अभी होलिका दहन को लेकर खूब सवाल उठ रहे हैं, इंदौर और भोपाल जिला प्रशासन ने कोरोना संक्रमण को देखते हुए होलिका दहन के सार्वजनिक आयोजन पर रोक लगा दी है। इसमें इंदौर विधायक संजय शुक्ला ने मैदान संभाल लिया है, होलिका दहन होना ही चाहिए। भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कैसे चूकते उन्होंने भी बंगाल से ट्वीट कर दिया होलिका दहन रोकना गलत। मुझे अच्छे से याद है आज से तीस साल पहले तक हमारे घर के बाहर मेरी दादी छोटी सी होलिका घर के बाहर चबूतरे पर बना देती थी, हम उसकी पूजा करते और उसी का दहन करते। होलिका दहन एक प्रतीक है आग के बीच से ज़िंदगी को बचाने का। भक्त प्रह्लाद की ज़िंदगी भी ऐसे ही आग की लपटों के बीच बची। इस कहानी को पढ़ेंगे तो शायद आपको अपनी भक्ति के प्रदर्शन से ज्यादा आस्था पर भरोसा होगा।
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। पिता के लाख कहने के बावजूद प्रह्लाद भक्ति करता रहा। असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की भी कई बार कोशिश की परंतु भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते रहे और उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। असुर राजा की बहन होलिका को भगवान शंकर से ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। होलिका उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई। पर होलिका का दहन हो गया और भक्त प्रह्लाद ज़िंदा रहे।
कोरोना के इस संक्रमण के दौर में हमें अपनी और परिवार की ज़िंदगी बचाना है, भक्ति का प्रदर्शन नहीं उस पर आस्था रखना है। इस बार होलिका अपने आँगन में ही ठीक। नेताओं के झांसे में आएंगे तो आप का ही नुकसान होगा, बीमार होंगे तो कोई बचाने नहीं आएगा।