मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी, बोले – सद् निमित्त, शुभ आलंबन व सत्संग से सद्गति संभव है

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मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी, सद् निमित्त, शुभ आलंबन व सत्संग से सद्गति संभव है

Indore : मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने आज समझाया कि, मनुष्य को तीन विशेष परिस्थितियाँ प्राप्त हैं जिनके सहारे वह अपने कल्याण का रास्ता अपना सकता है। आत्मा संसार में परिभ्रमण कर रही है परंतु उसका कल्याण हो सके ऐसी दुर्लभ वस्तु नहीं मिली है। जैसे निमित्त मिलते हैं वैसे ही भाव बनते हैं। पूर्व के पुण्यों से इस जन्म में तीन विशेष परिस्थितियाँ प्राप्त हुई हैं।

1. सद् निमित्त की प्राप्ति – यह बाह्य तत्वों से प्राप्त होने वाले कारण है। यहाँ पर यह तथ्य अति महत्वपूर्ण है कि जो निमित्त मिला है उसको हम किस आशय/दृष्टिकोण से देखते हैं। निमित्त तो कई मिलते हैं परंतु उनको हम व्यवहार में कैसे लाते हैं या कैसे स्वीकारते है यह विचारणीय है। अशुभ निमित्त मिलना आत्मा के पतन की राह है जबकि, शुभ निमित्त परमात्मा को पाने का पथ है। उपहार भी अच्छा निमित्त बन जाता है जैसा कि, श्री अभय कुमार ने श्री आद्र कुमार को भगवान की प्रतिमा का उपहार दिया था। वस्तु, दृश्य, श्रवण, स्पर्श के शुभ निमित्त कल्याण के कारण बन सकते हैं बस आवश्यकता इस बात की है कि, इनके प्रति हमारा नजरिया कैसा है। “शुभ निमित्त की घंटी बज उठी, शुभ भाव जाग्रत कर लो”

2. शुभ आलंबन की प्राप्ति – सद निमित्त बाह्य है तो आलंबन आंतरिक है अर्थात यह हमको स्वयं लेना पड़ता है। परमात्मा और गुरु भगवंत के समक्ष बैठना, जिनवाणी का श्रवण शुभ आलंबन है। नियम लेकर उसका पालन मृत्यु तक करना अच्छी गति का मार्ग है। नियम का प्रभाव भी स्वभाव को सुधार सकता है। अशुभ आलंबन नीचे ले जाने वाला मार्ग है। शुभ आलंबन जीवन को स्वर्णिम बना देता है। “आत्मबल से शुभ आलंबन अंगीकार करो”

3. सत्संग की प्राप्ति – यह व्यक्ति को पूरा बदल सकता है। सत्संग ऐसी परिस्थिति है जिससे केवल-ज्ञान भी प्राप्त हो सकता है। सत्संग के अनेकों उदाहरण हैं जिनसे जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ। एक उदाहरण के माध्यम से बताया कि, एक घोर-पापी का जीवन साधु के तीन शब्दों के सत्संग से बदल गया (1) उपसम – आवेश में हो, शांत हो जाओ, (2) विवेक – विवेक जाग्रत करो, पाप छोड़ो एवं (3) संवर – संकल्प लेना पाप नहीं करना। साधु के दर्शन भी सत्संग है। “जैसी संगत, वैसी रंगत”

जिन शासन के अस्पताल में गुरु चिकित्सक की सलाह से जिनधर्म की औषधि लेकर हमारे भव के असाध्य रोग भी साध्य हो गये हैं क्योंकि इस अस्पताल के प्रमुख परमात्मा हैं।

मुनिवर का नीति वाक्य

“‘गुरु-भगवंत का आलंबन, पाप का निलंबन”

राजेश जैन युवा ने जानकारी दी कि, कल सामूहिक दीपक एकासने की तपस्या का आयोजन है जिसमें दीपक जलने तक ही एक समय भोजन करना है। इस अवसर पर वीरेंद्रजी बम श्री चंद्र कुमारजी डागा, श्रीमती साधना नाहर व कई पुरुष व महिलायें उपस्थित थीं।