‘श्री महाकाल लोक’ के दर्शन की फीस

Share on:

निरुक्त भार्गव

कोई 856 करोड़ रुपए की लागत वाली अति-महत्वाकांक्षी ‘श्री महाकाल लोक’ परियोजना के प्रथम चरण का लोकार्पण हो चुका है. प्रधानसेवक नरेन्द्र मोदी ने केंद्र और राज्य सरकारों के भारी-भरकम लाव-लश्कर और ताम-झाम के बीच उज्जैन में मंगलवार को कोई 350 करोड़ रुपए के प्रथम चरण के कार्यों को लोगों को समर्पित कर दिया. चारों तरफ ‘गुडी-गुडी’ वाला माहौल निर्मित किया गया, सरकार और भाजपा के स्तर पर और ब्रांडिंग के नाम पर खूब वाहवाही भी लूटी गई! मगर, लोकार्पण समारोह के ठीक दूसरे दिन इस समूची परियोजना के आगामी स्वरूप का भी प्रदर्शन हो गया!

एक तरह से एक और ‘कमर्शियल’ ताने-बाने की तरफ कदम बढ़ा दिए गए, जब प्रशासन में बैठे अफसरों ने एक ‘मीटिंग’ कर महाकाल लोक को देखने आने वालों से ‘नौमिनल फीस’ लेने का प्रस्ताव कर दिया! ये संकेत भी दे दिए गए कि जो लोग महाकालेश्वर ज्योतिर्लिन्गम के दर्शन करने आना चाहते हैं, उनको शिव स्तम्भ से एक ‘पार्टीशन वाल’ खड़ी कर जाने दिया जाए, ताकि सिर्फ महाकाल लोक की आधुनिक संरचनाओं को निहारने आने वालों से शुल्क वसूला जा सके!

Read More : Rakul Preet Singh : रकुल प्रीत सिंह ने बॉयफ्रेंड जैकी भगनानी संग शादी की खबरों पर तोड़ी चुप्पी, कही ये बड़ी बात

प्रधानसेवक, मध्यप्रदेश के मुखिया और संगठन के कर्ता-धर्ता भले ही कितने भी बड़े दावे करें, लेकिन ये एक तथ्य है कि 15 माह की कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में 2019 में बाकायदा ‘श्री महाकालेश्वर मंदिर विस्तारीकरण और सौन्दर्य्यीकरण परियोजना’ पर काम आरम्भ हो गया था. उक्त योजना को क्रियान्वित करने का ‘आइडिया’ पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा बनाया गया ‘ब्लू प्रिंट’ रहा होगा! भाजपा के फिर से सत्ता में काबिज़ होने के बाद इस योजना पर, बिलाशक, व्यापक पैमाने पर काम किया जाने लगा. पर, अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भाजपा और उसकी सरकार और उनके कारिंदे ‘क्रेडिट गेम’ में ज्यादा मयस्सर हैं!

ये तो इतिहास पूछेगा कि ‘स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट’ का ‘आदिकालीन’ श्री महाकाल वन क्षेत्र से क्या लेना-देना है, लेकिन वर्तमान के शासकों ने आज दिनांक तक एक भी ‘बोर्ड’ समूचे नए परिसर में नहीं लगाया है जो कि ठीक-ठीक बता सके कि परियोजना के कितने चरण हैं, उनकी कुल लागत क्या है, कौन-कौन-सी एजेंसी ‘इन्वोल्व’ है, किस-किस-ने कितना-कितना फंड और कब-कब प्रदान किया है, एक-एक निर्माण और सप्लाई कार्य की राशि कितनी-कितनी है, प्रत्येक कार्य की “पूर्णता” अवधि कब-कब और कितनी-कितनी है?

Read More : Mahira Sharma अपनी नजरों से फैंस पर कर रही वार, तस्वीरों में दिखा सिज़लिंग लुक

इस तथ्य को कौन भुला सकता है कि जब बेगमबाग इलाके से कोई 200 मकानों को हटाने और प्रभावित रहवासियों को मुआवज़ा देने का प्रश्न खड़ा हो गया था आज से दो साल पहले, तो सरकार ने बेरुखी कर ली थी और ये ही स्मार्ट सिटी वाले ठन-ठन गोपाल की मुद्रा में आ गए थे! जाहिर तौर पर वैसे कठिन दौर में स्वयं ‘श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति’ ने अपने कोष के दरवाजे खोल दिए थे! कुछ वैसे ही हालात लोकार्पण की औपचारिकताओं के बाद खड़े होने लगे हैं और इसीलिए शासनों में बैठे ‘अति-विशिष्टाधिकार’ प्राप्त लोग प्रशासकों के माध्यमों से एक नई प्रकार की आर्थिक वसूली का दबाव बनाने लगे हैं!

‘पब्लिक डोमेन’ में ये चर्चाएं पहले से हैं कि महाकाल लोक परिसर में स्थापित कोई 200 मूर्तियों, भित्ति चित्रों वाली दीवार, नाईट गार्डन वगैरह-वगैरह का रखरखाव कौन और कैसे करेगा? करीब 700 मीटर के व्यास में बनाई गई तमाम-तमाम कलाकृतियां 365 दिन खुले आसमान के नीचे रहकर किस तरह अपने यौवन को बचा सकेंगी? पता चला है कि जो भी मूर्तियां बनाई गई हैं उनमें से 60 फीसदी से ज्यादा मूर्ति उच्च किस्म के ‘फाइबर’ से बनाई गई हैं और शेष ‘स्टोन’ और ‘सीमेंट’ से! खुद श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिन्गम जो स्वयं-भू प्रकटित हैं और जिनके ‘क्षरण’ को लेकर सुप्रीम कोर्ट निगरानी कर रहा है, उनके दरबार में सृजित किए गए आधुनिक ढांचे कब तक दम मार सकेंगे?

महाकालेश्वर मंदिर विस्तारीकरण और सौन्दर्य्यीकरण परियोजना के लागू होने के दौरान मंदिर के रखवालों ने विविध प्रकार के ‘टैक्स’ दर्शनार्थियों से वसूलने शुरू किए थे: शीघ्र दर्शन के नाम पर 250 रुपए प्रति दर्शनार्थी, ऑनलाइन भस्मारती परमिशन के 100 रुपए प्रति दर्शनार्थी, ऑफलाइन भस्मारती दर्शन के 200 रुपए प्रति दर्शनार्थी और जब गर्भगृह में आम दर्शनार्थी का प्रवेश निषिद्ध किया जाता है तब शिवलिंग पर जल चढ़ाने और अभिषेक इत्यादि के लिए 1500 रुपए प्रत्येक चार लोगों के समूह से लेना!

ऐसा बिल्कुल नहीं है कि भारतवर्ष में प्रमुख सनातनी देवस्थानों पर किसी भी प्रकार का शुल्क दर्शनार्थियों से नहीं लिया जाता! हर देवस्थान प्रबंध समितियां अपने-अपने ढंग से बेहतर-से-बेहतर व्यवस्थाएं और सुविधाएं आम दर्शनार्थियों को मुहैया कराने की भरसक कोशिश करती हैं. लेकिन, मुद्दा ये है कि ‘अबूझ’ करों को रोपित करने के बाद भी क्या सनातनी जनता से ही उनके इष्टों के दर्शनों का टैक्स भी वसूला जाएगा! हमारा समाज बहुत खुल चुका है, उसे इन ‘इश्यूज’ पर ध्यान देना चाहिए और एक स्पष्ट बात रखनी चाहिए!