कमल दीक्षित अब यादें ही शेष हैं, हिंदी पत्रकारिता के विश्वविद्यालय थे…

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अर्जुन राठौर- थोड़ी देर पहले ही खबर मिली की जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार कमल दीक्षित जी अब हमारे बीच नहीं रहे कैंसर और कोरोना दोनों उनके जीवन के लिए घातक बन गए.

कमल दीक्षित सिर्फ पत्रकार नहीं थे बल्कि वे हिंदी पत्रकारिता के विश्वविद्यालय थे उनकी अगली पीढ़ी के पत्रकारों को पत्रकारिता सिखाने में बेहद रूचि रहती थी यही वजह है कि उन दिनों जब पंकज शर्मा सहित कई अन्य पत्रकारों का नवभारत टाइम्स के लिए चयन होना था तब कमल दीक्षित ने ही उन्हें पत्रकारिता के गुर सिखाए और इसी के दम पर नवभारत टाइम्स से लेकर अनेक स्थानों पर उनके द्वारा प्रशिक्षित पत्रकारों का चयन हुआ.

वे नवभारत के संपादक थे तब मैं उनके साथ नवभारत में सिटी रिपोर्टर था और उन्हीं दिनों इंदिरा जी की हत्या जैसा हादसा हुआ था तब कमल दीक्षित जी ने दैनिक भास्कर की टक्कर के मुखपृष्ठ दिए थे उनकी पत्रकारिता की शैली भी बहुत निराली थी वे हर काम को अपने तरीके से करते थे नवभारत के बाद कमल दीक्षित जी ने खुद का भी एक अखबार निकाला था जिसका नाम था सूचक बाद में सुरेश बिंदल इसके मालिक और संपादक बने इसके अलावा उन्होंने बरगद नाम से भी एक अखबार निकलवाया था जिसके वे संपादक थे.

उन्हीं दिनों माखनलाल चतुर्वेदी हिंदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में शिक्षक के रूप में उनका चयन हो गया और इसके बाद तो कमल दीक्षित जी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा उनकी रूचि नए पत्रकारों को तैयार करने में रहती थी और यहां तो पूरा विश्व विद्यालय ही उन्हें मिल गया था उन्होंने अपने लंबे कार्यकाल में हिंदी पत्रकारों की एक बड़ी फौज तैयार कर दी माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय से रिटायर होने के बाद कमल दीक्षित जी का सफर रुका नहीं बल्कि उन्होंने प्रजापिता ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालय के साथ जुड़कर एक अखबार निकाला यह अखबार मूल्यानुगत मीडिया के नाम से प्रसिद्ध हुआ और इसके माध्यम से भी वे लगातार पत्रकारों के सेमिनार करते रहे और पत्रकारिता के गिरते स्तर को संभालने के लिए वे मूल्यांकन मीडिया के माध्यम से पत्रकारिता के नैतिक सिद्धांतों पर बातें करते थे ।

कमल दीक्षित मानते थे कि पत्रकारिता को मूल्यों के साथ ही किया जाना चाहिए उन्होंने नव भारत में रहते हुए भी इसी बात को प्रतिष्ठित किया कुल मिलाकर कमल दीक्षित लंबे समय तक अपने शिष्यों के बीच इस बात के लिए भी याद किए जाएंगे कि उन्होंने खुद से अधिक अपने साथियों की परवाह कि उन्हें दिशाएं दी और उनके लिए जगह बनवाई अब उनकी यादें ही शेष है ।