चैतन्य भट्ट
महाराष्ट्र में इन दिनों भारी उथल पुथल मची हुई है, एक तरफ कोरोना अपना कहर बरपा रहा है तो दूसरी तरफ प्रदेश के गृह मंत्री पर मुंबई के हटाए गए पुलिस कमिश्नर ने एक आरोप लगाकर राजनीति में उबाल सा ला दिया है लम्बे समय तक मुंबई के पुलिस कमिश्नर के पद पर शान से रहने वाले “परमवीर सिंह” को जैसे ही लूप लाइन में भेजा गया उनके भीतर का “ईमानदार अफसर” एकदम से जाग गया, “अंतरात्मा की आवाज” उन्हें चीख चीख कर ठोकर मारने लगी कि अभी तक तो तुम चुपचाप थे अब तो लूप लाईन में पंहुच गए हो तो खोल दो सारी पोल, बस क्या था.
उन्होंने मुख्यमंत्री को चिठ्ठी लिखकर बतला दिया कि प्रदेश के गृह मंत्री ने मुकेश अम्बानी के घर के पास जिलेटिन की छड़ें रखने के आरोप में गिरफ्तार किये गए असिस्टेंट सब इंस्पेकटर “सचिन वझे” को बंगले पर बुला कर हर महीने मुंबई से “सौ करोड़ रुपया” उगाही का आदेश दिया था , अरे भैया परमवीर सिंह जी आप का नाम तो माता पिता ने परमवीर इसलिए रखा होगा कि आप “परमवीरता” न सही कम से कम “वीरता” तो दिखाएंगे पर आपने तो आँखों पर पट्टी बाँध रखी थी, यदि आपको मालूम था कि सचिन वझे को सौ करोड़ रुपया उगाहने का आदेश दिया गया है तो उस वक्त आपकी अंतरात्मा और ईमानदारी क्या घास चरने गई थी,
क्या आपको नहीं मालून था कि सचिन वझे उगाही कर रहा हैं आपकी आँखों के सामने, आपकी नाक के नीचे करोड़ों की वसूली की जा रही थी और आप “धृतराष्ट” बने हुए थे और जैसे ही आपकी कुर्सी गयी आपके “ज्ञान चक्षु” खुल गए, वैसे सचिन वझे जैसे पुलिस अफसर तो हर एक स्टेट में पाए जाते हैं जो नेताओं के मंत्रियों के आंख के तारे रहते है उनके हर काम को “पोलिटिकली सपोर्ट” मिलता है वे मंत्रियों से सीधे मिल पाते है अपने अफसरों को अंगूठे के नीचे दबाये रखने वाले ऐसे सचिन वझे जैसे अफसर अपने आकाओं के लिए उगाही करते हैं और क्यों न करें, आकाओं को भी तो चुनाव लड़ने के लिए करोड़ो की जरूरत होती है अब वे अपने घर से तो पैसा लाएंगे नहीं, उद्योगपतियों से चंदा लेंगे तो उद्योगपति जब करोड़ कमायेगा तब कंही जाकर चार पांच लाख चंदा देगा सचिन वझे कोई गलत काम तो कर नहीं रहे थे,
अरे जब थानों में पोस्टिंग के लिए बोलियां लगती हों हर महीने एक निश्चित राशि हर थाने से ऊपर तक जाती हो तो अदना सा थानेदार क्या कर सकता है सचिन वझे भी तो असिस्टेंट् सब इंस्पेकटर ही था ये बात अलग है कि उसके ठाठ परमवीर से भी ज्यादा थे “मरसडीज” में दफ्तर आता जाता था तब परमवीर सिंह को नहीं दिखाई दिया कि करोड़ों की “मरसडीज” में उनका अदना सा पुलिस वाला कैसे घूम रहा है, वैसे अपने हिसाब से यदि महाराष्ट के गृहमंत्री ने मुंबई से हर महीने सौ करोड़ रूपये उगाहने की बात कही थी तो ये वास्तव में मुंबई की बेइज्जती तो थी ही साथ ही गृहमंत्री की मानसिक दारिद्र्ता की भी निशानी थी यदि हजार करोड़ महीने का टारगेट होता तो समझ में भी आता सचमुच नाक कटा दी दी गृह मंत्री ने अपनी और पुलिस डिपार्टमेंट की l
सफ़ेद कुर्ते पायजामे वापस सूटकेसों में पंहुच गए
कितनी आशा थी नेताओं को कि बस अब नगरीय निकायों के चुनाव होने ही वाले हैं, तमाम उम्म्मीद्वारों ने अपने अपने सूटकेसों से “सफ़ेद कुर्ते पायजामे” बाहर निकाल कर उनमें “कलफ” करवा कर उन्हें पहन कर हाथ जोड़कर मोहल्ले मोहल्ले घूम घूम कर जनता से सेवा करने का मौका देने की बात कहना शुरू कर दी थी, जो वार्ड पहले पुरुष थे और आरक्षण में महिला हो गए उन तमाम लोगो ने अपनी अपनी “धर्मपत्नियों” के बैनर शहर भर की सड़कों पर सजा दिए थे l विधायक सांसद के बंगलों के सामने उम्मीदवारों की भीड़ इकठ्ठा होने लगी थी, अपने पैसों से लोगो के काम करवाने शुरू कर दिए थे इन उम्म्मीद्वारों ने,
लेकिन बुरा हो कोरोना का और याचिका लगाने वालों का मामला उलझन में पड़ गया हाईकोर्ट के आदेश के बाद नगरीय निकायों के चुनाव झमेले में पड़ गए उस पर बच्चों की परीक्षाएं भी हैं यानि “करेला नीम चढ़ा” सारे अरमान धरे के धरे रह गए, जेब से पैसा गया सो अलग, लोगों के काम करवाए वो अलग, अब पता नहीं है कि कब चुनाव हो पाएंगे कोई भरोसा नहीं बचा है, उधर बंगाल के चुनाव में बीजेपी के तमाम बड़े छोटे नेताओं की ड्यूटी लगी हुई है ऐसे में यहां कौन चुनाव करवाएगा ये भी तो सोचने वाली बात है, हाल ये हो गए हैं कि वे तमाम सफ़ेद कुर्ते पायजामे उम्मीदवारों ने धोबियों से धुलवा कर उन्हें वापस सूटकेसों में रख दिए है अब जब कभी फिर चुनावो की सुगबुगाहट होगी तो उन्हें निकालेंगे l
सुपर हिट ऑफ़ द वीक
“पापा साढ़ू भाई किस रिश्ते को कहते हैं” श्रीमान जी के पुत्र ने उनसे पूछा
“जब दो अलग अलग आदमी एक ही कंपनी द्वारा ठग लिए जाते है उन्हें ही साढ़ू भाई कहा जाता है” श्रीमान जी ने समझाया