शशिकान्त गुप्ते
शिक्षा नीति में बदलाव किया जा रहा है।क्या यह बदलाव नीति गत होगा?
प्रख्यात गांधीवादी, समजवादी विचारक, स्वतंत्रता सेनानी स्व.मामा बालेश्वरदयाल,कार्य कर्ताओं को समझाते हुए कहते थे,कोई भी व्यवस्था कितनी भी अच्छी नीति बनाएं, यह महत्वपूर्ण नहीं होता,नीति बनाने के पीछे नीयत कैसी है, यह ध्यान में रखना आवश्यक है?मामाजी हमेशा कहते थे,नीति और नीयत पर व्यापक बहस होनी चाहिए।
प्रख्यात क्रांतिकारी,और दूसरी आजादी के मसीहा लोक नायक जय प्रकाश नारायण ने जब सम्पूर्ण क्रांति का आव्हान किया था, तब शिक्षा नीति में आमूल चूल परिवर्तन मांग उठाई थी।
शिक्षा नीति में ऐसा बदलाव हो कि,विद्यार्थी सिर्फ पढ़ा लिखा नहीं बने,शिक्षित भी हो।
इस संदर्भ में अंग्रेजी की सूक्ति प्रासंगिक होगी
English में एक सूक्ति है।
When literate people,will become educated,then only we can think for revolusion or change.
अर्थात जब पढ़े लिखे लोग शिक्षित होंगे तब हम वैचारिक क्रांति या बदलाव के लिए सोच सकते हैं।यहाँ बदलाव से मतलब है,यथास्थितिवाद से मुक्त होना।महात्मा गांधीजी ने समाज के कल्याण के लिए सुधावादी तरीके को त्याग कर परिवर्तनकारी तरीका अपनाया था।
शिक्षा नीति पर व्यंग्य करते हुए प्रख्यात व्यंग्यकार चिंतक विचारक स्व.हरिशंकर परसाई जी ने लिखा है,हिंदी के डॉक्टर बहुतायत में मिलेंगे लेकिन हिंदी भाषा में शिक्षित बहुत कम है।व्यंग्य को उदाहरण के साथ प्रस्तुत करते हुए, परसाई जी ने लिखा है।एक अस्पताल के जनरल वार्ड में दस मरीज भर्ती थे,उनमें से किसी एक मरीज का स्वास्थ्य गम्भीर होते देख वार्ड में कार्यरत नर्स जोर से चिल्लाई डॉक्टर ( नर्स ने चिकित्सक को आवाज लगाई थी) उस वार्ड में भर्ती दस मरीजों में से लगभग सात से आठ मरीज उठ बैठे,जैसे नर्स ने उन्हें ही आवाज दी हो,कारण वे सभी हिंदी के (हिंदी में पी एच डी थे) डॉक्टर थे।
शिक्षा नीति में बदलाव करने के लिए नीयत साफ होना बहुत जरुरी है।
शिक्षा नीति में सबसे अहम बदलाव तब होगा जब पढाई के दौरान प्रश्न वाचक को व्याकरण में सिर्फ औपचारिक रूप से न पढाया जाएगा,बल्कि प्रश्न वाचक को व्यवहार में लाने के लिए भी शिक्षित किया जाएगी।
आज बातें तो धर्म, संस्कार,संकृति और चरित्र निर्माण की होती है,लेकिन लोकतंत्र में सवाल पूछने पर प्रश्न उपस्थित किया जाता है।
वाणी की स्वतंत्रता का मतलब सिर्फ भीख मांगने की याचना करने के लिए वाणी का उपयोग न हो,बल्कि अपना हक़ मांगने का साहस भी पैदा हो।
विद्यार्थी किसी भी विषय मे पढाई करें।पढाई करने बाद वह डॉक्टर,इंजीनियर,व्यापारी,उद्योगपति जो चाहे वह बने लेकिन देश अच्छा नागरिक भी बने।
शिक्षा नीति महत्वपूर्ण बदलाव तो तब होगा जब हर एक नागरिक में आत्मबल जागृत होगा।आम नागरिक में आत्मबल जागृत होने से कोई भी राजनीतिक दल
चुनाव में किए वादों को जुमले में बदलने की जुर्रत नहीं कर सकेगा।
शिक्षा नीति में बदलाव ऐसा हो कि,समाज के अंतिम सोपान पर खड़े व्यक्ति में भी साहस पैदा हो और वह अपने जनप्रतिनिधि से रूबरू होकर सवाल कर सके।
शिक्षा नीति में बदलाव ऐसा हो कि,जनप्रतिनिधि भले ही पढालिखा न हो शिक्षित होना चाहिए।
नीति बनाने वालों में नैतिकता होनी चाहिए।निजीकरण जनहित में करना ज्यायज हो सकता है,लेकिन हर क्षेत्र में ठेकेदारी प्रथा लागू करने की मंशा घातक है।
ठेकेदारी प्रथा तो वर्तमान में भी प्रचलित है।
प्राथमिक शिक्षा में अ अक्षर से अनार, आ से आम इसी तरह इमली, ईख के साथ, बाल काल में ही बच्चों ने अपनी आँखों पर ऐनक लगा रखा है।इन स्वरों से बनने वाले शब्दों की यह ठेकेदारी ही तो है।
इसी तरह अंग्रेजी में सेवफल से शुरुआत होती है,इसके बाद निर्वाचित जनप्रतिनिधि के द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों को सबक सिखाने के लिए क्रिकेट बैट अर्थात बल्ला का उपयोग होता है। इसी के साथ कुत्ता बिल्ली वगेरह ने ठेका ले रखा है।
देश के कर्णधार ग गणेश का पढ़ने के बाद भी गधा हम्माली करने के लिए अभिशप्त न हो ऐसी शिक्षा नीति बने।
सन 1962 में प्रदर्शित फ़िल्म अनपढ़ के गीत यह पंक्तियां आज में प्रासंगिक होकर देश की शिक्षा नीति कोस रही हैं।
ये बी ए है लेकिन चलाते है ठेला
ये एम ए है लेकिन बेचते करेला
शिक्षा नीति रोजगारउन्मुख बनाई जाए सिर्फ शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में इजाफा करने वाली ना बने।
सबसे अहम मुद्दा शिक्षा के दौरान विद्यार्थियों को यह शिक्षा दी जाए कि,अपने देश की भौगोलिक सीमा की मिट्टी में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता मजबूती से रचा बसा है,इसे कोई भी मिटा नहीं सकता।
शिक्षा का व्यापार बन्द हो।कुकुरमुत्ते जैसे हर गली मोहल्ले में संचालित हो रहे कोचिंग की दुकानों पर अंकुश लगे।
केंद्र और राज्य के शिक्षा मंत्री को यह समझ होनी चाहिए कि, स्कूल या कॉलेज में पढ़ाने वाले अध्यापकों और प्राध्यापकों से ज्यादा ज्ञान कोचिंग क्लासेस के शिक्षक कैसे रखते हैं?
कोचिंग क्लास में पढ़ने वाले विद्यार्थी परीक्षा अच्छे अंको से पास होगा इस तरह के गारंटी भरे विज्ञापन देने की हिमाकत कोचिंग क्लासेस के संचालक किस आधार पर करते हैं?ऐसे व्यावहारिक प्रश्नों पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
राजनीति में सलंग्न लोगों के लिए राजनीति धर्म होना चाहिए धंधा कतई नहीं।
अंत में प्रख्यात समाजवादी नेता चिंतक,विचारक स्व.डॉ रामनोहर लोहियाजी की यह युक्ति प्रासंगिक होगी।
“धर्म दीर्घकालीन राजनीति है,और राजनीति अल्प कालिक धर्म है”
सिर्फ और सिर्फ विज्ञापनों पर आधारित राजनीति कोई भी जनहित की नीति नहीं बना सकती,यह विचारणीय मुद्दा है।
अपने मुह मिया मिट्ठू बनने की मानसिकता,मानसिक विकार है।
यदि देश की जनसंख्या 135 करोड़ है तो प्रत्येक नागरिक को यह एहसास होने चाहिए कि,वह भी 1 बटा 135 करोड़ है।
पूर्व में छटी कक्षा से अंग्रेजी पढाई जाती थी।
अंग्रेजी में पहला वाक्य सिखाया जाता था।What is your name.पुस्तक में लिखा होता था।My name is ram.
जब मौखिक परीक्षा में यही पूछा जाता था,तब अधिकांश बच्चें इस प्रश्न का जवाब राम ही देते थे।कारण सामान्यज्ञान की कमी होना ही है।
इस तरह शिक्षा नीति में बदलाव होना चाहिए।
सबसे महत्वपूर्ण बात, शिक्षा ग्रहण करते समय हर एक को यह भी शिक्षा दी जानी चाहिए कि,देश का प्रत्येक नागरिक भारतीय है।
नागरिक का धर्म,समाज,जाती,यह सब सेकंडरी है।