Indore : स्मोकिंग नहीं करने वाले भी हो सावधान, थर्डहैंड और पैसिव स्मोकिंग के हो सकते है शिकार – डॉ. सूरज वर्मा CHL हॉस्पिटल

Suruchi
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Dr. Suraj Verma CHL Hospital

आबिद कामदार

इंदौर। पीछले तीन चार सालों की अगर बात कि जाए तो पॉल्यूशन, स्मोकिंग और लाइफ स्टाइल में बदलाव के चलते एलर्जी ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, सीओपीडी और अन्य बीमारियों का प्रकोप बड़ रहा है, लगातार स्मोकिंग के चलते यंग जेनरेशन में भी इन बीमारियों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। यह बात सीएचएल हॉस्पिटल के मशहूर डॉक्टर सूरज वर्मा (Dr. Suraj Verma) कंसलटेंट पल्मोनोलॉजिस्ट ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही।

डॉक्टर वर्मा ने पल्मोनरी मेडिसिन में पीजी केजे सोमैया मेडिकल कॉलेज मुंबई से 2012 में कंप्लीट किया था। उन्होंने अपना फेलोशिप प्रोग्राम अहमदाबाद से किया, इसके बाद 2016 से सीएचएल हॉस्पिटल में कंसलटेंट पल्मोनरी डिपार्टमेंट में अपनी सेवाएं दे रहे है। प्रदूषण, स्मोकिंग और बदलती लाइफ स्टाइल के हमारी जीवनशैली और स्वास्थ्य पर पढ़ने वाले प्रभाव के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने अन्य जानकारी दी।

तीन तरह की होती है स्मोकिंग, स्मोकिंग नही करते है फिर भी आप आते है लिस्ट में

स्मोकिंग तीन तरह की होती है, एक्टिव स्मोकिंग जिसमें व्यक्ति खुद स्मोक करता है, यह हाई रिस्क होती है, दूसरी होती है पेसिव स्मोकिंग इस स्मोकिंग का शिकार वह लोग होते है, जो खुद तो स्मोकिंग नहीं करते, लेकिन ऐसे ग्रुप या प्लेस पर जाते है, जहां लोग स्मोक करते है, स्मोकिंग के कण हवा में होते है वह व्यक्ति के स्वास से उसके फेफड़ों में चले जाते है।

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इसका असर व्यक्ति की फिजियोलॉजी के मुताबिक पढ़ता है। वहीं तीसरी स्मोकिंग थर्डहैंड स्मोक होती है, जिसमें किसी व्यक्ति द्वारा कमरे या बंद जगह में स्मोक करने पर इसके कण काफी समय तक वहां मौजूद रहते है। जिसमें कई लोग ऐसे होते है जो स्मोकिंग नही करते है, फिर भी इसके संपर्क में आ जाते है। स्मोकिंग से कैंसर, कफ, स्मोकर्स कफ, स्मोकिंग सीओपीडी( काली खांसी) लंबे टाइम तक खांसी का चलना, वहीं स्मोकिंग करने पर कोई भी इन्फेक्शन फेफड़ों पर असर डालता है।

कॉविड और लाइफ स्टाइल का असर देखने को मिल रहा लोगों के स्वास्थ पर

90 प्रतिशत लोगों को डाइग्नोज कॉविड हुआ, और कई लोगों को ज्यादा लक्षण ना होने के कारण पता नही चल सका। इसकी वजह से लोगों में कमजोरी देखने को मिल रही है। वहीं बदलती लाइफ स्टाइल में बदलाव की वजह का असर लोगों की हेल्थ पर काफी देखने को मिल रहा हैं, थोड़ा मौसम परिवर्तन होने पर बार बार बीमार पड़ना, गले में खराश, हर दो तीन महीने में खांसी की शिकायत, वहीं ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया नींद में खराटे लेने की समस्या में भी काफी बदलाव देखने को मिल रहे है।

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स्मोकिंग का दुष्प्रभाव शरीर के किसी भाग पर तो दिखता है

हर व्यक्ती की बॉडी की फिजियोलॉजी अलग होती है, कई लोग स्मोक करते है, लेकिन इसका असर उनकी बॉडी पर देखने को नही मिलता, जनरली यह देखा गया है, की 60 से 70 प्रतिशत लोगों को स्मोकिंग से बीमारियां होती है, जिसमें धमनियों में कोलेस्ट्रॉल जमना, खून का थक्का जमना, लीवर पर असर पड़ना और अन्य समस्या होती है। स्मोकिंग शरीर के किसी न किसी भाग पर अपना असर दिखाता ही है। वहीं 30 प्रतिशत लोगों को अगर फेफड़ो से संबंधित बीमारी अगर नही हुई है तो हार्ट से संबंधित बीमारियां तो होती ही है।

ठंड के दिनों में पाल्यूटेंट नही जाते ऊपर

प्रदूषण दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है, ठंड के सीजन में पाल्यूटेंट ऊपर नही जा पाते है, और वह हवा में ज्यादा समय तक रहते है। इस सीजन का असर ऐसे लोगों पर पढ़ता है, जिन्हें पहले से लंग्स की बीमारी हो, अस्थमा, सीओपीडी, आईएलडी, या उन्हें कोविड हुआ था। ऐसे लोगों में ज्यादातर जब मोसम का बदलाव होता है तो इसका सीधा असर ऐसे मरीजों के स्वास्थ्य पर पढ़ता है। वहीं इसका असर सामान्य लोगों पर भी पढ़ता है, और उनमें एलर्जी देखने को मिलती है। बार सर्दी खांसी होना, अस्थमा बढ़ने के चांस बढ़ते है। स्मोकिंग और प्रदूषण हर मौसम में लोगों के स्वास्थ पर असर डालता है।

गर्मी के दिनों में पॉल्यूशन और डिहाइड्रेशन से होती है यह समस्या

गर्मी के दिनों में डीहाइड्रेशन की वजह से पानी की कमी के कारण खून गाढ़ा होने लगता है, इस सीजन में ज्यादा पानी पीना चाइए और हाइड्रेशन पर ध्यान देना होता है, डिहाइड्रेशन की वजह से इस सीजन में स्वास नली में खून का थक्का जमने का चांस बढ़ जाता है। में अपने प्रिस्क्रिप्शन लेटर पर पेशेंट को लिखकर देता हूं, कि बाहर निकलने पर मुंह पर कपड़ा बंधीये या हेलमेट लगाइए ताकि आप इसकी चपेट में ना आए।

फॉर व्हीलर के फिल्टर करवाए हर दो महिने में चेक

फॉर व्हीलर में अगर आप रेगुलर ट्रैवल करते है, तो हर 2 महीने में उसके फिल्टर को चेक करवाइए, क्योंकि फिल्टर के अंदर मौजूद डस्ट के कण बार बार गाड़ी के अंदर सर्कुलेट होते रहते है, और सांस नली से हमारे फेफड़ो तक चले जाते है। जिसकी वजह से एलर्जी और अन्य प्रकार की बीमारियां होती है।

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इस तरह करे बचाव

इस तरह की रेस्पिरेटरी डिजीज से बचाव के लिए बेसिक लाइफ स्टाइल काफी डिसिप्लिन्ड होनी चाहिए, जिसमें एक्सरसाइज, फिजिकल एक्टिविटी, ब्रीथिंग सम्बंधित एक्सरसाइज से फेफड़ों की सांस लेने और इम्यूनिटी में अच्छे रिजल्ट मिलते है। जो लोग प्राणायाम, साइक्लिंग, और एक्सरसाइज करते है, उनकी इम्यूनिटी बेहतर होती है। स्ट्रेस फ्री रहने की कोशिश करे, किसी भी प्रकार के धूम्रपान, और शराब के सेवन को बंद करना है, इससे काफी बेहतर रिजल्ट देखने को मिलते है।