इंदौर : हर साल डेढ़ लाख लोग रोड़ एक्सीडेंट में अपाहिज हो जाते हैं, गांव के सत्तर फीसदी लोगों के पास लाइसेंसी नहीं

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इंदौर, राजेश राठौर। देश में हर साल रोड एक्सीडेंट में डेढ़ लाख लोगों को जान गवाना पड़ती है और इतने ही लोग अपाहिज हो जाते हैं। गांव के तीस फ़ीसदी लोगों के पास लाइसेंस है। बाकी सब बिना लाइसेंस के ट्रैक्टर से लेकर ट्रक चलाते हैं। यह कहना है नेशनल रोड सेफ्टी काउंसिल के सदस्य रविंद्र कासखेड़ीकर का। जिन्होंने सबसे पहले नागपुर में ट्रैफिक सेफ्टी के लिए कार्यक्रम चलाया। उसके बाद जन आक्रोश नाम से संस्था बनाई। जिसके वे संस्थापक सचिव हैं। देश भर में इस संस्था के पंद्रह बड़े शहरों में लगातार कार्यक्रम हो रहे हैं। सबसे पहले उन्होंने नागपुर में पिचायनवे फ़ीसदी लोगों को ट्रैफिक का नियमों का पालन करना सिखाया।

अब पूरे देश में करना चाहते हैं। इस काम में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी इस संस्था की मदद कर रहे हैं। कल इसी संस्था के कार्यक्रम में गडकरी इंदौर आए थे। तब संस्थापक सचिव रविंद्र कासखेड़िकर से मुलाकात हुई। उन्होंने बताया कि हिंदुस्तान के लोग ट्रैफिक के नियमों का पालन नहीं करना चाहते। कोई हेलमेट लगाना नहीं चाहता। कोई सीट बेल्ट नहीं लगाना चाहता। हम इसकी शुरुआत स्कूल और कॉलेज से करवा रहे हैं। ट्रैफिक सेफ्टी को लेकर देशभर में सिर्फ भाषण के कार्यक्रम नहीं करते, लोगों को जागृत कर ट्रेनिंग देते हैं।

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क्लासेस भी लेते हैं। कासखेड़ीकर का कहना है कि 2025 तक वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने भी हिंदुस्तान में रोड एक्सीडेंट कम करने का टारगेट दिया है। अभी जो पांच लाख से ज्यादा एक्सीडेंट हो रहे हैं। उन्हें अगले 2 साल में 50 फ़ीसदी रोकने का टारगेट है। इसके लिए नेशनल हाईवे पर भी जाकर लोगों को समझाया जा रहा है की आपको वाहन कैसे चलाना है। कासखेड़ीकर ने बताया कि ट्रैफिक को लोग हल्के से लेते हैं। रोड एक्सीडेंट अवॉइड किए जा सकते हैं। रॉन्ग साइड लोग जाते हैं। रात में दिखता नहीं है तो दुर्घटनाएं होती है। ऐसी दुर्घटनाओं का कारण कोई मैकेनिकल या इंजीनियरिंग का नहीं है। यदि लोग हेलमेट पहनते तो सुरक्षा रहती है। लोग जिद्दी होते हैं और हेलमेट पहने को तैयार नहीं होते हैं।

केंद्र सरकार कॉलेज और स्कूल में अगले साल से ट्रैफिक को लेकर पढ़ाना अनिवार्य किया जाएगा। 95 फ़ीसदी लोग नागपुर में हेलमेट पहनते हैं, तो पूरे देश में लोग हेलमेट क्यों नहीं पहन सकते। लोगों की मानसिकता बदलने में सालों लगेंगे। सीट बेल्ट लगाने का बोलो तो लोग बेल्ट ढूंढते हैं कि कहां है। किसी को सुनना नहीं है कासखेड़ीकर् का कहना है कि पुलिस क्या करें चालन बना सकती है।

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आरटीओ की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद देश भर के आरटीओ दफ्तर के जरिए ट्रैफिक को लेकर कुछ नहीं किया जाता है। लोग दो सौ पांच सौ के चालान भरने को तैयार रहते हैं, लेकिन न तो हेलमेट पहनते हैं और ना सीट बेल्ट लगाते हैं। मोटर व्हीकल एक्ट के पालन के लिए लोग तैयार नहीं होते। रोड एक्सीडेंट में घर के लोग मरते हैं, दो दिन लोग रोते हैं, फिर भूल जाते हैं और खुद परिवार के सदस्य ट्रैफिक के नियमों का पालन नहीं करते हैं। यह कितनी बड़ी गलती हम सब करते हैं।