पहचान का संकट, अनुभव का अभाव

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नितिनमोहन शर्मा

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कथित ” सपनो का शहर ” इंदौर के सामने असमंजस पसर गया है। ये असमंजस शहर के विकास से जुड़ी दो संस्थाओं के कारण सामने आया है। एक इंदौर नगर निगम। दूसरा इंदौर विकास प्राधिकरण। दोनो संस्थाओं के जरिये सीएम के सपने के शहर का कायाकल्प के दावे किए गए है। सरकार और पार्टी का फोकस इन संस्थाओं के जरिये मिशन 2023 पर है। यानी विधनासभा चुनाव। 15 महीने का वक्त है इन दोनों संस्थाओं के पास अपने विकास के दांवों को हकीकत में उतारने के लिए।

सपने के इस शहर में अब समस्या दूसरे तरीके की भी है। विकास से जुड़ी दोनो संस्थाओं से भी जुड़ी है। एक तरफ प्राधिकरण है जहां के मुखिया ” आयातित” है और शहर से ही अंजान है। दूसरी तरफ निगम है जिसके मुखिया के पास शहर का तो ज्ञान है। डेवलपमेंट का विजन भी है लेकिन अनुभव का अभाव है। अब इस सबके बीच 15 महीने है। इसी वक्त में दोनो को कुछ कर दिखाना होगा। मामला मिशन 2023 का भी है और उस शहर का भी है जो बीते 15 बरस से ” सपनो का शहर” जुमला सुन रहा है।

मिशन 2023: भार्गव-चावड़ा है तैयार??

नगरीय निकाय चुनाव में प्रदेशभर में झुलसी भाजपा के लिए 2023 में आ रहे विधानसभा चुनाव चुनोतिपूर्ण है। पार्टी ने अभी से कमर कस ली है। फोकस प्रदेश के बड़े शहरों पर है जहां के डेवलपमेंट वर्क के जरिये पार्टी अपनी विकास वाली छवि को मतदाताओं के बीच ले जा सके। लेकिन इंदौर में तो विकास से जुड़ी दोनो संस्थाओं के लिए एक नए तरह का संकट सामने आया है। दोनो संस्थाओ में नया नेतृत्व है। एक के पास शहर की पहचान का संकट है तो दूसरे के पास अनुभव का अभाव। खुलासा फर्स्ट इस परेशानी को पहले पहल सामने लाया है ताकि वक्त रहते शहर का विकास अप टू डेट किया जा सके।

जयपाल सिंह चावड़ा: शहर से ही अंजान, अब तक नही संचालक मंडल

600 करोड़ से ज्यादा के सालाना बजट वाला इंदौर विकास प्राधिकरण शहर में विकास से जुड़े काम करने वाली इंदौर की नगर निगम के बाद डेवलपमेंट करने वाली दूसरी बड़ी संस्था है। प्राधिकरण के जरिये शहर के बड़े डेवलपमेंट के मुद्दे सम्पादित होते आये है। सुपर कॉरीडोर, रीजनल पार्क, एम आर 10 श्रेणी की सड़कों एवम होलकर स्टेडियम जैसे काम के जरिये आईडीए की एक अलग पहचान है। इस संस्था के जरिये होने वाले बड़े विकास कार्य से एक तरह से निगम पर भी दबाव कम रहता है। चूंकि अब 15 महीने बाद प्रदेश में विधनासभा चुनाव होना है।

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लिहाजा प्राधिकरण के लिए भी इतने कम समय मे बेहतर परफॉर्मेंस का दबाव है। लेकिन प्राधिकरण इसके लिए अब तक तैयार नही है और न कोई बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम करने की कोई प्लानिंग है। अध्यक्ष की कुर्सी जयपालसिंह चावड़ा के पास है। वे इस शहर के नहीं है और शहर में “देवास वाले भाईसाहब” के नाम से जाने पहचाने जाते है। करीब 6 महीने पहले उनकी ताजपोशी हुई।

स्थानीय भाजपा ही नही ये शहर भी अब तक उनकी नियुक्ति को हजम नही कर पाया है और न “देवास वाले भाईसाहब” की तरफ से ऐसे कोई प्रयास हुए जिससे ये साबित हो कि वे भले ही इस शहर के नही है लेकिन वे प्राधिकरण के जरिये शहर का कायाकल्प करना चाहते है। उपलब्धि के नाम पर उनके खाते में अब तक सिर्फ स्वयम के बंगले पर करोड़ो के कायाकल्प के अलावा कुछ नही है।  प्राधिकरण की गतिविधियों के नाम पर दो चार रूटीन बैठकों को छोड़ दे तो रेसकोर्स रोड की इस ऊंची ओर बड़ी प्राधिकरण की बिल्डिंग में सुस्ती छाई हुई है। सूत्र बताते है कि भाजपा प्रदेश नेतृत्व ने संचालक मंडल की कवायद शुरु कर दी है।

सरकार के ऊपर भी इस बात का दबाव है कि संचालक मंडल में ऐसे लोग लिए जाए जो अनुभवी हो और शहर के डेवलपमेंट के मुद्दे पर समझ हो। जो नियम कायदों के जानकार भी हो ताकि जमीन के जादूगरों के इस शहर में प्राधिकरण को किसी विवादित मामले से बचाया जा सके। अब जब तक संचालक मंडल का गठन नही हो जाता, तब तक देवास वाले भाईसाहब रेसकोर्स रोड पर बस “शोभा की सुपारी” के रूप में विराजमान रहना है। ऐसे में सरकार के ऊपर दबाव है कि वो जल्द से जल्द प्राधिकरण को मूवमेंट दे।

पुष्यमित्र भार्गव: विजन है पर अनुभव की कमी, क्या सलाहकार लगेंगे?

पुष्यमित्र के पास शहर के डेवलपमेंट का विजन तो है लेकिन अनुभव की कमी भी है। वह भी तब जबकि मिशन 2023 का पूरा दारोमदार नगर निगम पर रहना है। निगम के जरिये होने वाले कार्य ही भाजपा की चुनावी सम्भावनाओ को पंख देंगे। अभी शहर का एक बड़ा हिस्सा खुदा हुआ पड़ा है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स के कार्यो ने भी जन सामान्य की परेशानियां बढ़ा रखी है। वर्षाकाल के कारण दिक्कतें ओर ज्यादा हो चली है। ऐसे में पुष्यमित्र के सामने चुनोती दो तरफा रहना है।

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पहले तो उन्हें स्वयम को निगम के कामकाज ओर निगम की कार्यशैली के मुताबिक स्वयम को अपडेट करना होगा। दूसरा शहर में चल रहे विकास कार्यो को गति देकर उन्हें तय समय सीमा में पूर्ण करना। ताकि विधनासभा चुनाव में भाजपा की सम्भावनाये उजली हो। भार्गव के लिए सबसे बड़ी चुनोती निगम की आर्थिक हालातो को लेकर भी है। अभी निगम की माली हालत इस कदर खराब हो चली है कि ठेकेदारों को पेमेंट करने की भी राशि नही। पुष्यमित्र को नोकरशाही के उस ढर्रे को भी साधना होगा जो निगम को ” स्वायत्तता” ओर “स्वतंत्रता” दे नही रहा।

नरुका, देड़गे, मंगवानी सलाहकार..??

क्या पुष्यमित्र भार्गव को सरकार सलाहकार मंडल देगी?? अनुभव की कमी और पुराने अनुभव के आधार पर ये सवाल भाजपा गलियारों में चल रहा है। ड़ॉ उमाशशी शर्मा के महापौर कार्यकाल में सलाहकार वाला प्रयोग हो चुका है। तब सन्तोष मेहता जैसे नेता सलाहकार बने थे। इस बार भी स्थिति ऐसी ही है। पुष्यमित्र भार्गव संगठन के लिए नए नही ओर न सांगठनिक क्षमता में कोई कमी है। लेकिन निगम के कामकाज को समझने के लिए उन्हें भी अनुभवी नेताओ की मदद दी जा सकती है।

सूत्र बताते है कि इस मामले में पूर्व सभापति अजयसिंह नरुका का नाम प्रमुख है। इसके अलावा सुधीर देड़गे ओर जवाहर मंगवानी के नाम भी सामने आए है। मंगवानी डॉ शर्मा के कार्यकाल में भी बतौर सलाहकार शामिल रहे है ओर उस वक्त उनका ज्यादातर समय महापौर हाउस में ही गुजरता था। ये तीनो नेता इस बार पात्र होने के बावजूद टिकिट से वंचित रह गए थे। हालांकि पार्टी के पास एल्डरमैन के रूप में अनुभव को निगम में पदस्थ करने का एक प्लेटफॉर्म ओर भी है लेकिन एल्डरमैन के लिए पार्टी में लम्बी कतार है। लिहाजा फिलहाल सलाहकार मंडल पर चर्चा तेज है।