हिन्दू धर्म में रंगों का त्योहार होली पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। इस होली पर रविवार को ग्रह- नक्षत्रों का विशेष संयोग बन रहा है। बताया जा रहा है कि ऐसा संयोग 499 साल बाद बन रहा है। पंचांग के अनुसार, इस बार फाल्गुन पूर्णिमा सोमवार को है। इस दौरान गुरु बृहस्पति और शनि अपनी-अपनी राशि में रहेंगे, जिसे सुख-समृद्धि और धन-वैभव के लिहाज से अच्छा माना जाता है।
शुभ मुहूर्त-
रविवार शाम 6 बजकर 37 मिनट से रात 8 बजकर 56 मिनट तक होलिका दहन का मुहूर्त होगा। ऐसे में 2 घंटे 20 मिनट तब होलिका दहन का मुहूर्त रहेगा। ज्योतिषों का कहना है कि इसी मुहूर्त में होलिका दहन करना अत्यंत शुभ है। इस वर्ष होलिका दहन के समय भद्रा नहीं रहेगी।
संयोग?
ज्योतिषियों का मानना है कि होली पर चंद्रमा कन्या राशि में रहेगा। वहीं बृहस्पति और न्याय देव शनि अपनी-अपनी राशियों में विराजमान रहेंगे। बता दे, ग्रहों का ऐसा महासंयोग 1521 में बना था। दरअसल, 499 साल बाद एक बार फिर होली पर ऐसा महासंयोग बनने वाला है।
कहा जाता है कि होलिका दहन में किसी वृक्ष की शाखा को जमीन में गाड़कर उसे चारों तरफ से लकड़ी, कंडे या उपले से ढककर निश्चित मुहूर्त में जलाया जाता है। इसमें छेद वाले गोबर के उपले, गेंहू की नई बालियां और उबटन जलाया जाता है ताकि वर्षभर व्यक्ति को आरोग्य की प्राप्ति हो और उसकी सारी बुरी बलाएं अग्नि में भस्म हो जाएं। होलिका दहन पर लकड़ी के राख को घर में लाकर उससे तिलक करने की भी परंपरा है।