इंदौर। कॉविड के बाद से साइकाइट्रिक से संबंधित समस्या में बढ़ोतरी हुई है। जिसमें बच्चों में सबसे ज्यादा गेमिंग एडिक्शन के किस देखने को सामने आ रहे हैं। पहले बच्चे स्कूल जाने के बाद फ्री टाइम में गार्डन, ग्राउंड में खेल और अन्य एक्टिविटी करते थे लेकिन अब यह लगभग खत्म हो गया है। कोविड के दौरान जब सब कुछ बंद था तो बच्चों ने ज्यादा समय मोबाइल और लैपटॉप पर बिताया उनकी एक क्लिक बटन पर उनके सामने हजारों इंटरटेनमेंट के विकल्प मौजूद थे और अब उस लेवल का इंटरटेनमेंट उन्हें अन्य गेम्स खेलने में नहीं आता है। वही बच्चों में गुस्सा, चिड़चिड़ापन, स्कूल जाने से मनाही जैसे समस्याएं सामने आती है। इसी के साथ यंग जनरेशन में एंजायटी और डिप्रेशन से संबंधित समस्या में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। कॉविड के दौरान लाइफ ने हमें अनसर्टेंटी दिखा दी है जिस वजह से जिन लोगों में एंजायटी से संबंधित टेंडेंसी थी उनमें यह बीमारी डेवेलप हो गई है।
यह बात डॉक्टर श्रीकांत रेड्डी ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही वह शहर के प्रतिष्ठित अरबिंदो मेडिकल कॉलेज में डिपार्टमेंट ऑफ साइकाइट्रिक में प्रोफेसर और विभाग अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
सवाल. बाइपोलर मुड़ डिसऑर्डर क्या है यह कैसे डेवलप होता है
जवाब. बात अगर बाइपोलर मुड़ डिसऑर्डर की करी जाए तो यह एडल्ट में अक्सर पाया जाता है वहीं कई बार बच्चों में भी इसके केस देखे जाते हैं। इस डिसऑर्डर में पेशेंट के मूड स्विंग होते हैं यानी समय-समय पर बदल जाते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं। इस डिसऑर्डर में मेनिया की अगर बात की जाए तो कई बार व्यक्ति में कुछ हफ्ते या महीनो के लिए तेजी आ जाती है जिसके चलते बड़ी-बड़ी बातें करना, अति उत्साहित होना पैसे खर्च करना महत्वाकांक्षी हो जाना शामिल है। वहीं इसके विपरीत डिप्रेशन होता है जिसमें व्यक्ति उदास हो जाता है, गुमसुम हो जाता है उसे लगता है जीवन बेकार है। कई बार डिप्रेशन की वजह से आत्महत्या तक के विचार आते हैं। बाइपोलर मुड डिसऑर्डर एक मस्तिष्क की बीमारी है हमारे मस्तिष्क में मौजूद न्यूरोट्रांसमीटर के लेवल में बदलाव के चलते इस प्रकार की समस्या सामने आती है। कई बार यह बीमारी आनुवांशिक रूप से भी सामने आती है। इस बीमारी के शुरुआती लक्षण को जांच कर सही समय पर ट्रीटमेंट करने से काफी हद तक निदान किया जा सकता है। वहीं लापरवाही करने पर महीने में 4 से 5 बार मूड़ स्विंग आने की संभावना बनी रहती है जिस वजह से इंसान सामान्य जीवन नहीं जी पता है।
सवाल. मनोरोग में सिजोफ्रेनिया बीमारी क्या है यह बीमारी किन कारणों से सामने आती है
सवाल. सिजोफ्रेनिया कि अगर बात की जाए तो यह भी बाइपोलर मूड डिसऑर्डर की तरह क्रॉनिक बीमारी है। इसकी शुरुआत 18 से 25 साल की उम्र में होती है। इस बीमारी के लक्षण की अगर बात की जाए तो व्यक्ति को शंका होना शामिल है जिसमें व्यक्ति को ऐसा लगता है कि लोग मेरे खिलाफ हैं कोई षड्यंत्र रच रहे हैं। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को अक्सर कानों में आवाज सुनाई देती है जिसमें उन्हें लगता है उनसे कोई व्यक्ति बात कर रहा है और उसे इन बातों पर भरोसा हो जाता है। इसी के साथ व्यक्ति के व्यवहार, रात में नींद में डिस्टरबेंस, खुद का ख्याल नहीं रख पाना और अन्य प्रकार के लक्षण देखे जाते हैं। कई बार यह बीमारी अनुवांशिक रूप से भी सामने आती है ऐसा भी देखा गया है कि जब बच्चा पैदा होता है तो उसमें सिजोफ्रेनिया की टेंडेंसी रहती है और जब इस टेंडेंसी के ऊपर स्ट्रेस काबू कर लेता है तो यह बीमारी बाहर आ जाती है। जीतनी जल्दी लक्षणों को पहचान कर इस बीमारी का ट्रीटमेंट लिया जाता है उतने ही ज्यादा अच्छे बेहतर रिजल्ट सामने आते हैं। कई बार लापरवाही के चलते यह बीमारी इतनी बढ़ जाती है की दवाइयो का इस पर असर नहीं होता है। कई बार लोग इसे जादू टोना समझ कर दूसरी चीजों की ओर बढ़ जाते हैं जिसके चलते काफी देर हो जाती है।
सवाल. आपने-अपनी मेडिकल फील्ड की पढ़ाई किस क्षेत्र में और कहां से पूरी की है
जवाब. मैंने अपनी एमबीबीएस और एमडी साइकाइट्रिक की पढ़ाई महात्मा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज सेवाग्राम महाराष्ट्र से पूरी की है। अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद मैने महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दी वहीं इंदौर आने के बाद मैंने शहर के प्रतिष्ठित अरबिंदो हॉस्पिटल ज्वाइन किया और पिछले 10 सालों से मैं यहां पर मनोरोग डिपार्टमेंट में प्रोफेसर और विभाग अध्यक्ष के अपनी सेवाएं दे रहा हूं। वही में अपने डॉक्टर रेड्डीज एंड माइंड क्लिनिक और अंकुर रिहैब सेंटर पर भी अपनी सेवा देता हूं। इसी के साथ में संस्था स्पंदन से भी जुड़ा हूं जहां पर मैं मनोरोग चिकित्सा से संबंधित सेवाएं फ्री में प्रदान करता हूं।