संघर्ष की यादें आज भी आंखों के सामने हैं..

Share on:

(जैसा की प्रत्यक्षदर्शी भूपेंद्र शर्मा मुंडा ने बताया)

सन 1990 और 1992 में अयोध्या राम जन्मभूमि आंदोलन के सहभागी बनकर खुद का जीवन धन्य मानता हूं। सन 1989 के वक्त से ही राम जन्म भूमि आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। इंदौर विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के नेतृत्व में तीन चार बार अयोध्या जाकर विवादित ढांचा गिराए जाने में अहम योगदान रहा है। उस वक्त के सहयोगी राजेश राय,नाना नागर, राजेश आजाद,कैलाश शर्मा ,देवेंद्र रावत,नवीन नवलखा,संजय गुप्ता डम और साथियों के साथ इंदौर से फैजाबाद,और वहां से हनुमान गड़ी और सरयू नदी के तट पर आंदोलन के जनक महंत श्री नृत्य गोपाल दास के आश्रम तक जाना भी एक चुनौती बड़ा काम रहा।

30 अक्टूबर 1990 को साधुओं को रोकना और 2 नवंबर 1990 को निहत्ये कार सेवकों पर मुलायम सिंह यादव सरकार द्वारा गोली चलाने का साक्षी रहा हूं। 6 दिसंबर 1990 को पूरे देश से आए वीर कार सेवकों के साथ विवादित ढांचा गिराए के वक्त अपने हाथो से मलवे का ढेर करना आज भी याद दिलाता है। उस समय साथी राजेश राय के माथे पर ढांचे का पत्थर लग गया था।आज पूरा देश राम लला का जश्न मना रहा हैं। और में भी सौभाग्य शाली हूं मेने भी अपना जीवन राम जी के पूर्ण समर्पित किया। जैसे रावण को मारने के लिए वानर सेना ने किया था। मेरा जीवन तो धन्य हो गया। आज सभी देश वासियों को राम राज्य की वापसी की बधाई।