मां हरसिद्धि दशहरे के दिन शहर में स्वयं निकलती है दशहरा देखने, दर्शन करने से मिलती हैं सुख शांति

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आबिद कामदार

इंदौर.मां अहिल्याबाई की इस नगरी में प्राचीन और अद्भुत मंदिरों की फेहरिस्त काफी लंबी है, यहां कई चमत्कारी मंदिर है, अगर हम बात पंढरीनाथ स्थित हरसिद्धि मंदिर की करे तो यह शहर का सबसे पुरातन मंदिर माना जाता है | इस मंदिर में नवरात्र के दौरान भक्तों की संख्या बढ जाती है | मंदिर के पुजारी सुनील शुक्ला जी बताते है कि उनके पूर्वज पंडित जनार्दन भट्ट जी को माता ने स्वप्न में दर्शन दिए, यह बात उन्होंने राज दरबार में बताई की बावड़ी के अंदर मां भगवती स्वरूप विद्यमान है।

जब राज परिवार ने बावड़ी खाली करवाई तो भगवती की मूर्ति प्रकट हुई, इसके बाद प्राण प्रतिष्ठा कर मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकर ने सन् 1766 में करवाया था। तब यहाँ उनके पुत्र श्रीमंत मालेरावजी का शासन था। मंदिर में स्थापित देवी की दिव्य मूर्ति पूर्वाभिमुखी महिषासुर मर्दिनी मुद्रा में है।चार भुजाओं वाली माँ दाहिनी भुजा में खड्ग व त्रिशूल तो बायीं भुजा में घण्टा व मुण्ड धारण किए हुए हैं। मंदिर के पुजारी जी बताते है कि पंडित जनार्दन भट्ट संस्थापक पुजारी थे, उन्हें देवी अहिल्याबाई ने सनद देकर पुरोहित नियुक्त किया था। आज भी कई लोग संतान प्राप्ति और अन्य प्रार्थना के लिए मंदिर आते हैं।

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दशहरे के दिन शहर में मां स्वयं भी दशहरा देखने, विजय करने निकलती है।

कहा जाता है कि महिषासुर मर्दिनी नवरात्र के दौरान दशहरे के दिन दर्शन देती है। प्रारंभ काल से यह मान्यता रही है, की लोग दशहरा विजय करने के बाद मां के दर्शन करने आते हैं। मां भगवती ने दशहरे के दिन महिषासुर वध किया था, वहीं इस दिन मां स्वयं भी दशहरा देखने विजय करने निकलती है। इस दिन यहां लोग आकर सुख, शांति की कामना करते है।

चैत्र नवरात्रि की दशमी और अश्विन मास की दशमी को माँ का विशेष श्रृंगार किया जाता है।

मंदिर के पुजारी बताते है देवी भगवती का अभिषेक ब्रह्म मुहूर्त में और आरती सुबह सा़ढ़े 7 व 10 बजे तथा रात 9 बजे होती है। वहीं माता के दरबार में यहां वर्ष में दो बार चैत्र नवरात्रि की दशमी और अश्विन मास की दशमी को माँ का विशेष श्रृंगार किया जाता है। वहीं भक्तगण इस दिन माँ के दर्शन सिंहवाहिनी के रूप में करते हैं। इन दिनों माता रानी के दरबार में कई भक्त दर्शन के लिए आते हैं।

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माता रानी की गोद भर लोग संतान की करते है कामना

यहां माता रानी के दरबार में कई लोग शहर और बाहर से आते है, और मां की गोद भरते है, और यह कामना करते है कि है मां हमने तेरी गोद भरी अब तू हमारी गोद भर दे। मां का नाम ही हरसिद्धि है यहां हर कार्य सिद्ध हो जाते है। इसी तरह कई लोग यहां मां के दरबार में अर्जी लगाने के बाद संतान सुख पाते है।

मां के दरबार में सालभर होते है आयोजन

वहीं मां के दरबार में सालभर कई आयोजन होते हैं, अष्टमी पर विशेष हवन के साथ नवमी पर मंदिर परिसर में कन्या भोजन आयोजित किया जाता है। इसके साथ श्रीसूक्त, ललिता सहस्रनाम और दुर्गा सप्तशती के पाठ भी मंदिर प्रांगण में किए जाते हैं। वहीं श्रद्धालु भी दरबार में सालभर विशेष पूजन-पाठ कराते हैं।

यहां पूजा करने से शरीर पर निकलने वाले दाने होते है बंद

जैसे ही आप मंदिर परिसर में दाखिल होंगे, मंदिर के दाई और एक पुराना सा खंडहर भी बना है जिसे रुक्मणी देवी का मंदिर कहा जाता है, यह पुरातत्व विभाग के अधिपत्य में है।मंदिर परिसर में बाद में निर्मित शंकरजी व हनुमान जी के मंदिर भी हैं। लोगों की मान्यता है कि यहाँ पूजा करने से शरीर पर निकलने वाले दाने, जिन्हें आम मान्यताओं में (माता) कहते हैं, वह बंद हो जाते हैं। वहीं नवजात के बालों का प्रथम मुंडन भी यहाँ पर ही होता है।

मंदिर के सामने पक्की बाव़ड़ी हुआ करती थी, यहीं से माता रानी प्रकट हुई।

इस अद्भुत और प्राचीन मंदिर से कई किन्वदंतियाँ भी जु़ड़ी हैं। पहले के जमाने में मंदिर के सामने कभी एक पक्की बाव़ड़ी हुआ करती थी। यहीं से माता रानी प्रकट हुई थी। मान्यता यह है, कि माँ की मूर्ति इसी बाव़ड़ी से मिली थी। यह भी कहा जाता है कि महाराजा मल्हारराव होलकर को युद्ध से लौटते समय इस मूर्ति के दर्शन हुए थे। इस मंदिर में आज भी कई लोग दर्शन के लिए आते हैं