैं। केपी सिंह पहले से नाराज थे, अब डा. गोविंद सिंह ने उनके दोनों पदों पर रहने पर सवाल उठा दिया। लक्ष्मण सिंह ने कहा है कि कमलनाथ को अपनी कार्यशैली को लेकर मंथन करना चाहिए। सवाल यह है कि आखिर कमलनाथ अपनी कमियां ढूंढ़कर उन्हें दूर क्यों नहीं करना चाहते।

अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग…

– कमलनाथ ने कांग्रेस विधायक दल की बैठक में कहा, मेरे दरवाजे सबके लिए खुले हैं। विधायक जब चाहें मुझसे संपर्क कर सकते हैं। इस कथन पर एक विधायक की टिप्पणी थी, ‘अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत।’ दरअसल, कमलनाथ के खिलाफ शिकायतों में सबसे प्रमुख यही है कि उनके पास न कभी मंत्रियों से मिलने, बात करने का समय रहा, न विधायकों से। बगावत करने वाले लगभग हर विधायक ने उन पर यह आरोप लगाया है। कमलनाथ से मीडिया एवं आमलोगों की भी यही शिकायत रही है। उन्होंने कभी किसी की बात या समस्या को गंभीरता से सुनने की कोशिश नहीं की। नतीजा सामने है। सत्ता हाथ से खिसक गई और विधायकों के साथ छोड़ने का सिलसिला जारी है। इसलिए कमलनाथ ने जो बात विधायक दल की बैठक में कही, यदि मुख्यमंत्री रहते ही इस पर अमल कर लिया होता तो यह नौबत क्यों आती। हो सकता है बागियों की यह दगाबाजी जनता को पसंद न आए। उप चुनावों में वह उन्हें इसकी सजा दे दे। ऐसे में कमलनाथ को यह समझने की भूल नहीं करना चाहिए कि नतीजे उनकी लोकप्रियता के कारण आए हैं। इसकी बजाय उन्हें अपनी कार्यशैली सुधारना चाहिए।

सिंधिया को ‘नाग’ की संज्ञा दे बैठे अरुण….

– कोरोना महामारी के कारण आजकल मैदानी राजनीति लगभग ठप है लेकिन ट्वीटर, बयानों के जरिए दिलचस्प भिड़ंत देखने को मिल रही है। कांग्रेस में भगदड़ के बीच कुछ दिन से निमाड़ के एक बड़े नेता के भाजपा में जाने की अटकलें तेज थीं। नाम प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव का आ रहा था। लिहाजा, सफाई देने तो वे सामने आए ही, नागपंचमी के अवसर पर भाजपा में गए ज्योतिरादित्य सिंधिया पर ऐसा हमला बोला ताकि उनके भाजपा में जाने के बारे में कोई सोचे तक न। अरुण ने पहले पत्रकारों से बात की। कहा कि सत्ता की भूंखी भाजपा मनी ट्रेप के जरिए विधायकों को फंसा रही है। अगले ही दिन उन्होंने एक ट्वीट के जरिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को नागपंचमी की शुभकामना इस शैली में दी कि उन्हें परोक्ष रूप से ‘नाग’ कह दिया। राहुल गांधी ने भी अरुण के ट्वीट पर रिट्वीट कर सिंधिया पर हमला किया। उन्होंने लिखा, ‘सांप को कितना भी दूध पिलाओ लेकिन वह फन मारे बिन नहीं रहता।’ सिंधिया के पिता के बाल सखा रहे बालेंदु शुक्ल ने भी इस पर टिप्पणी कर अरुण के ट्वीट को सही ठहराने की कोशश की। सिंधिया खेमे की ओर से इमरती देवी ने अरुण पर तगड़ा पलटवार किया।