जटिया: भाजपा के श्रेष्ठि वर्ग का नया ‘माणक’

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निरुक्त भार्गव

राजनीति का क्षेत्र अत्यंत अनिश्चितताओं-भरा होता है, इसे सत्यनारायण जटिया के सन्दर्भ में समझा जा सकता है! बुधवार को भारतीय जनता पार्टी के सर्वोच्च अधिकार प्राप्त ‘केन्द्रीय संसदीय बोर्ड’ और ‘केन्द्रीय चुनाव समिति’ में उनका मनोनयन कई संकेत दे रहा है! 11-सदस्यीय बोर्ड और 15-सदस्यीय समिति में मध्यप्रदेश से उनका अकेले का मनोनयन हुआ है! भाजपा के ये दोनों अति-महत्वपूर्ण निकाय न सिर्फ राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर पार्टी प्रत्याशियों के नाम पर अंतिम मोहर लगाते हैं, बल्कि विभिन्न चुनावों की रणनीति भी तय करते हैं. बोर्ड तो पार्टी और सरकार के बीच समन्वय का भी काम करता है. जाहिर है, 76 साल के जटिया भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति के दिग्गज किरदार बन गए हैं, दोबारा…..

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी कब, क्या कर जाए, किसी को मालूम नहीं होता: वे दोनों अलग-अलग शरीर के जरूर दिखाई देते हैं, पर दोनों के प्रयोजनों की बानगी एक समान दिखाई देती है! और अब उनके क्लब में जेपी नड्डा भी समाहित हो गए हैं, बतौर भाजपा अध्यक्ष. पिछले 8 सालों से भाजपा के अंदरखाने और केंद्र सरकार में होता ये आया था कि 70-75 प्लस वाले नेताओं को किसी-न-किसी आधार पर दरकिनार कर दिया जाता था: लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, मेनका गांधी जैसे नामों की एक लम्बी फेहरिस्त है, जिन्हें बलात मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया गया!

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थावरचंद गहलोत जैसे कद्दावर नेताओं को राज्यपाल पद का झुनझुना थमा कर निर्वासित कर दिया गया! प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रीमंडल के सबसे होनहार मंत्री और भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी के पंखों को भी काट दिया गया है! और शिवराज सिंह चौहान, जो 2013 से भाजपा संगठन के सर्वोच्च निर्णय करने वाले निकायों में पार्टी के देशभर के मुख्यमंत्रियों के प्रतिनिधि की हैसियत से शामिल किए गए थे, उनको भी साफ तौर पर मध्यप्रदेश की राजनीति तक सीमित कर दिया गया है!

वर्ष 2024 में और उसके बाद जो-जो चेहरे मोदी-शाह की सल्तनत को चुनौती दे सकते थे, उनकी जबरदस्त घेराबंदी भाजपा संगठन के ताज़ा फेरबदल में दिखाई देती है! योगी-शिवराज-गड़करी को एक तरह से बांध दिया गया है, किसी भी ऊंची उड़ान भरने से! मानों, इन सबको इन सबके राज्यों तक ही चलने-फिरने की अनुमति दी गई है, वो भी ‘सशर्त’! बीते 5-8 सालों में जो क्षत्रप भाजपा की आबो-हवा में धूमकेतु बनकर एकाएक उभरना चाह रहे थे, उन पर जैसे पहरे बैठा दिए गए हैं!

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प्रतीत हो रहा है कि मोदी-शाह-नड्डा की तिकड़ी पल-प्रतिपल, दिन, महीने और साल को लेकर ना तो आश्वस्त है और ना ही किसी किस्म की बड़ी जोखिम उठाने की स्थिति में है! सो, किया तो उन्होंने वही है जो उन्हें सुहाता है! उन्होंने क्षेत्र विशेष और जाति विशेष को खास तवज्जो दी है, अपने निर्णायक सांगठनिक ढांचे को पुनर्गठित करने में! राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हमेशा की तरह इस बार भी पैरोकार की भूमिका निभाई है! सूचना और प्रसारण के भिन्न-भिन्न स्त्रोतों ने भी तड़का डाला है, वर्तमान घटनाचक्र में…

जटिया जी, जिन्होंने ज़िन्दगी के बहुतेरे मक़ाम देखे हैं, उनकी क्या पहचान है: (1) आरएसएस की भारतीय मजदूर संघ इकाई के एक बेहद साधारण कार्यकर्ता, (2) सुदूर नीमच में जावद के एक दरिद्र पिता की सबसे बड़ी संतान, (3) जनसंघ और जनता पार्टी के प्रत्याशी के बतौर विधानसभा में खड़ा कर दिया जाना, (4) उज्जैन संसदीय सीट से भाजपा के प्रत्याशी के बतौर 1980 से 2009 तक (1984 को छोड़कर) लगातार 7 मर्तबा सांसद रहना, (5) बरसों-बरस विपक्षी सांसद होने के बाद भी उच्च स्तरीय प्रशंसा अर्जित करना.

(6) श्रम और सामाजिक न्याय जैसे अहम् मंत्रालयों का कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद अपनी छवि को स्वच्छ रखना, (6) कुशाभाऊ ठाकरे, विजयाराजे सिंधिया जैसे भाजपा के कर्णधारों की शागिर्दी में रहकर सुन्दरलाल पटवा और कैलाश जोशी का घनघोर सामीप्य, (7) मध्यप्रदेश भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष का दायित्व, (8) भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रणेता और इस हैसियत से स्टार प्रचारक, (9) 2020 में समाप्त हुआ राज्य सभा सदस्य का कार्यकाल और (10) गुमनामी की ज़िन्दगी.

उम्र के लिहाज से कर्नाटक के अभूतपूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बाद सत्यनारायण जटिया सबसे उम्रदराज व्यक्ति हैं, भाजपा के नए संसदीय बोर्ड में! लेकिन, उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखा जाए, तो वे सबसे अनुभवी सांसद, मंत्री और संगठन के व्यक्ति हैं! अटल जी और आडवाणी जी के भरोसेमंद साथियों में भी उनका शुमार होता आया है! देश के उपराष्ट्रपति और राज्यपाल बनने की सूची में उनका बार-बार जिक्र आता था! हकीकत क्या है: उन्हें राज्य से केंद्र की राजनीति में लाया गया है, जिसके मायने ये हैं कि समुद्र में से माणक खोज लिया गया है!