कार्तिक मास की अमावस्या पर भगवन श्री राम ने लंकापति रावण का वध किया था। उसके बाद ही वह 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे। उनके अयोध्या लौटने की ख़ुशी में पुरे अयोध्या को दीपों से सजाया गया था। जिसके बाद से ही इस दिन को दिवाली के नाम से जाना जाने लगा। इसलिए हर साल दिवाली हर्षोउल्लास के साथ मनाई जाती है। लेकिन क्या आप जानते है कार्तिक पूर्णिमा के दिन भी एकक दिवाली मनाई जाती है। उस दिवाली का नाम है देव दिवाली। आज हम आपको इसके बारे में बताने जा रहे हैं साथ ही इससे जुड़ी पौराणिक महत्व भी बताने जा रहे हैं।
देव दिवाली का महत्त्व – आपको बता दे, इस बार कार्तिक पूर्णिमा तिथि 29 नवंबर के दोपहर 12.47 बजे से शुरु होकर 30 नवंबर के दोपहर 2.59 बजे तक रहेगी। जैसा की आप जानते है दिवाली रात का पर्व है, इसीलिए 29 नवंबर की रात काशी में दीए जलाकर देव दिवाली मनाई जाएगी। काशी में इस दिन की धूम काफी ज्यादा रहती हैं। कशी के पूरे घाट दीप से जगमगाए दिखाई देते हैं।
वहीं बता दे, इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने का भी काफी ज्यादा महत्त्व होता है। इस बार दिवाली दो दिन है इसीलिए देव दिवाली 29 नवंबर को होगी जबकि 30 नवंबर को सुबह लोग गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाएंगे। हालांकि कई जगह पर कोरोना के चलते इसकी अनुमति नहीं भी हो सकती हैं। लेकिन ऐसे करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। दरअसल, स्नान के बाद दान का भी विशेष महत्व बताया गया है।
शिव ने किया था राक्षस का संहार (पौराणिक महत्त्व) –
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार पृथ्वी पर त्रिपुरासुर राक्षस का आतंक फैल गया था। जिससे हर कोई परेशान हो रहा था। इसको देखते हुए देव गणों ने भगवान शिव से इस राक्षस के संहार का निवेदन किया था। इस निवेदन को स्वीकार करते हुए शिव शंकर ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया था। इसको देख देवता काफी ज्यादा प्रसन्न हुए और शिव का आभार व्यक्त करने के लिए काशी आए थे। बता दे, जिस दिन इस अत्याचारी राक्षस का वध हुआ और देवता काशी में उतरे उस दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा थी। इसलिए देवताओं ने काशी में अनेकों दीए जलाकर दिवाली मनाई। यही वजह है कि हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर आज भी काशी में दिवाली मनाई जाती है और चूंकि ये दीवाली देवों ने मनाई थी इसीलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है।