दिनेश निगम ‘त्यागी’
ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने और केंद्र में मंत्री बनने के बाद भाजपा ‘कांटे से कांटा निकालने’ और ‘लोहे से लोहा काटने’ की तैयारी में है। सिंधिया कांग्रेस में थे तो न वे कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह के क्षेत्र में हस्तक्षेप करते थे, न ये दोनों सिंधिया के प्रभाव क्षेत्र में। भाजपा अब बदले हालात का फायदा उठाने की कोशिश में है। भाजपा में कसक है कि 2019 की नरेंद्र मोदी आंधी में भी कमलनाथ छिंदवाड़ा लोकसभा सीट बचा ले गए। उनके बेटे नकुलनाथ चुनाव जीत गए। लिहाजा, भाजपा नेतृत्व का पहला निशाना छिंदवाड़ा है। इसे भेदने के लिए सिंधिया को जवाबदारी सौंपी गई है। वे अगस्त में छिंदवाड़ा दौरे पर जाने वाले हैं। भाजपा की कोशिश सिंधिया के आभामंडल का उपयोग कर कमलनाथ को उनके गढ़ में मात देने की है। कांग्रेस का दूसरा अभेद्य गढ़ है राघौगढ़। यहां दिग्विजय जिसे चाहते हैं, चुनाव जीतता है।
राजगढ़ के कुछ और क्षेत्रों में भी दिग्विजय का असर है। भाजपा ने सिंधिया को राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र में भी सक्रिय होने के लिए कहा है। वे अगस्त में राजगढ़ क्षेत्र के दौरे में भी जाने वाले हैं। सिंधिया के जरिए भाजपा इन दोनों गढ़ों को भेद पाती है या नहीं, कांटे से कांटा निकल पाता है या नहीं, यह देखना किसी रोचक फिल्म से कम नहीं होगा। मुकुल के सामने कमलनाथ की शिकायत कांग्रेस में नेताओं के बीच की गुटबाजी एक दिन के भोपाल दौरे पर आए मुकुल वासनिक के सामने भी आई। कांग्रेस के एक प्रमुख नेता ने शिकायत की कि प्रदेश कांग्रेस में सारी शक्तियां केंद्रीयकृत हैं। प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ सर्व-शक्तिमान हैं ही, उन्होंने प्रदेश कांग्रेस चलाने के लिए चार अपने खास लोगों को अधिकृत कर रखा है। ये चंद्रप्रभाष शेखर, राजीव सिंह, सज्जन सिंह वर्मा एवं जीतू पटवारी हैं।
विधानसभा चुनाव के दौरान चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए थे। इनमें से एक जीतू पटवारी को मीडिया विभाग का प्रमुख बना रखा गया है, शेष तीन कार्यकारी अध्यक्षों रामनिवास रावत, बाला बच्चन एवं सुरेंद्र चौधरी के पास कोई काम नहीं है। तय हुआ था कि प्रदेश को चार क्षेत्रों में बांटकर एक-एक कार्यकारी अध्यक्ष को एक-एक क्षेत्र की जवाबदरी सौंपी जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वे सिर्फ विजिटिंग कार्ड तक सीमित हैं। वासनिक को बताया गया कि कांग्रेस की मजबूती के लिए जरूरी है कि काम का बंटवारा हो। कांग्रेस में एक वर्ग पहले से ही चाहता है कि कमलनाथ के पास दोनों पद नहीं रहना चाहिए। पहले वे मुख्यमंत्री के साथ प्रदेश अध्यक्ष थे, अब प्रदेश अध्यक्ष के साथ नेता प्रतिपक्ष हैं। देखना होगा, वासनिक इस शिकायत पर कुछ कर पाते हैं या नहीं। साफ हो गया सिंधिया समर्थकों का पत्ता भाजपा एक तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया का उपयोग कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गजों के गढ़ भेदने में करने की तैयारी में है, दूसरी तरफ उनके समर्थकों को पद देने में कंजूसी भी कर रही है।
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने प्रदेश कार्यकारिणी सदस्यों की घोषणा की थी तो उसमें सिंधिया समर्थक 68 नेताओं को जगह दी थी। अब संभाग, जिलों एवं मोर्चा संगठनों के प्रभारी नियुक्त किए तो सिंधिया समर्थकों का पत्ता साफ कर दिया। साफ है कि महाराज के समर्थकों को तवज्जो नहीं मिल रही। कांग्रेस को चुटकी लेने का अवसर मिल गया। सिंधिया के 68 में से एक भी समर्थक को प्रभार न देने पर कांग्रेस के केके मिश्रा ने कहा कि लगता है सिंधिया समर्थकों को अब तक भाजपा दिल से स्वीकार नहीं कर सकी है। इतना ही नहीं एक सप्ताह पहले बैठकों के बाद बताया गया था कि निगम-मंडलों में शीघ्र नियुक्तियां होने वाली हैं। इसमें सिंधिया के खास इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया, मुन्नालाल गोयल, रणवीर जाटव जैसे नेताओं को जगह मिलने वाली है लेकिन सूची भी ठंडे बस्ते में चली गई।
सिंधिया केंद्रीय मंत्री बन चुके हैं, इसलिए ज्यादा दबाव बनाने की स्थिति में नहीं रहे। ऐसे में सिंधिया समर्थकों का भाजपा से मोहभंग हो सकता है। कांग्रेस नेतृत्व की इस पर पैनी नजर है। अरुण की राह में बोए जा रहे कांटे चर्चा गरम है कि क्या कांग्र्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव की राह में कांटे बोए जा रहे हैं। ग्वालियर के एक गोडसे भक्त को कांग्रेस में लेने पर अरुण यादव ने चूंकि कमलनाथ का तीखी विरोध किया था, इसलिए खंडवा से उनके टिकट पर संकट पैदा किया जा रहा है। पूरी पार्टी जानती है कि अरुण खंडवा से स्वाभाविक दावेदार हैं। वे उप चुनाव के लिए क्षेत्र में मेहनत कर रहे हैं लेकिन कमलनाथ से सवाल किया गया तो उन्होंने कह दिया कि टिकट सर्वे रिपोर्ट के आधार पर मिलेगा और अरुण ने मुझसे कहा ही नहीं कि वे चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसके बाद खंडवा में अरुण के विरोधी निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा ने कमलनाथ से मुलाकात कर अपनी पत्नी के लिए टिकट मांग लिया।
किसी आदिवासी को टिकट देने की मांग को लेकर विधायक झूमा सोलंकी सामने आ गर्इं। उप चुनावों को लेकर बुलाई गई बैठक में अरुण यादव नहीं पहुंचे तो कमलनाथ के खास सिपहसलार सज्जन वर्मा ने तंज कसा कि अरुण तय कर लें कि उन्हें अपनी खेती-बाड़ी देखना है या राजनीति करना है। टिकट किसे मिलता है किसे नहीं, यह बात में पता चलेगा लेकिन इतना तो साफ है कि अरुण की राह में कांटे बोए जा रहे हैं। उनके भाजपा में जाने तक की अटकलें चल पड़ी हैं। सबनानी के सामने परीक्षा की असल घड़ी राजनीति में कुछ लोग शोहरत और सिफारिश की दम पर शिखर पर पहुंचते हैं, कुछ अपने काम और मेहनत की बदौलत। भाजपा के प्रदेश महामंत्री भगवानदास सबनानी ऐसे नेताओं में शुमार हैं जो अपने संगठन कौशल एवं मेहनत की बदौलत प्रदेश भाजपा में नंबर चार तक पहुंच गए। इस समय उनके पास वह दायित्व है जो कभी वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा, नंदकुमार सिंह चौहान एवं अजय प्रताप सिंह आदि के पास हुआ करता था।
सबनानी को प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने अपनी टीम में महामंत्री बनाया था। उन्होंने खुद को साबित किया। अब सबनानी महामंत्री के साथ प्रदेश कार्यालय के प्रभारी महामंत्री हैं और संगठन की ओर से इंदौर जैसे महत्वपूर्ण संभाग के प्रभारी। कार्यालय प्रभारी के नाते उन्हें वहां पहुंचने वाले हर नेता व कार्यकर्ता को संतुष्ट करना है, व्यवस्थाएं सुचारु रूप से चलाना है। दूसरी तरफ इंदौर संभाग के प्रभारी के नाते ताई-भाई अर्थात सुमित्रा महाजन और कैलाश विजयवर्गीय के बीच तालमेल बैठाकर संगठन को सक्रिय करना है। साथ ही सिंधिया के कट्टर समर्थक मंत्री तुलसी सिलावट को भी साध कर चलना है। पार्टी नेतृत्व को अहसास है कि यह कौशल सबनानी दिखा सकते हैं। सबनानी को मौका मिला है, लेकिन अब उनके सामने परीक्षा की असल घड़ी है।