चंद्राकार नदी के किनारे बना है शहर का भूतेश्वर महादेव मंदिर, शिव दरबार में उपस्थित 64 योगिनियों को गिनना है मुश्किल

Pinal Patidar
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आबिद कामदार

इंदौर: भगवान शिव श्रृष्टि के पालनहर्ता है, देवों के देव महादेव के जितने नाम हैं उतने ही उनके स्वरूप भी हैं. भोलेनाथ के हर रूप की उपासना से नया वरदान मिलता है। इंदौर में कई चमत्कारी मंदिर है, इसमें अंतिम चौराहे पंचकुइया पर स्थित भूतेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण होलकर वंश के राजाओं ने करवाया था,300 साल पुराने इस मंदिर के अदभुत रहस्य और चमत्कारों के किस्से हर किसी ने सुने है।

शिव दरबार में 64 योगीनिया है, गिनने पर हो जाती है ज्यादा

मंदिर के पुजारी हरिशानंद तिवारी जी बताते है की वह शिव जी की सेवा में कई सालों से है। मंदिर के गर्भगृह के पास एक बावड़ी हुआ करती थी, यहीं से पानी खींचकर शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाता था। यहां शिव का पूरा दरबार है। मंदिर परिसर में 64 योगिनिया मौजूद है, इनकी खासियत यह है, कि इन योगिनियों को आप गिन नहीं पाएंगे। जब भी गिनने का प्रयास करेंगे ज्यादा हो जाएगी। हमारे पूर्वजों ने बताया कि इन्हें गिनना नही।

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चंद्राकार नदी पर बना है मंदिर, यह संयोग बहुत कम बनता है।

देवों के देव महादेव, भगवान शिव अपने शीश पर चंद्र धारण किए हुए हैं। उनके जिस भी रूप को देखें, उनके मस्तक पर चंद्रमा नजर आते हैं। ऐसा ही संयोग भूतेश्वर महादेव मंदिर में भी बनता है। यहां मंदिर के पश्चिम से पहले एक छोटी नदी गुजरती थी, जो की पूरी चंद्राकार रूप में थी। मंदिर को पूरब से देखने पर मानों यह वही चंद्राकार रूप बनाती है, जो शिवजी के माथे पर है। लेकिन अब यह नदी सुख गई है,

भूतेश्वर महादेव के सामने अंतिम संस्कार होने पर मुक्ति मिलती है।

भूतेश्वर महादेव का यह मंदिर पंचकुइया स्थित 300 साल पुराने भूतेश्वर महादेव मंदिर शमशान की भूमि पर है। शहर में यह मान्यता है, भूतेश्वर महादेव के सामने अंतिम संस्कार होने पर मुक्ति मिलती है। कहा जाता है कि नर्मदा से स्वयंभू शिवलिंग यहां स्थापित किया गया था। यहां कई श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर आते है।

तीन बार नगर निगम ने किया दीवार बनाने का प्रयास लेकिन दीवार नही टिक पाई

कहा जाता है की जब पहले मंदिर और शमशान के बीच रास्ता नही था तब चिता का प्रतिबिंब शिवलिंग पर पढ़ता था। बाद में नगर निगम द्वारा कई बार मुक्तिधाम की दीवार बनाने का प्रयास किया, लेकिन बार-बार गिर जाती थी। जानकारों के कहने पर बाद में मुक्तिधाम की दीवार में बड़ी खिडक़ी और मंदिर के गर्भगृह में भोलेनाथ के सामने भी खिडक़ी बनाई गई उसके बाद ही दीवार पूरी हो पाई।