कहीं यह परिवार की आड़ में राजनीति की चौखट पर दस्तक तो नहीं?

Share on:

– अतुल मलिकराम

सोनू सूद.. (Sonu Sood) एक ऐसा नाम, जो अभिनय क्षेत्र में नाम कमाने के साथ ही साथ कोविड काल में एक फरिश्ते के रूप में उभरकर सामने आया। भूखों का पेट भरा, हालातों के कारण अपने शहर से दूर लोगों को घर पहुँचाया, जरूरतमंदों को मुफ्त राशन दिया, जरूरत की तमाम वस्तुएँ बाँटीं, कोरोना मरीजों के इलाज की व्यवस्था की, और फिर पूरी दुनिया में मसीहा के नाम से मशहूर हुए सोनू सूद (Sonu Sood) ने आज भी इन नेक कामों का सिलसिला जारी रखा है। उनके नेक कामों के चर्चे उतने ही मशहूर हैं, जितना कि उनका नाम।

ALSO READ: MP Weather Update: तापमान में मामूली उतार-चढ़ाव, हो सकती है हल्की बारिश

वह कहते हैं न कि इंसान उसके कर्मों से ही पहचाना जाता है। सोनू ने भी समाज की भलाई करने के चलते अपनी कुछ ऐसी ही छाप छोड़ी है। लगभग हर एक भारतीय यही चाहता है कि वे इन नेक कामों को भविष्य में भी जारी रखें और जरूरतमंदों के हमेशा काम आते रहें। लेकिन हालिया समय में मसीहा द्वारा परिवार की आड़ में जो राजनीति का जामा पहना जा रहा है, यह लोगों के मन में डर के रूप में पनप रहा है कि कहीं उनका मसीहा खो न जाए।

बहन को सियासी घमासान में उतारने के बाद सोनू का राजनीति में आने का फैसला हर तरफ चर्चा का मुद्दा बना हुआ है। अपनी अलग पार्टी बनाने के साथ ही राजनीति की अजीबों-गरीब दुनिया में कदम रखने जा रहे सोनू ने हमेशा ही इस क्षेत्र में जाने को नाकारा है। पिछले महीनों कई इंटरव्यूज़ में भी सोनू ने यही कहा था कि भविष्य में राजनीती में उतरने की उनकी कोई योजना नहीं है, फिर अपने बयानों से मुकरकर बहन को सत्ता की जंग में उतरना, न जाने कितनी ही भ्रांतियाँ पैदा कर रहा है कि कहीं सोनू द्वारा रातनीति का दरवाजा तो नहीं खटखटाया जा रहा है.. समाजसेवा करते-करते सियासी क्षेत्र में आने का विचार यूँ एकाएक तो आया नहीं होगा।

ALSO READ: Indore: इंडेक्स इंस्टीट्यूट में ‘आरंभ’ की शुरुआत, विद्यार्थियों में दिखा उत्साह

यह अपने आप में एक बहुत बड़ा सवाल बन खड़ा हुआ है कि क्या यह सब सत्ता में आने के लिए था? अच्छे कर्मों के लिए कमाए गए नाम को क्यों व्यक्ति धूमिल करने लगता है, क्यों उस राह को चुन लेता है, जो अरसों से वाद-विवाद के कटघरे में खड़ी हुई है। वर्तमान में नेकदिल से किए गए कामों को मसीहा के आशीर्वाद के रूप में लिया जाता है, लेकिन सत्ता में आने के बाद क्या कोई इस भलाई को भलाई की तरह ले सकेगा?? यह सब अपनी पार्टी को जिताने के लोभ का सबब ही माना जाएगा। एक बार जो इमेज बनी है, वह यदि चली गई तो दोबारा बन पाएगी, इसकी कोई ग्यारंटी नहीं है। इसलिए इमेज कंसल्टेंट होने के नाते सोनू सूद से मेरी यही दरखास्त है कि एक बार स्वयं से यह सवाल जरूर पूछें कि क्या आपको राजनीति में वास्तव में आना चाहिए? इस सियासी दलदल में फँसने से पहले एक बार फिर विचार कर लें।