इंदौर : अगर बात 10 साल पहले की करी जाए तो पहले के मुकाबले गर्दन दर्द के पेशेंट में बढ़त हुई है। अगर बात आंकड़ों की की जाए तो पहले 10 में से 2 पेशेंट गर्दन दर्द से पीड़ित थे वही आज 10 में से 5 पेशेंट गर्दन से संबंधित समस्या से जूझ रहे हैं। कोरोना के दौरान वर्क फ्रॉम होम की वजह से लोगों ने लेटे हुए काम करना शुरू कर दिया था। वहीं गलत पोजीशन में बैठने की वजह से यह समस्या काफी बढ़ गई है। इस प्रकार की समस्या से बचने में लिए एक बात हमेशा याद रखे कि सिस्टम के सामने जब भी बैठे तो गर्दन झुकाने की बजाए आई लेवल पर काम करें वहीं बैठने की पोजिशन सही होनी चाहिए यह बात डॉक्टर राजदीप सिंह बग्गा ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही वह शहर के प्रतिष्ठित अरविंदो हॉस्पिटल में स्पाइन सर्जन के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसी के साथ वह शहर में अपने बग्गा क्लीनिक पर भी सेवाएं देते है।
सवाल : क्या पहले के मुकाबले काम के बदलाव की वजह से किस प्रकार की समस्या सामने आती है, क्या अचानक कुछ करने से भी ऑर्थोपेडिक समस्या सामने आती है
जवाब : पहले के समय में लोग आउटडोर एक्टिविटी ज्यादा करते थे लेकिन अब सिटिंग जॉब ज्यादा बढ़ गए हैं जिसमें एक जगह बैठकर घंटों तक मोबाइल और लैपटॉप चलाना रहता है। ऐसे में कई बार लोग रूटीन एक्टिविटी के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं और कई लोग फिर अचानक व्यायाम या फिर अन्य चीजों में ज्यादा जोर लगाते इस वजह से कई बार ऑर्थोपेडिक से संबंधित समस्या सामने आ जाती है। आमतौर पर हम देखते है कि कई बार संस्थान द्वारा स्पोर्ट्स और अन्य एक्टिविटी का आयोजन करवाया जाता है जिसमें हमारी बॉडी को इन चीजों की आदत नहीं होने से कई बार अचानक उस चीज को ज्यादा समय से करने से कमर और अन्य ऑर्थोपेडिक संबंधित समस्या सामने आती है। आजकल हर किसी को कम समय में बेहतर रिजल्ट चाहिए इसलिए लोग जिम में भी कम समय में वेट कम करने की कोशिश करते हैं इस वजह से कई बार स्लिप डिस्क खिसकने या अन्य समस्या देखने को सामने आती है।
सवाल : ऑर्थोपेडिक में अगर बात इंजरी की करी जाए तो किसमें बढ़त हुई है, क्या इसकी टेक्नोलॉजी में भी बढ़त हुई है
जवाब : आज के दौर में लिगामेंट इंजरी और एल्बो से संबंधित इंजरी में भी काफी बढ़ोतरी हुई है कई बार ज्यादा लोड उठाने या किसी एक्टिविटी को ज्यादा देर तक करने से हमारे घुटनों के अंदर मौजूद गादी मैं ज्यादा लोड पड़ने से या खिसक जाती है। और इस प्रकार की समस्या सामने आ जाती है। पहले स्पाइन सर्जरी ओपन तरीके से की जाती थी टेक्नोलॉजी में माइक्रो सर्जरी की वजह से इसमें काफी आसानी हो गई है। वहीं अब पहले के मुकाबले पेशेंट को ज्यादा समय तक बेड रेस्ट नहीं रहना होता है। पहले ऑपरेशन के बाद महीनों पेशेंट को बेड रेस्ट है ना होता था जो कि अब एक-दो सप्ताह में वापस अपने वर्क पर जा सकते हैं।
सवाल : क्या हमारी बदलती जीवनशैली का असर ऑर्थोपेडिक समस्या को बढ़ावा दे रहा है, इससे बचने के लिए क्या किया जाना चाहिए
जवाब : आजकल हमारी लाइफ स्टाइल बहुत ज्यादा फास्ट हो गई है आज के दौर में स्ट्रेस के केस काफी ज्यादा बढ़ गए हैं वही लंबे समय तक सिस्टम के सामने बैठे रहना या लंबे समय तक खड़े रहने की वजह से इसका प्रभाव हमारी मसल्स और अन्य चीजों पर पड़ता है। इस वजह से कई बार यह गर्दन के दर्द का कारण भी बनता है। अगर बात मेडिकल भाषा में समझे तो आज के दौर में सीटिंग इज न्यू स्मोकिंग है। यह सब एक धूम्रपान करने के बराबर है। इस समस्या से बचने के लिए हमें खुद की जीवन शैली में और बैठने उठने के तरीके में बदलाव करने की जरूरत है अगर ऑफिस वर्क है तो इसे बीच-बीच में ब्रेक लेना ठीक रहता है। हमेशा अपना पोस्चर सही दिशा में रखें ताकि इस तरह की समस्या देखने को ना मिले।
सवाल : आपने अपनी मेडिकल क्षेत्र में पढ़ाई कहां से पूरी की है
जवाब : मैंने अपने एमबीबीएस की पढ़ाई उज्जैन के आरडी गार्डी कॉलेज से कंप्लीट की इसके बाद एमएस ऑर्थोपेडिक मैं सायन हॉस्पिटल मुंबई से पूरा किया इसके बाद स्पाइन और रोबोटिक से संबंधित फैलोशिप गंगा हॉस्पिटल कोयंबटूर से कंप्लीट किया। वही डेनमार्क से स्पाइन सर्जरी में फैलोशिप प्रोग्राम में हिस्सा लिया। साथ ही ऑर्थोपेडिक से संबंधित कई ट्रेनिंग प्रोग्राम में भी हिस्सा लेकर इसमें दक्षता हासिल की है।
सवाल : आजकल सब कुछ फ़ोन पर आसानी से हो जाता है, इसका असर हमारे स्वास्थ्य पर कैसे पड़ता है
जवाब : आजकल सारी चीजें बहुत आसान हो गई है इस वजह से लोगों में वेट गेन काफी हो रहा है। यह आगे चलकर हमारे स्वास्थ्य पर गलत असर डालता है लोग फोन पर ही खाना ऑर्डर कर देते हैं जिसमें काफी मात्रा में ऐसे पदार्थ होते हैं जो कि आगे चलकर हमारे शरीर के अंदर गलत प्रभाव छोड़ते हैं । पहले के मुकाबले लोगों में इंटरनेट की वजह से काफी जागरूकता आई है अब लोग स्पाइन से संबंधित समस्या होने पर इसमें दक्ष डॉक्टर को ही दिखाते हैं। वही बढ़ती जागरूकता और एजुकेशन की वजह से लोगों में प्रिकॉशन लेने को लेकर काफी जागरूकता है इस वजह से पेशेंट को ठीक होने में आसानी होती है।