अरविंद तिवारी
बात यहां से शुरू करते हैं
2014 में सारी परिस्थितियां अनुकूल होने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने अपने दिग्गज कैलाश जोशी को राज्यपाल बनाने का आश्वासन देकर लोकसभा के टिकट से वंचित कर दिया था। जोशी तो राज्यपाल बन नहीं पाए लेकिन कप्तान सिंह सोलंकी महामहिम जरूर बन गए। अब प्रभात झा की उम्मीदें जागी है। कुछ राज्यों में राज्यपाल बनाए जाना है और राज्यसभा के दो कार्यकाल के बाद फिलहाल खाली बैठे झा संघ के दिग्गज सुरेश सोनी के भरोसे कतार में है। सोनी का बस चलता तो झा कई साल पहले मुख्यमंत्री बन गए होते।
कमलनाथ जो भी करते हैं सोच समझकर ही करते हैं। भाजपा भले ही इसे चलती गाड़ी में सवार होने का प्रकल्प बताए लेकिन इसके पीछे कुछ तो होगा ही। हनुमान भक्त कमलनाथ का राम मंदिर भूमि पूजन के एक दिन पहले अपने निवास पर हनुमान चालीसा का पाठ और प्रदेश भर में कांग्रेसियों को राममय करने का उनका प्रोजेक्ट किसी सोची समझी रणनीति का ही हिस्सा है। उप चुनाव सामने हैं और राम मंदिर के मुद्दे पर कांग्रेस कहीं ब्लैंक ना रह जाए इसलिए उन्होंने यह दांव खेला और और कांग्रेस के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं को यह संदेश दे दिया कि राम हमारे भी हैं, लिहाजा आप भी इन्हें भाजपा की तरह भुनाने में कोई कसर बाकी मत रखो।
पहले शिवराज सिंह चौहान और बाद में कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते हुए उनके प्रमुख सचिव रहे आईएएस अफसर अशोक वर्णवाल अब कई मंत्रियों और विधायकों के निशाने पर हैं। वर्णवाल जब पांचवी मंजिल पर वजनदार थे तब मंत्रियों और विधायकों को अपने कमरे के बाहर इंतजार करवाते थे। इस बार फिर वह पांचवी मंजिल पर ही बरकरार रहना चाहते थे लेकिन ऊपर भरोसा नहीं किया गया और सरकार बदलते ही वे मुख्यमंत्री सचिवालय से बेदखल कर दिए गए। बात यहीं खत्म नहीं हो रही है। उनसे पीड़ित रहे कई विधायक अब सत्ता में अहम भूमिका में हैं और वह वन जैसे महत्वपूर्ण महकमे से भी वर्णवाल की विदाई चाहते हैं। इनकी तैयारी तो उन्हें वल्लभ भवन की नहीं भोपाल से बाहर भिजवाने की है।
सुभाष यादव के बाद अरुण यादव से मुकाबला कर निमाड़ की राजनीति में स्थापित हुए खरगोन के विधायक रवि जोशी इन दिनों एक अलग ही द्वंद में उलझे हुए हैं। उन्हे विधायक बनाने के लिए जिन लोगों ने सालों मेहनत की वह चाहते हैं कि जोशी कांग्रेस को अलविदा कह दें। उनकी तमाम कोशिशों के बाद भी जब जोशी इसके लिए तैयार नहीं हुए तो इन लोगों ने अपने प्रिय विधायक का साथ छोड़ भाजपा का हाथ थाम लिया। बावजूद इसके भरोसा अभी भी इतना है कि हम वहां रहेंगे तो विधायक भी हमारे साथ आ जाएंगे क्योंकि संघर्ष के साथी तो हम ही हैं।
जेल डीजी संजय चौधरी के साकेत में रहने वाले बेटे के निवास पर बढ़ती भीड़ राजधानी में भी चर्चा का विषय है। मामला गृह के साथ ही जेल विभाग की कमान संभाल रहे मंत्री नरोत्तम मिश्रा तक पहुंच चुका है। इंदौर के एक भू माफिया चंपू अजमेरा से जुड़े मामले में जिस तरह से जेल मुख्यालय से सक्रियता दिखाई गई उसे साकेत से मिले इशारे का ही नतीजा बताया जा रहा है। अब पुराने मामले खंगाले जा रहे हैं और जेल पहुंच चुके किन-किन वजनदार लोगों पर बारास्ता साकेत मेहरबानी हो रही है, इसका पता लगाया जा रहा है। इस सबके बीच विभाग से जुड़े कुछ पुराने मामले भी सामने आने लगे हैं।
6-6 महीने बमुश्किल तीन जिलों की कलेक्टरी करने के बाद आदिवासी विकास महकमे में पदस्थ हुए अभिषेक सिंह इन दिनों खूब चर्चा में हैं। तब की आयुक्त दीपाली रस्तोगी ने उन्हें इस महकमे में बहुत वजनदार बना दिया था। मैप सेट, वन्या प्रकाशन, आदिवासी वित्त विकास निगम और उद्यमी विकास का अतिरिक्त प्रभार भी उन्हें सौंप दिया था। बस यहीं से उनकी उड़ान शुरू हुई। ऐसा खेल शुरू किया गया कि सबकी आंखें फटी रह गईं। ऐसे समय में जब सरकार के लिए पाई पाई महत्वपूर्ण है, इन महाशय ने बिना आला अफसरों की जानकारी के पांच करोड़ रू ऐसे मदों में खर्च कर दिए जिसकी कोई जरूरत ही नहीं थी। अभिषेक सिंह अब उलझ गए और प्रमुख सचिव ने जांच के आदेश देते हुए कई प्रभार वापस ले लिए। वारे न्यारे कैसे हुए यह उनके साथ रहने वाले गृह जिले के एक युवक से अच्छा कोई नहीं बता सकता।
पी नरहरि फिर परेशान हैं पर इस बार परेशानी का कारण एम. गोपाल रेड्डी नहीं हैं। आयुक्त नगरीय प्रशासन रहते हुए कुछ एनजीओ के आर्थिक हित साधने के मामले में मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस नरहरि से बेहद नाराज हैं। अब बैंस नाराज हैं तो इसका कोई ठोस कारण ही होगा। बैंस की शोहरत पहले कागज पर पकड़ने और फिर मारने वाले अफसर की है। नरहरि के मामले में वे पहली प्रक्रिया पूर्ण कर चुके हैं और दूसरी के लिए सही समय का इंतजार है। करोड़ों का लाभ प्राप्त करने वाले ये एनजीओ किसके हैं और इनकी मदद करने के पीछे मकसद क्या था यह आप पता लगाईये। हां इतना जरूर है कि इनमें से एक एनजीओ के तार भोपाल के प्रेस कॉम्पलेक्स से जुड़े हुए हैं।
इंदौर या उज्जैन जोन का आईजी बनने की कोई संभावना नहीं दिखने पर आईपीएस अफसर जयदीप प्रसाद ने आखिरकार दिल्ली का रास्ता पकड़ लिया। अब बात गई 5 साल के लिए और तब की तब देखेंगे। प्रसाद की दिली इच्छा तो इंदौर का आईजी बनने की थी लेकिन विवेक शर्मा ज्यादा वजनदार निकले। फिर निगाहें उज्जैन की ओर कीं तो राकेश गुप्ता भी टस से मस नहीं हुए। आखिरी विकल्प होशंगाबाद का था पर वहां भी बात नहीं बनी। भोपाल और जबलपुर के आईजी वे रह ही चुके हैं। दिल्ली में जिस पद पर जयदीप प्रसाद काबिज होने जा रहे हैं वह आईपीएस अफसरों के लिए बहुत प्रतिष्ठा का माना जाता है और इसके लिए चयन भी कोई आसान काम नहीं था।
– चलते चलते
बुरे वक्त में ही अपने-पराए की परीक्षा होती है, लिहाजा सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस के भीतर भी अब असली-नकली की चर्चा चल पड़ी है। इंदौर की दो कांग्रेस नेत्रियों का उदाहरण दिया जा रहा है। एक शोभा ओझा और दूसरी अर्चना जायसवाल। कहने वाले कह रहे हैं कि जब सत्ता थी तो हर तरफ शोभा ही शोभा थीं और जब पार्टी को जरूरत है, तब उनका कहीं कोई अता-पता नहीं है इधर अर्चना विधानसभा क्षेत्रों में शुद्धिकरण यात्रा कर रही हैं। यही फर्क है…!!
– पुछल्ला
जेपी नड्डा और बीएल संतोष के अनुमोदन के बाद मध्य प्रदेश भाजपा की टीम अब कभी भी घोषित हो सकती है। पर यह तय है इसमें चली बीडी शर्मा और सुहास भगत की ही।
– अब बात मीडिया की
दैनिक भास्कर समूह में अगले एक-दो महीनों में बड़े पैमाने पर बदलाव होने वाले हैं। लक्ष्मी पंत और अरुण चौहान का अहम भूमिका में आना तय है । इसके बाद प्रबंधन के निशाने पर चल रहे अवनीश जैन की क्या स्थिति रहती है इस पर सबकी निगाहें है।
पत्रिका समूह के वरिष्ठ साथी श्यामसिंह तोमर ने स्टेट एडिटर विजय चौधरी से हुए विवाद के बाद पत्रिका समूह को अलविदा कह दिया है।
नईदुनिया डॉट कॉम के दो साथियों शशांक बाजपेई और सुदीप मिश्रा को लाइफ लाइन मिल गई है। हालांकि शशांक अब रायपुर में सेवाएं देंगे।
प्रजातंत्र इंदौर की टीम से दो साथी वागिश मिश्रा और मनीष सक्सेना अलग हो गये हैं।
एक अच्छी खबर नई दुनिया से है। यहां के स्टाफ से आंशिक सहयोग लेकर प्रबंधन ने उन्हें 50 हजार रू का कोविड सुरक्षा कवच उपलब्ध करवाया है।
वरिष्ठ पत्रकार राजेश पिपलोदिया मृदुभाषी अखबार की संपादकीय टीम का हिस्सा हो गए हैं। इस अखबार की पीडीएफ सोशल मीडिया पर उपलब्ध हो रही है।
स्पाटलाइट नाम से एक नया यूट्यूब चैनल शुरू होने वाला है यह चैनल एक बहुत नये कांसेप्ट के साथ शुरू हो रहा है, थोड़ा इंतजार करें। इसके प्रवर्तक सुशील बजाज हैं।