अपनी डेमोक्रेसी पर उनकी साढ़ेसाती

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जयराम शुक्ल

अभी हाल ही टीवी चैनल की एक बहस में शामिल हुआ जिसका विषय था ‘अब कमलनाथ भी मिर्ची बाबा की शरण में..। ये वही मिर्ची बाबा हैं जो लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह को जितवाने की सुपारी ले रखी थी। सात क्विंटल मिर्ची को हवन में झोंकने के बाद भी दिग्गी राजा नहीं जीते..। अभी जब मिर्ची बाबा का नाम सुना तो पता चला कि वे जीवित हैं वरना मेरे जैसे कई लोग इस मुगालते में थे कि अपने संकल्प के मुताबिक वे समाधि ले चुके होंगे। खैर बाबापक्षी प्रवक्ता प्रतिद्वंद्वी प्रवक्ता पर तंज कस रहे थे- तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूँ..। बहरहाल यह अपनी मान्यता और आस्था का विषय है कि कौन ‘अँगरा बाबा’ को पूजे और कौन ‘लूँडा महाराज’ को।

बहस-बकवाद तब शुरू होता है जब इन बाबाओं को डेमोक्रेसी में फेंटा जाने लगता है। और तब पता चलता है कि वास्तव में हमारे खेवनहारों के दो-दो आलाकमान होते हैं, एक दूसरे के समानांतर। एक पार्टी का आलाकमान जहां जनता द्वारा रिजेक्ट किये जाने के बाद संगठन की सीढी या राज्यसभा की पतली गली से पहुंचे गुरू- गंभीर टाईप के लोग होते हैं और दूसरा गुरूघंटालों का जहाँ ज्योतिष, तंत्रमंत्र और विरोधी को पस्त करने का उच्चाटन चलता रहता है। चुनाव पूर्व दोनों आलाकमान तीरथ-बरथ बन जाते हैं। यह हमारे डेमोक्रेसी की जीवनशक्ति ही है कि वह शनि की वक्रगति, अढैय्या, साढ़े साती से बच-बचाकर यहां तक आ पहुँची। मेरे एक मित्र हैं, ज्योतिष के प्रोफेसर। ज्योतिष की विद्या कालेज में पढ़ी, पीएचडी की और वहीं कालेज में पढ़ाने लगे। इसे धंधा नहीं बनाया।

मैंने सुझाया..प्रभू कालेज छोड़ो धंधे में निकलो, देखो सड़कछापों का महीने का टर्नओवर लाखों में है। कई तो सड़कों से उठकर सीधे टीवी स्टूडियो पहुंच गए। वे रोज देश का भविष्य बाँचते हैं, उनके जजमानों में देश के बड़े-बड़े नीति नियंता हैं। आप तो ज्योतिष के डाक्टर हो, ज्यादा हाथ मार सकते हो, उनसे भी ऊपर तक पहुंच बना सकते हो। मित्र बोले- ज्योतिष को पढ़ा है न, इसलिए ज्योतिषी नहीं बन सकता। आपको मालूम है वेद, पुराण व स्मृति ग्रंथों में ज्योतिष और पौरोहित्य कर्म को निषिद्ध और जारकर्म माना गया है, उन्होंने कई ग्रंथों का संदर्भ दिया।

वे ब्रह्मा और वशिष्ठ की कथा सुनाने लगे तो मैंने रोकते हुए कहा- बोर मत करो ये बताओ कि बाबा,ज्योतिषियों के चक्कर में लोग फँस क्योंं जाते हैं? दुनिया देखती है कि एक लुट रहा है, दूसरा लूट रहा है। व्यभिचार के किस्से निकलकर आते रहते हैं। बाबा लोग रेप में सजा काट रहे हैं फिर भी भगत हैं कि भागे चले आते हैं और इनके चक्कर में वैसेइ फँसते हैं जैसे फ्लाईकैचर में पतंगा। ज्योतिष के प्रोफेसर मित्र बोले-प्यारे.. इस देश में जब तक एक मूर्ख भी जिंदा रहेगा ये बाबा लोग भूखे नहीं मर सकते। यहां तो मूर्खों की जमातें हैं जिन्हें कभी मुंहनोचवा दिख जाता है तो कभी चोंटीकटवा। फिर उन्होंने खुद से जुडा़ एक सच्चा किस्सा सुनाया।

उन्हीं की जुबान से सुनिए…. मैं जिस शहर के कालेज में पढ़ाता था उसी शहर में पदस्थ एक इंजीनियर से दोस्ती हो गई। वह मेरा पड़ोसी भी था, धार्मिक इतना कि दफ्तर निकलने का भी मुहूर्त किसी पंडित से पूछता। उसके बंगले का एक कमरा देवी देवताओं की मूर्तियों से भरा। एक पंडित सिर्फ़ पूजा के लिए। शहर भर में जितने मंदिर सभी के पुजारियों का इंजीनियर से महीना बँधा था। सब उसके लिए जाप करते। कहीं शनि के लिये जाप हो रहा, तो कहीं राहु केतु के लिए। इंजीनियर इतना बिजी कि अपने हिस्से का पूजापाठ भी ठेके में करवाता। पंडितों की मंडली के बीच इंजीनियर परम धर्मात्मा।

मैंने रहस्य का पता लगाया कि वह प्रदेश के भ्रष्टतम अफसरों में से एक निकला। कमीशन का पैसा पहले भगवान् को अर्पित करता है फिर उसे ठिकाने लगाता है। कमीशन के रुपए में से पंद्रह प्रतिशत देवी-देवताओं पर खर्च करता । इसे ऐसे समझें- माना कि अफसर ने ऊपर लेने देने के बाद एक करोड़ प्रतिमाह बचाए..उसमें से पद्रह लाख धरम खाते में डाल दिए। इसी पंद्रह लाख से राहुकेतु, शनि आदि ग्रहों को साध लिया। शहर भर के धर्मशास्त्री सब उसके मुरीद। ये सब मिलकर उस अफसर का ऐसा आभामंडल तैय्यार करते कि शहर का सबसे बडा दानी धर्मात्मा यही। यही छवि उसे नेताओं के प्रकोप से भी बचाती।

ज्यादातर यही पंडे लोग चूंकि शहर के नेता के भी भविष्य वाचक, व ग्रह नक्षत्र सुधारक थे इसलिए ये संबंध सेतु की भी भूमिका निभाते। जैसा कि अक्सर होता था, शहर आने वाले हर धर्मधुरंधर बाबा, और ज्योतिषी, इंन्जीनियर के बंगले ही पधारते। इत्तेफाक से एक मौके में मैं भी पहुंच गया। बाबाजी अफसर को ग्यान दे रहे थे, बता रहे थे कि कुछ ग्रहों की विघ्नबाधा शांत हो जाए तो आपके सांसद बनने का योग बनता है। अफसर ने बाबा से मेरा परिचय कराया। बाबा को मेरे ज्योतिष ग्यान के बारे में बताया। खुश होने की बजाय बाबा के चेहरे की रंगत बदली। अफसर किसी काम से अंदर गया। इस बीच बाबा की हथेली की रेखाएं मैंने देखीं। बाबा ने मेरे ज्योतिषीय ग्यान की थाह लेनी शुरू की…इतने में अफसर आ गया।

मैंने बाबा के कान में कहा तुम्हारी रेखाएं बताती हैं कि तुम अव्वल दर्जे के व्यभिचारी हो, एक नाबालिग का रेप कर चुके हो, वेश बदलकर फिर रहे हो…बचपन में चोरी के जुर्म में जेल जा चुके हो…गलत हो तो बोलो..। फिर सामान्य बातें होने लगीं.। शाम को घर में ही था कि बाबा मुझे पूछते हुए आ धमका। आते ही पाँव पकड़ लिए..फिर बोला आप ने जो कुछ भी विचार के बताया वह सोलह आने सच..आप तो मेरे साथ हरिद्वार चलिए छोड़िए प्रोफेसरी..। खैर मित्र बोले ..सुनो प्यारेलाल उस बाबा की न मैंने हस्तरेखाएं देखी, न कुंडली, न ही कोई ज्योतिषीय विचार किया..। सूरत, शकल, मनोभाव देख के कह दिया। क्योंकि मुझे मालूम है कि पंचानवे प्रतिशत बाबा ऐसे ही होते हैं।

आप खुद पर विश्वास करो तो बाबाओं से बड़े ज्योतिषी हो, उनके अतीत और वर्तमान की ऐसे ही सटीक भविष्यवाणी कर सकते हो। इन बाबाओं का धंधा कौन चलाता है ..या तो भ्रष्टलोग, अपराधी जिन्हें दूसरे जन्म में पाप भोगने का भय है या फिर वे लोग जिनमें आत्मबल नहीं, पौरुष नहीं जो सिर्फ़ भाग्य के भरोसे दिन फिरने का इंतजार करते हैं। कर्मठ आदमी को बाबा लोग नहीं ठग सकते। धर्मनिष्ठ व्यक्ति को भी ये बाबा लोग मूर्ख नहीं बना सकते। लेकिन मुश्किल ये है कि कर्मठ और धर्मनिष्ठ बनाने वाली पाठशालाएं बंद हो चुकी हैं। मीडिया अंधविश्वास प्रेतकथाएं परोसता है, और जनप्रतिनिधि अफवाहों के फेर में फँसकर गणेश जी को दूध पिलाने लगते हैं।

कुरते की बटन खोलकर देखिए गला गंडे तावीजों से लिपटा मिलेगा। रूढियों, अंधविश्वासों के खिलाफ बात करने वालों पर हमले होते हैं। हमले करने वाले ऐसे ही नेताओं की पनाह व बाबाओं के आश्रमों में पलते हैं।कई बाबा लोग रेप, मर्डर, फ्राडगीरी के जुर्म में जेल में हैं। सालभर में दोचार नामीगिरामी जाते रहते हैं। कल फिर कोई बाबा जेल जाएगा। उसके कुकर्मों से सबक लेने की बजाय उसके चेले तोडफ़ोड़ आगजनी करेंगे, परसों एक नया बाबा फिर प्रकट होकर चमत्कार करने लगेगा, इसकी भी पोल खुलेगी, यह भी जेल जाएगा। हम फिर किसी नए बाबा के चरणों में लोट जाएंगे। ज्योतिषी मित्र बोले..इन कापुरुषों को तो भगवान् भी नहीं बचा सकता।