शशिकान्त गुप्ते
Covid19 ने पूरे विश्व में कहर ढाया है।अपने देश के आर्टिकल 19 ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस छेड़ दी है।covid 19 ने लोगों को शारीरिक रूप से बीमार कर दिया और भारत के आर्टिकल 19 ने लोगों की मानसिकता को जागृत कर रहा है। covid 19 की दवाई चिकित्सा वैज्ञानिकों द्वारा खोजी जा रही है।आर्टिकल 19 के महत्व को कानून विदों द्वारा लोगों समझाया जा रहा है।covid 19 ने एहतियात के लिए लोगों के मुह पर मास्क लगवा दिए।आर्टिकल 19 ने मुह खोलकर बोलने के मौलिक अधिकार के प्रति जागृति लाने का कार्य किया है।
प्रशांत का शाब्दिक अर्थ होता अत्यधिक शांति।यहाँ शांति का मतलब मौन रहने से नहीं है।यहाँ पर शांति का अर्थ है,शांति पूर्ण तरीके से अपने अधिकारों का उपयोग करना।
इनदिनों देश में दो विभिन्न धाराएं कार्यरत हैं। एक धारा वाणी की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हुए,अभद्रतापूर्ण आचरण कर रही है।दूसरी धारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए,भ्रष्ट आचरण पर शालीनता से प्रश्न उपस्थित कर रही है।
एक धारा जो वाणी की स्वतंत्रता का उपयोग विरोधियों को डराने धमकाने के लिए इस्तेमाल कर रही है।
दूसरी धारा यह नारा बुलंद कर रही है, सच कहना अगर बगावत है,तो समझों हम भी बागी है
Covid 19,व्यक्ति और सत्ता केंद्रीत राजनीति के लिए वरदान साबित हुआ है,और आमजन के लिए अभिशाप सिद्ध हुआ है।
covid 19 के लिए एहितयात बरतने की सलाह समझाकर देने के बजाए,लोगों में दहशत फैलाने का कार्य ज्यादा हुआ।
लॉक डाउन के कारण बेरोजगारी की संख्या में वृध्दि हुई। चिकित्सा क्षेत्र पर मानव सेवा के बजाए व्यापारिक मानसिकता से कार्य करने का आरोप लगा।
आर्टिकल 19 के कारण भ्रष्ट आचरण पर व्यापक बहस के लिए माहौल तैयार हुआ है।आर्टिकल 19 की व्यापक चर्चा शुरू होने से भ्रष्टाचार सिर्फ पैसों के लेनदेन तक ही सीमित नहीं है,यह बात आमजन को समझने में आसानी हो रही है।
Covid 19 की दवाई आज नहीं तो कल निश्चित मिल ही जाएगी।
आर्टिकल 19 के कारण लोगों को व्यवस्था से सवाल पूछने का साहस जागृत होगा।
लोकतंत्र में प्रश्न उपस्थित करना ही वैचारिक क्रांति की शुरुआत है।जिस किसी विषय पर,प्रश्न उपस्थित होता है, तब उस विषय को लेकर लोगों में चर्चा होने लगती है,चर्चा बहस में परिवर्तित होती है।बहस में विचारों का मंथन होता है।वैचारिक मंथन से कोई ठोस परिणाम निकलता है।
समाजवादी विचारक,चिंतक,स्वतन्त्रता सैनानी स्व.राममनोहर लोहिया देशहित के मुद्दों व्यापक रूप से देशव्यापी बहस के समर्थक थे।
देशहित के मुद्दों पर व्यापक बहस के पीछे खास उद्देश्य होता है,लोगों के मानस को झकझोरना।
बहस में विरोधी स्वर भी उभरते हैं।विरोधी स्वरों को उभरना ही सच्चे लोकतंत्र का द्योतक है।असहमति लोकतंत्र की बुनियाद है।
आज इसी बुनियाद पर अंकुश लगाने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से प्रयास किए जा रहे हैं।
आर्टिकल 19 का उपयोग करते हुए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषणजी ने जो प्रश्न उपस्थित किए हैं।उन प्रश्नों के सत्यता की जांच किए बगैर,प्रशांत भूषण जी को दोषी मानकर सज़ा देने की पेशकश करने पीछे भी आमजन के अंदर एक तरह भय पैदा करने की साज़िश हो रही है।
प्रशांत भूषणजी ने गांधीजी के रास्ते को अपनाते हुए निर्भयता से दया की याचना करने से मना कर दिया।यह एक साहसिक कदम है।
प्रशांत जी के द्वारा जो प्रश्न उपस्थित किए हैं,इन प्रश्नों के जरिए एक तीर कई निशानों पर लग रहा है।
प्रशांतजी के साहसिक निर्णय से आर्टिकल 19 में दिए गए मौलिक अधिकार के प्रति लोगों में सजगता बढ़ेगी।
Covid 19 से भी लोगों को जल्दी छुटकारा मिलेगा।
प्रशांतजी ने अपने संवैधानिक अधिकार का उपयोग कर जनमानस को वैचारिक क्रांति के लिए उद्वेलित किया है।इसके लिए उन्हें साधुवाद।