राज-काज: सिंधिया अपना सिक्का चलाने में रहे कामयाब….

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 दिनेश निगम ‘त्यागी’

शिवराज मंत्रिमंडल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के दो कट्टर समर्थक गोविंद सिंह राजपूत एवं तुलसी सिलावट को फिर मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने को दो नजरिए से देखा जा रहा है। पहला यही कि भाजपा के न-नुकुर के बाद अंतत: सिंधिया ने अपना सिक्का चला लिया। राजपूत और सिलावट का फिर मंत्री बनना इसका उदाहरण है। दूसरा, राजपूत एवं सिलावट को चूंकि मजबूरी के चलते मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था, इसलिए उप चुनाव के नतीजे आने के तत्काल बाद उन्हें मंत्री पद की शपथ दिला दी जाना थी। ये दोनों सिंधिया के सबसे खास सिपहसलार हैं। इसीलिए जब पांच मंत्रियों की शपथ हुई थी तब सिंधिया खेमे से सिर्फ इन दो को ही मंत्रिमंडल में लिया गया था। उप चुनाव में ये रिकार्ड वोटों के अंतर से जीते भी हैं। फिर भी भाजपा ने उप चुनाव के तत्काल बाद इन्हें मंत्री नहीं बनाया। सिंधिया को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित पार्टी नेतृत्व से चार दौर की बातचीत करना पड़ी। अर्थात भाजपा ने सिंधिया को अच्छा-खासा छकाया, इसके बाद राजपूत-सिलावट मंत्री बन सके। इस कवायद से दो संकेत निकलते हैं। एक, भविष्य में भी सिंधिया अपनी चलाने में कामयाब रहेंगे और दो, भाजपा नेतृत्व उन्हें उनकी हैसियत का अहसास कराता रहेगा।

और इंतजार कराने के मूड मे शिवराज….
भाजपा के अंदर मंत्रिमंडल में शामिल होने के इंतजार में बैठे वरिष्ठ विधायकों को और इंतजार करना पड़ सकता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान फिलहाल मंत्रिमंडल में सभी रिक्त पद भरने के मूड में नहीं हैं। उप चुनाव से पहले मंत्रिमंडल में सिर्फ एक पद रिक्त था और उप चुनाव के बाद 6 पद खाली हो गए। इनमें उप चुनाव के दौरान इस्तीफा देने वाले गोविंद राजपूत एवं तुलसी सिलावट तो मंत्री बन गए लेकिन इमरती देवी, एंदल सिंह कंसाना एवं गिर्राज दंडोतिया की हार के बाद रिक्त पद नहीं भरे गए। राजपूत एवं सिलावट के मंत्री बनने के बाद भी 4 और विधायक मंत्री बन सकते हैं। दरअसल, भाजपा में दावेदारों की संख्या इतनी ज्यादा है कि मुख्यमंत्री एवं पार्टी नेतृत्व के लिए चार नामों का चयन करना आसान नहीं। पार्टी के अंदर मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने वाले चेहरों को लेकर जबरदस्त खींचतान है। कैलाश विजयवर्गीय इंदौर और मालवा से अपने दो मंत्री चाहते हैं। वीडी शर्मा एवं सुहास भगत नए चेहरों को मौका देने के पक्ष में हैं जबकि शिवराज अपने पुराने विश्वस्तों को जगह देने की कोशिश में हैं। इसकी वजह से निर्णय में परेशानी आ रही है। इसका अच्छा तरीका यही निकाला गया है कि कम से कम निकाय चुनावों तक पदों को खाली रखा जाए। वैसे भी ऐसे मसलों में शिवराज कभी ज़ल्दबाज़ी के मूड में नहीं रहते।

किस पर नकेल कसने आ रहे शिव प्रकाश….
– भाजपा नेतृत्व ने पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश को मप्र की निगरानी की कमान इस उद्देश्य से सौंपी है ताकि संगठन-सरकार और मजबूत हो। दोनों में अच्छा समन्वय हो। नेताओं के बीच मतभेद दूर हों और सभी की सहमति से निर्णय हों, लेकिन फैसले को इस परिप्रेक्ष्य से अलग हटकर देखा जा रहा है। शिव प्रकाश के आने से पहले ही चर्चा चल पड़ी है कि उनके आने से कुछ नेताओं की मनमानी पर नकेल कसी जाएगी और कुछ नेताओं की पूछपरख बढ़ेगी। पश्चिम बंगाल का काम देखने वाले कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल एवं नरोत्तम मिश्रा ताकतवर हो सकते हैं, क्योंकि शिव प्रकाश के पास पश्चिम बंगाल का भी प्रभार है। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह की राय को भी महत्व मिल सकता है। पार्टी के अंदरखाने शिकायत है कि सारे निर्णय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत मिलकर कर लेते हैं। मामला पार्टी नेतृत्व तक पहुंचा है। इसकी वजह से शिव प्रकाश जैसे नेता को भोपाल में मुख्यालय बनाकर काम देखने का दायित्व सौंपा गया। शिव प्रकाश क्या करते हैं, यह उनके आने के बाद पता चलेगा लेकिन उनके आने से पहले ही भाजपा में संगठन, सरकार और नेताओं को लेकर तरह-तरह की अटकलों का बाजार गर्म है। कुछ प्रमुख नेताओं के डरे होने की भी खबर है।

कांग्रेस के अंदर सिर-फुटौव्वल वाले हालात….
– प्रदेश कांग्रेस एक बार फिर अपने पुराने ढर्रे पर है। पार्टी के अंदर कमलनाथ के फैसलों को चुनौती मिलने लगी है। गुटबाजी के चलते जैसी आपसी टांग खिंचाई पहले होती थी, फिर शुरू है। पहली खींचतान विधानसभा का घेराव करने की घोषणा के बाद देखने को मिली। पार्टी ने तय किया कि 28 फरवरी को किसानों के समर्थन में सभी विधायक ट्रेक्टरों में बैठकर जाएंगे और विधानसभा का घेराव करेंगे। खबर आई कि आंदोलन का नेतृत्व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव करेंगे। दिग्विजय सिंह ने कहा था कि अरुण को किसानों की लड़ाई के लिए मोर्चा संभालना चाहिए। बस क्या था, एक तरफ अरुण ने इसका श्रेय लेने की कोशिश शुरू कर दी और दूसरी तरफ कमलनाथ से जुड़े लोगों ने आंदोलन से दूरी बना ली। नतीजा, अच्छा-खासा आंदोलन टॉय-टॉय फिस्स होकर रह गया। दूसरा, दिग्विजय सिंह के विधायक बेटे जयवर्धन सिंह ने ट्वीट कर कहा कि विधानसभा में कोरोना पॉजीटिव सिर्फ चार थे पैंतीस नहीं। सत्र स्थगित करने के लिए यह किया गया। इस तरह उन्होंने कमलनाथ द्वारा सत्र स्थगित करने में सहमति देने के निर्णय पर सवाल उठा दिया। स्पष्ट है, पार्टी के अंदर आपसी सिर-फुटौव्वल के ऐसे हालात बन रहे हैं कि पार्टी का उबरना मुश्किल है। एक बात और साफ हो रही है कि कमलनाथ और दिग्विजय खेमे आमने – सामने हो रहे हैं।

भाजपा में दो कक्षों पर कब्जे के लिए लाबिंग….
– प्रदेश भाजपा मुख्यालय के दो कक्ष महत्वपूर्ण हो गए हैें। इसकी वजह है, इनमें बैठने वाले नेताओं का तरक्की करना। इस समय जब पार्टी की प्रदेश कार्यकारिणी के गठन की कसरत चल रही है, तब कई नेता इन कक्षों पर कब्जे के लिए लाबिंग कर रहे हैं। एक कक्ष मीडिया प्रभारी का और दूसरा कार्यालय मंत्री संगठन का है। पहले मीडिया प्रभारी विजेश लुनावत, गोविंद मालू एवं डा. हितेश वाजपेयी रहे। इसके बाद से लुनावत पार्टी में लगातार ताकतवर हैं। मालू एवं डा. वाजपेयी निगम-मंडलों में नियुक्ति के साथ मंत्री एवं राज्य मंत्री का दर्जा हासिल कर चुके हैं। दूसरे कक्ष में सत्येंद्र भूषण सिंह से पहले आलोक संजर बैठते थे। अचानक वे सांसद बन गए। इन कक्षों में फिलहाल लोकेंद्र पारासर और सत्येंद्र भूषण सिंह बैठते हैं। दोनों की संगठन में चलती है। भविष्य में इनकी भी सरकार में बैक डोर एंट्री हो सकती है। इसका नतीजा है, संगठन में जितनी जोड़तोड़ उपाध्यक्ष, महामंत्री, मंत्री और प्रवक्ता आदि बनने के लिए नहीं हो रही, इससे ज्यादा मीडिया प्रभारी एवं कार्यालय मंत्री बनने के लिए जारी है। पार्टी के बड़े नेता भी इन पदों पर अपने समर्थकों को बैठाने की कोशश में हैं। लोकेंद्र और सत्येंद्र भूषण बदलते हैं या नहीं और बदलते हैं तो इनका स्थान कोन लेता है, इसे लेकर कयास जारी हैं। बहरहाल इन दो कक्षों को शुभ माना जा रहा है।