रवीन्द्र जैन
मप्र में सक्रियता बढाएंगे सिंधिया –
केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को चार साल पहले मप्र के एक वरिष्ठ पत्रकार ने सलाह दी थी कि यदि उन्हें मप्र का सीएम बनना है तो दिल्ली के बंगले में बड़ा सा ताला लगाकर भोपाल आकर रहना चाहिए। तब सिंधिया कांग्रेस में थे, उन्होंने इस सलाह को हवा में उड़ा दिया था। लेकिन लगता है अब वे भाजपा में आने के बाद इस सलाह पर अमल करने जा रहे हैं। खबर है कि सिंधिया जल्दी ही भोपाल के श्यामला हिल्स स्थित बंगले में शिफ्ट होने वाले हैं। मप्र सरकार उनके लिये बंगला सजाने में लगी है। पिछले दिनों सिंधिया और उनकी पत्नी ने अलग अलग भोपाल आकर इस बंगले का मुआयना भी किया था। उम्मीद है जल्दी ही शिवराज सिंह और कमलनाथ के बंगलों के नजदीक बने इस बंगले में सीएम पद का तीसरा दावेदार नजर आएगा।
कांग्रेस का मीडिया विभाग भंग होगा –
मप्र कांग्रेस में अब महिला कांग्रेस की तरह ही प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग को भंग करने की तैयारी है। फिलहाल मीडिया विभाग के अध्यक्ष विधायक जीतू पटवारी हैं। उपाध्यक्ष भूपेन्द्र गुप्ता हैं। कमलनाथ के मीडिया समन्वयक के रूप में नरेन्द्र सलूजा सक्रिय हैं। केके मिश्रा कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री मीडिया के रूप में काम देख रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार पीयूष बबेले को मीडिया विभाग का समन्वयक बनाया गया है। इनके अलावा 100 से अधिक प्रवक्ता भी बनाये गये हैं। चर्चा है कि प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ विधानसभा चुनाव की तैयारी के तहत मप्र कांग्रेस मीडिया विभाग का नये सिरे से गठन करना चाहते हैं। यह तय माना जा रहा है कि जीतू पटवारी को कोई अन्य जिम्मेदारी दी जाएगी। आधे से ज्यादा प्रवक्ता बदले जा सकते हैं।
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नरेन्द्र सलूजा भाजपा जाएंगे –
मप्र कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ के मीडिया समन्वयक नरेन्द्र सलूजा जल्दी ही प्रदेश भाजपा कार्यालय में दिखाई देंगे। यहां स्पष्ट कर दें कि सलूजा भाजपा में शामिल नहीं हो रहे हैं, बल्कि अपने मित्र और प्रदेश भाजपा के मीडिया प्रभारी लोकेन्द्र पाराशर के बुलावे पर वे चाय पीने भाजपा कार्यालय जाएंगे। दो साल पहले 27 फरवरी 2020 को लोकेन्द्र पाराशर ने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पहुंचकर नरेन्द्र सलूजा की चाय पी थी। पिछले दिनों एक चैनल के कार्यालय के उद्घाटन में दोनों दोस्तों के बीच यह कार्यक्रम तय हुआ है। मजेदार बात यह है कि पाराशर जब कांग्रेस कार्यालय पहुंचे थे तो महीने भर में कांग्रेस सरकार गिर गई थी। सलूजा मजाक में कह रहे हैं कि शायद मेरे भाजपा कार्यालय जाने से मप्र में फिर से कांग्रेस सरकार बन जाए।
दो मंत्रियों से खफा सीएम और संघ –
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बड़े उत्साह से मप्र के मालवा क्षेत्र के दो विधायकों में एक को उच्च व दूसरे को स्कूली शिक्षा विभाग का मंत्री बनाया था। इन दोनों विधायकों की छवि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के हार्डकोर कार्यकर्ता के रूप में हैं। उम्मीद की जा रही थी कि यह दोनों मंत्री भाजपा और संघ की अपेक्षाओं पर खरा उतरेंगे। लेकिन बीते दो साल में इनके खाते में कोई खास उपलब्धि नहीं है। दोनों मंत्री किसी न किसी कारण विवादों में रहे हैं। मुखबिर का कहना है कि इन दोनों मंत्रियों से सीएम और संघ दोनों ही खफा हैं। यदि चुनाव से पहले मंत्रिमंडल फेरबदल हुआ तो दोनों की मंत्री की कुर्सी जा सकती है।
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उम्मीद पर खरे उतरे सकलेचा –
मप्र के लघु एवं सूक्ष्म उद्योग मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा ने अपनी कार्यशैली से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दिल जीत लिया है। लगभग 4 महीने पहले मुख्यमंत्री ने सकलेचा को दमोह जिले में आयोजित कुंडलपुर महोत्सव का प्रभारी मंत्री बनाया था। कोरोना की तीसरी लहर और दमोह के भाजपा राजनेताओं की आपसी खींचतान को देखते हुए सकलेचा के लिये यह महोत्सव कराना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था। छोटे से कस्बे में 10 दिन में 20 लाख लोगों की व्यवस्था, जैन संतों के सम्मान और सुरक्षा का ध्यान रखना, शासन प्रशासन के बीच समन्वय, केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल और पूर्व मंत्री जयंत मलैया दोनों का सहयोग लेना। सकलेचा ने यह सब बखूबी करके दिखा दिया। भोपाल मंत्रालय में कुंडलपुर महोत्सव की सफलता का श्रेय सकलेचा को दिया जा रहा है। बताते हैं कि अपनी इस उपलब्धि पर सकलेचा अचानक सीएम के नजर में हीरो बन गये हैं।
डॉ. गोविन्द सिंह से टकराये दूसरे बाबा –
मप्र में लगातार सात बार के विधायक डॉ. गोविन्द सिंह से अब दूसरे बाबा टकरा गये हैं। लगभग पन्द्रह साल तक उनका टकराव रावतपुरा महाराज से चला। रावतपुरा महाराज ने तीन चुनावों में उन्हें हराने का पूरा प्रयास किया, लेकिन डॉक्टर साहब का कुछ नहीं बिगाड़ पाए तो कुछ साल पहले अपने चेलों के जरिये डॉक्टर साहब से झगड़ा खत्म कर संकल्प लिया कि लहार विधानसभा क्षेत्र में मौन रहेंगे। इस सप्ताह मिर्ची बाबा से उनका झगड़ा हो गया है। मिर्ची बाबा भिण्ड में आयोजित कमलनाथ की सभा में मंच पर चढ़ना चाहते थे। डॉ. गोविन्द सिंह ने उन्हें नीचे उतार दिया तो बाबा गुस्सा होकर भाजपा के बड़े नेता के यहां पहुंच गये और डॉ. गोविन्द सिंह पर भड़ास निकालने लगे। बाबा को शायद पता नहीं है कि उन्होंने जिस भाजपा नेता का दामन थामा है, वह डॉ. गोविन्द सिंह के परम मित्र हैं। डॉ. गोविन्द सिंह का कहना है कि बाबा हो तो हिमालय में तपस्या करो, राजनीतिक मंचों पर क्यों घुस रहे हो?
और अंत में –
मप्र के रिटायर आईएएस नरेश पाल के पुनर्वास पर ग्रहण लगता दिखाई दे रहा। उन्हें मप्र राज्य सहकारी समिति चुनाव प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया जाना था। बताते हैं कि इस संबंध में फाइल भी तैयार हुई, लेकिन मप्र के एक ताकतवर अधिकारी ने इसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया है। मप्र में लगभग 50 हजार सहकारी समितियों के चुनाव होने हैं, लेकिन राज्य सहकारी समिति चुनाव प्राधिकरण के अध्यक्ष का पद रिक्त होने से लंबे समय से यह चुनाव टल रहे हैं। उम्मीद थी कि नरेश पाल की नियुक्ति के बाद चुनाव प्रक्रिया शुरू होगी, लेकिन फिलहाल यह नियुक्ति रूक गई है।