पुण्य, प्रेम औऱ प्रसन्नता बढ़ाने से मिलता है सुख- आचार्यश्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी

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  • स्नेहलतागंज पत्थर गोदाम पर आयोजित तीन दिवसीय प्रवचन श्रृंखला का हुआ समापन, आज रेसकोर्स रोड़ उपाश्रय में होगी धर्मसभा

इन्दौर : हमारे जीवन में दुख आने के बहुत से कारण हैं। हम दु:ख के कारणों को दूर करने के बजाए सुख के साधनों को एकत्र करने में जुटे रहते हैं। हमारे जीवन में दु:ख के तीन कारण हैं। अभाव, प्रभाव व स्वभाव। इन्हे दूर करने के उपाय भी हैं औऱ वह क्रमश: है पुण्य, प्रेम औऱ प्रसन्नता।

उक्त विचार स्नेहलतागंज पत्थर गोदाम स्थित श्री गुजराती स्थानकवासी जैन संघ उपाश्रय में आयोजित तीन दिवसीय प्रवचन श्रृंखला के समापन अवसर पर आचार्यश्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी मसा ने यात्रा दु:ख से सुख की और विषय पर संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

उन्होंने अपने प्रवचनों में सभी श्रावक-श्राविकाओं को धर्मसभा में कहा कि हम सबसे ज्यादा दूसरों के सुख से दुखी रहते हैं। हमारे पास जो है उसके सुख का आनंद नहीं लेते हुए जो दूसरों के पास है उससे ज्यादा दुखी रहते हैं। यह अभाव का दुख है। इसकी दवा का हल जीवन में पुण्य बढ़ाते चलो तो आप सुखी हो जाओगे। जीवन में अगर हम किसी के प्रभाव से दुखी हैं तो प्रेम को बढ़ाना चाहिए इससे प्रभाव के दुखों से छुटकारा मिलेगा। अभाव का दु:ख पुण्य बढ़ाने से दूर होता है औऱ प्रेम बढ़ाने से प्रभाव का दु:ख दूर होता है तो स्वभाव के कारण होने वाले दुखो को दूर करने के लिए अपनी प्रसन्नता को बढ़ाओ तो दु:ख अपने आप दूर हो जाएंगे।

श्री नीलवर्णा पाश्र्वनाथ मूर्तिपूजक ट्रस्ट एवं चातुर्मास समिति संयोजक कल्पक गांधी एवं अध्यक्ष विजय मेहता ने बताया कि समापन अवसर पर हजारों की संख्या में जैन धर्मावंलबी उपस्थित थे। रविवार को श्री गुजराती स्थानकवासी जैन संघ के पदाधिकारियों ने आचार्यश्री से आशीर्वाद भी लिया। चातुर्मास संयोजक कल्पक गांधी ने बताया कि रेसकोर्स रोड़ स्थित श्री श्वेताम्बर जैन तपागच्छ उपाश्रय श्रीसंघ ट्रस्ट द्वारा आयोजित 5 दिवसीय प्रवचनों की श्रृंखला का दौर चलेगा। जिसमें आचार्यश्री 24 से 28 जून तक नई दिशा व नई दृष्टि विषय पर प्रात: 9.15 से 10.15 बजे तक प्रवचनों की वर्षा करेंगे।

संलग्न चित्र- स्नेहलतागंज पत्थर गोदाम स्थित श्री गुजराती स्थानकवासी जैन संघ उपाश्रय में श्रावक-श्राविकाओं को प्रवचनों की अमृत वर्षा करते आचार्यश्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी मसा।