इंदौर : 02 नवम्बर सोमवार।
सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनियां इस समय दो महामारियों से जूझ रही है: पहला कोरोना महामारी और दूसरा सूचना की महामारी जिसे ‘इनफोडेमिक’ कहा जा रहा है। एक तरफ सूचना की अति है तो दूसरी तरफ गलत सूचनाओं की बमबारी।
दोनों ही स्थितियां घातक हैं। कोरोना की वैक्सीन तो देर सबेर निकल आएगी पर सूचना की महामारी से बचने के लिए सिवाय मीडिया और इनफार्मेशन लिटरेसी के सिवा कोई दूसरी वैक्सीन नहीं है। फेक न्यूज़ के अन्धकार को मीडिया और इनफार्मेशन लिटरेसी का चिराग ही दूर कर सकता है।
यह बात प्रेस्टीज इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट एंड रिसर्च के डिपार्टमेंट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन की प्रोफेसर भावना पाठक ने प्रेस्टीज प्रबंध शोध संसथान के बी ए जे एम् सी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा आयोजित “फैक्टशाला वर्कशॉप” के अंतर्गत मीडिया के छात्रों को न्यूज़ एंड इनफार्मेशन लिटरेसी के विभिन्न पहलुओं की जानकारी देते हुए कही
उन्होंने कहा कि सूचना एवं संचार के इस दौर में ‘इनफार्मेशन सुपर हाइवे’ पर सेफ और कंट्रोलड ड्राइविंग के लिए मीडिया एंड इनफार्मेशन लिटरेसी बहुत अहमियत रखती है। शहरी क्षेत्र तेज़ी से डिजिटल परिवर्तन की ओर गतिशील है। आंकड़े बताते हैं कि हमारा देश इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों में दुनिया में दूसरे स्थान पर है। इसलिए डिजिटल संस्कृति को अपनाने के लिए डिजिटल एटिकेट्स को जानना बेहद ज़रूरी है ताकि आप फेक न्यूज़, साइबर फ्रॉड या साइबर क्राइम का शिकार न बन सकें।
मिसइंफॉर्मेशन और डिसइंफॉर्मेशन की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इससे न केवल व्यक्ति विशेष का नुकसान होता है बल्कि इससे पूरा समाज प्रभावित होता है और यह देशहित के विरुद्ध है। बी ए जे एम् सी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कोर्डिनेटर प्रोफेसर जुबेर खान ने कहा कि यह कार्यशाला इंटरन्यूज़ के तत्वावधान में डेटालीड और गूगल न्यूज़ इनिशिएटिव के सहयोग से संपन्न हुई जिसका उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाना है ताकि वे इन्फॉर्मेशन सुपर हाईवे पर सुरक्षित चल सकें।